अतिरिक्त
Vol 11 अंक 3
मई-जून 2020
1. स्वास्थ्य सुझाव
अपने दिन को स्वस्थ तरीके से मनाएं!
"हम जो भोजन करते हैं वह स्वादिष्ट, पुष्टिवर्धक और रुचिकर होना चाहिए। यह अत्यधिक गरम या अत्यधिक नमकीन नहीं होना चाहिए। इसमें एक संतुलन बनाए रखना चाहिए। यह ना तो उत्तेजित करने वाला और ना ही निराश करने वाला होना चाहिए। राजसिक भोजन भावनाओं का जागृत करने वाला होता है जबकि तामसिक भोजन सुस्ती और नींद फैलाने वाला होता है। सात्विक भोजन संतुष्टि प्रदान करने वाला होता है लेकिन वह जुनून को बढ़ाने वाला या भावनाओं को जागृत करने वाला नहीं होता है।”…Sri Sathya Sai Baba1
मसाला क्या है?
मसाला पौधे का सूखा भाग होता है, पत्तियों के अलावा जिसे हर्बस कहते हैं लेकिन उसका वर्णन यहां नहीं किया गया है। यह बीज, फल, फली के रूप में (सरसों, जीरा, मेथी, अजवाइन, निगैला, जायफल, सोफं, मोटी इलायची) छाल (दालचीनी, जावित्री) सूखा फल( लॉन्ग) फूल (केसर) फल (काली मिर्च) जड़ या कंद( अदरक, हल्दी) राल (हींग) या बल्ब (लहसुन)होता हैI2,3
उपयोग,लाभ और मसालों का भंडारण
उपयोग : मसालों का उपयोग पुराने जमाने से भोजन को और अधिक स्वादिष्ट, खुशबूदार और सजावट के लिए किया जाता रहा है, क्योंकि यह सुगंधित होते हैं भोजन में सुगंध पैदा करने वाले होते हैं, कभी कभी इनके कारण भोजन में रंग भी आ जाता है। ये ताजा, साबुत या पिसे हुए, तले या भुने रूप में प्रयोग किए जाते हैं। इनको पक जाने से थोड़ा पहले या फिर परोसते समय मिलाया जाता है जिससे कि इनकी सुगंध कायम रह सके। इनको पकाते समय भी मिलाया जा सकता है। ऐसे करने से ये अच्छी तरह से भोजन में अवशोषित हो जाते हैं। ये भोजन के रक्षक के रूप में भी कार्य करते हैं। इनकी उपस्थिति से रोगजनक कीटाणु भोजन में पनप नहीं पाते हैं।4,5
लाभ: लगभग सभी मसाले एंटी-ऑक्सीडेंट से युक्त होते हैं, इनमें खनिज जैसे कि आयरन, मैगजीन, कॉपर, सिलेनियम तथा विटामिन्स, अमीनो एसिड्स और कुछ ओमेगा-3 फैटी अम्ल साथ ही कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फाइबर होते हैं। इनको रोगों को ठीक करने का प्रबल दावेदार के रूप में जाना जाता है क्योंकि ये फंगस रोधी, रोगाणु रोधक, सड़न रोकने वाली, सूजन रोधी, विषाणु रोधी, दर्द निवारक रूप में भी कार्य करते हैं। इस प्रकार ये पुराने और परंपरागत रूप से दवाइयों के रूप में भी उपयोग में लाए जाते हैं। यद्यपि इस संबंध में अनुसंधानों की कमी के होते हुए इनके औषधीय गुणों को ख्याति प्राप्त नहीं हो सकी है। कुछ अध्ययनों और अनुभवों के आधार पर यह कहा जाता है कि कुछ मसाले शरीर का पोषण करते है, रोगों को रोक सकते और उपचार कर सकते हैं, यहां तक जीवन के लिए खतरा बनी बीमारियां जैसे कि कैंसर, मधुमेह, हृदयाघात और कुछ कोरोनरी हृदय से संबंधित बीमारियों की भी रोकथाम कर सकते है।2,4,5,8
भंडारण: समय के साथ मसाले अपनी सुगंध और स्वाद खो देते हैं, अतः उन्हें ठीक से कसकर बंद करके डिब्बे में रखना चाहिए, धूप व नमी से बचाकर जिससे कि दाने 2 वर्ष तक और पाउडर 1 वर्ष तक खराब ना हो सके।2,4
सावधानियां: छोटी मात्रा में ही मसाले लाभदायक होते हैं, सामान्यता एक चम्मच (2 से 2.5 ग्राम) प्रतिदिन, परंतु कभी-कभी एक चुटकी भर या दो चुटकी भर ही पर्याप्त होता है। जो लोग उपचार पर चल रहे हो या गर्भवती महिलाएं तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए कि उन्हें मसालों का सेवन करना चाहिए अथवा नहीं यदि करना है तो कितना।2,8
विशिष्ट मसाले:
लगभग 100 प्रकार के विशिष्ट मसाले उपलब्ध है।5 परंतु हम केवल उन 20 मसालों का जिक्र कर रहे हैं जिनका हम सामान्य रूप से रसोई घर में उपयोग करते हैं।.
1. सरसों के बीज (सरसों, राई)
अन्य कोई गंध वाला मसाला डालने से पूर्व राई को थोड़े से तेल या घी में भूना जाता है। पिसा हुआ मसाला सलाद के ऊपर छिड़का जा सकता है तथा आचार के मसालों में मिलाया जाता है। इसके पेस्ट में, जिसे पूरी रात भिगो कर रखा जाता है, कई प्रकार के खनिज, ओमेगा-3 फैटी अमल भी होता है।
यह आंतों में से कीड़ों को निष्कासित करने के काम आता है, खांसी में उपयोगी है, रक्त के प्रवाह को समुचित बनाता है जिससे हड्डी व मांसपेशियों के दर्द में लाभ होता है, यह सोरायसिस और त्वचा के प्रदाह में भी लाभकारी है।
बाह्य उपयोग: गले की खराबी के लिए रोगी सरसों के दानों की चाय से कुल्ला करें, पैरों को भिगोने वाले पानी में सरसों का चूर्ण मिला देने से छाती में जमा कफ बाहर निकल जाता है। सरसों की पुल्टिस को शरीर पर बांधने से खांसी में आराम मिलता है। बर्तनों को साफ करने के लिए थोड़ी सरसों के दाने पानी और विनेगर के साथ मिलाकर बर्तनों पर रगड़ कर रात भर के लिए उन्हें छोड़ दो, सुबह उनको धोलें।
चेतावनी: 2 ग्राम तक यह सुरक्षित रूप से लिया जा सकता है। जिन लोगों को थायराइड,गाल-ब्लैडर की समस्याएं हो तो उन्हें डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करना चाहिए।6,7
2. जीरे के बीज (जीरा)
कुछ परिवारों में खाना तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक की उनके भोजन में मिट्टी के समान परंतु तीखी और चटपटा स्वाद वाले जीरे का तड़का ना लगा हो। इसका तड़का, सूप, सब्जियों, चावल या अन्य भोजनों में लगाया जाता है । भुना हुआ जीरे का पाउडर दही के स्वाद को बढ़ा देता है, छाछ का स्वाद भी इसी से बढ़ता है।
यह आयरन, कैल्शियम तथा विटामिन ए व सी का अच्छा स्रोत है। यह एनीमिया में लाभदायक है, रक्तचाप को नियंत्रित करता है, भोजन से उत्पन्न वायरल संक्रमण, अनिद्रा व कमजोर हड्डियों में लाभप्रद है। लिवर को डीटॉक्सिफाई करता है, भूख को बढ़ाता है, रक्त शर्करा को कम करता है, इम्यूनिटी को बढ़ाता है और शक्ति प्रदान करने वाला होता है।
एक अध्ययन में यह सामने आया है कि यदि मोटी महिलाएं अधिक मात्रा में जीरे को दही के साथ दो बार खाएं, 3 माह तक, तो उनके वजन में काफी कमी हो जाती हैI शरीर में HDL/LDL कोलेस्ट्रोल स्तर के अनुपात को स्थिर बनाए रखता है और 8 हफ्ते में, इंसुलिन के स्तर में भी कमी आ जाती है। 4,8,9,10
एक कप जीरे की चाय प्रभावी रूप से दर्द निवारक का कार्य करती है, विशेषकर पेट दर्द में, छाती में से कफ निकालने में और गर्भावस्था में दूध की मात्रा बढ़ाने का कार्य करती है।11
चेतावनी: एक चुटकी (0.1 gm) प्रतिदिन की मात्रा पर्याप्त होती है और यह (0.6 gm.) ¼ चम्मच तक का सेवन करने के लिए सुरक्षित माना जाता है। अत्यधिक खाने से समस्याएं जैसे कि सीने में जलन, भोजन का ऊपर चढ़ना। शल्यक्रिया करवानी हो तो 2 सप्ताह पूर्व इसका उपयोग बंद कर देना चाहिए। रक्त स्त्राव अनियमितता में यह थक्का बनने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है और रक्त में शर्करा की मात्रा को कम कर देता है।8-10
3. हींग (हींग)
एक कठोर रेजिन गोंद, एक तीव्र गंध वाला पदार्थ। यह एक सुखा हुआ रस है जो बारहमासी सौंफ पौधे की जड़ से प्राप्त किया जाता है। यह रूप से डेलों, छोटे टुकड़ों या पाउडर के रूप में बाजार में उपलब्ध रहता है। यह बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में उपयोग किया जाता है। केवल एक या दो चुटकी ही पर्याप्त होती है। पकने के बाद भोजन में यह विशेष गंध पैदा कर देता है तथा भोजन को सुपाच्य बना देता है।
यह रोमन साम्राज्य के समय से ही आ रहा है और ऐंठन तथा पेट की समस्याओं को दूर करने के काम में आता है। यह आंतो के रोग के इलाज में मदद करता है, खांसी के कारण श्वास लेने में कठिनाई की समस्याओं में उपयोग लाभप्रद होता है। इसका उपयोग ब्रोंकाइटिस, स्वाइन फ्लू, अस्थमा, मासिक धर्म की अनियमितता, ब्लड शुगर, रक्तचाप, और हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखता है। कुछ पारंपरिक प्रणालियों में, आक्षेप और मानसिक विकारों के इलाज के लिए गुड़ के साथ प्रयोग किया जाता है, और कटिस्नायुशूल के लिए घी के साथ।
चेतावनी: पारंपरिक खुराक लाभप्रद होती हैं (0.2 से 0.5 g)I गर्भवती स्त्रियों को उपयोग में नहीं लेना चाहिए, बच्चे जिन्हें अल्सर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, ब्लीडिंग डिसऑर्डर, मिर्गी या रक्तचाप की समस्या हो उन्हें उपयोग में नहीं लेना चाहिए। शल्यक्रिया के 2 सप्ताह पूर्व ही ली जानी चाहियेI12-14
4. गर्म मिर्चे (गर्म मिर्च)/पैपरिका/कायेन पेप्पर
गर्म मिर्चे/ मिर्च पेप्पर भारतवर्ष में लाल मिर्च विभिन्न प्रकार की पाई जाती हैI यह साबुत या पाउडर रूप में उपलब्ध रहती है। जिसका उपयोग चावल, सब्जियों, आचार, चटनी( सब्जी, हर्बस, लेंटिल्स का पेस्ट) आदि में किया जाता है। यह एक अच्छा पाचक है I इसमें विटामिन A, C व E भरपूर मात्रा में होते हैं। यह इम्यूनिटी को बढ़ाती है, आंखों को स्वस्थ बनाती है, माइग्रेन में लाभकारी है, इसके अतिरिक्त यह साइनोसाइटिस, सर्दी व फ्लू में भी लाभकारी है। इसमें उपस्थित रसायन कैप्सेसिन( मिर्ची में गर्मी का स्त्रोत) चिल्ली पैपर जीवन रक्षक दवाई के रूप में काम में ली जा सकती है, इसको मल्हम में दर्द, मोच व सुन्नपन निवारक के रूप में काम में लिया जाता है।
पपरिका: इसका स्वाद मीठे से उग्र तक हो सकता है। यह एक ऐसा अनोखा मसाला है जो कई प्रकार की मिर्चों के मेल से बनाया जा सकता है; मीठे पेपरिका को मुख्य रूप से ग्राउंड रेड बेल पेपर्स से बनाया जाता है, जिसमें कैपसैसिन रासायनिक यौगिकों की कमी होती है, लेकिन उसमें विटामिन A प्रचुर मात्रा में होता हैI ऑटोइम्यून सिंड्रोम व गैस्ट्रिक कैंसर की रोगों में भी लाभप्रद होती है ।
कायेन पेप्पर: भोजन के किसी भी प्रारूप में इसको थोड़ी सी मात्रा में मिला देने से भोजन में अत्यधिक तीखापन आ जाता है। यह सुखी या पिसी रूप में मिलती हैI यह साधारण लाल मिर्च या शिमला मिर्च की अपेक्षा अधिक तीखी होती है, पाचक के रूप में, दांत दर्द में, समुद्री यात्रा, अल्कोहल की अधिकता, मलेरिया और ज्वर जैसे रोगों में शरीर के चयापचय क्रिया में मदद करने वाली तथा निगलने में कठिनाई से मुक्ति दिलाने वाली है। ऐसा भी देखा गया है कि जिन मलहमों में इसको मिलाया जाता है वो मल्हम सोरायसिस रोग में उपयोग में लाए जाते हैं।
चेतावनी: 1-2 बूंद किसी भी तेल को हथेली या उंगलियों पर लगाएं इस मिर्ची को लेने से पूर्व। बाद में कुछ मात्रा में नींबू लगाएं तथा हाथ को अच्छी तरह से धोएं । इसके बाद ही हाथ को आंखों या चेहरे पर लगाएं। इसकी खुराक की मात्रा व्यक्तिगत सहनशक्ति पर निर्भर करती है। जिन लोगों को अल्सर या अम्लता की बीमारी है उन्हें इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।15-18
5. काली मिर्च/काली मिर्च के दाने(काली मिर्च)
मिर्च के पौधे पर जब यह अधपकी अवस्था में होती है तभी इसको तोड़़ लिया जाता है और फिर उसको खाया जाता है। सुखाने से यह सिकुड़ जाती है और काली पड़ जाती है तथा इसको काली मिर्च के नाम से जाना जाता है। इसको पीसा जाता है तो इसे मसालों का राजा कहा जाता है। इसकी बस एक चुटकी ही किसी भी भोजन को स्वादिष्ट बना देती हैI कफ- कोल्ड टॉनिक का यह एक आवश्यक घटक हैI पेट के अल्सर को ठीक करने, सफेद दाग और ट्यूमर को बढ़ने से रोकने में मदद करती है। . इसका मुख्य घटक पिपरीन दिमाग की क्षमताओं को बढ़ाता है, अवसाद को दूर करता है और भोजन के पाचन क्रिया में काली मिर्च सहायता करती है। गैस की समस्या को दूर करती है। जब इसका फल पूरी तरह से पक जाता है और इसका बाहरी खोल गिर जाता है तो इसे सफेद मिर्च के नाम से जाना जाता है। सफेद मिर्च का स्वाद प्राकृतिक व जटिल होता है।
चेतावनी: इसके अधिक सेवन से पेट में व गले में जलन पैदा होती है। 19-22
6. धनिया/सिलान्त्रो के बीज(धनिया)
ये गर्म, मीठे और मेवों के सामान बीज होते हैं, इनकी विशेष प्रकार की खुशबू होती है। डेढ़ चम्मच इन बीजों को 2 कप गर्म पानी में रात भर भिगोकर रखें तथा सुबह उस पानी को चाय के समान पीले।अध्ययनों से पता चला है कि यह रक्तचाप को और रक्त शर्करा को कम करता है, पाचन तंत्र को और IBS की समस्या का समाधान करता है, मुंह के अल्सर को ठीक करता है तथा UTI समेत संक्रमण से बचाव करता है।
इसमे प्राकृतिक यौगिक, डोडेकैनाल, होता है जो कि एन्टी-बायोटिक से भी अधिक शक्तिशाली होता है और भोजन विष से रक्षा करता है। ये बीज मासिक धर्म संबंधी परेशानियों से मुक्त करने की शक्ति रखता है और स्नायु सम्बन्धी समस्याओं की भी रोकथाम करता है।23,24
7. मेथी के बीज (मेथी)
इसका उपयोग सब्जियों में किया जाता है, इसकी गंध तीखी होती है और स्वाद कड़वा होता है जो पक जाने पर स्वादिष्ट हो जाता है । इसको भूनकर, पीसकर कॉफी भी बनाई जा सकती है। इसमें पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं, सूजन को कम करती है।( इसको पुल्टिस के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं) मुंह के अल्सर ठीक होते हैं, फोड़े, खांसी तथा जीर्ण कफ को ठीक करती है। पाचन क्रिया को मजबूत करती है तथा कब्ज को दूर करती है। परंपरा के तौर पर बच्चे को जन्म कराने में उपयोगी है, दूध पिलाने वाली माताओं में दुग्ध उत्पादन अधिक होने लगता है और मासिक धर्म बंद होने के समय भी लाभप्रद है। पुरुषों में प्रजनन शक्ति को बढ़ाने वाली होती है। खिलाड़ियों में शक्तिवर्धक के रूप में कार्य करती है तथा चोट लग जाने पर उसे ठीक करने में अत्यंत लाभकारी है ।
सावधानियां: गर्भवती महिलाएं व रक्त संबंधी विकार वाली महिलाएं जो औषधियां ले रही हो उन्हें बिना डॉक्टर की अनुमति के सेवन नहीं करना चाहिए। 25-27
8.अज्वैन/कैरावे के बीज(अज्वैन)
ये तीखी गंध और कड़वे स्वाद वाले बीज होते हैं । इसको दालों को पकाते समय मिलाया जाता है। कुछ फलियों और जड़ में पैदा होने वाली सब्जियों में इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि अरबी और आलू के कारण होने वाली उदर वायु को कम करने के लिए, सब्जियों, आचार और भारतीय ब्रेड। ऐसे ही भुनी हुई अथवा घी में भुनी हुई बड़ी स्वादिष्ट और सुगंध युक्त हो जाती है ।
भूख बढ़ाने के लिए जानी-मानी औषधि है और उदर के फूलने पर इससे उपचार किया जाता है। भोजन उपरांत इसके कुछ पत्तों को चबाकर खाने से पाचन में लाभ मिलता है। भुने हुए बीजों से चाय बना कर उसमें थोड़ा सा शहद यदि आवश्यकता हो तो मिलाकर पीने से शरीर की चयापचय क्रिया अच्छी हो जाती है, चर्बी को कम करती है, खांसी से आराम मिलता है, श्वसन क्रिया को बढ़ाने वाली है, सूजन को कम करती है।
चेतावनी: गर्भवती महिलाओं के लिए वर्जित।
9. निगेल्ला/कला जीरा (कलोंजी)
यह काले बीज सूखे या भुने हुए रूप में अपनी सुगंध और स्वाद के लिए सब्जियों, शोरबे में और लेन्टिस में मिलाए जाते हैं। कुछ अचारों में भी मिलाए जाते हैं। शोधों के अनुसार इसकी आश्चर्यजनक और औषधीय प्रकृति की जानकारी प्राप्त हुई है। अतः इसका पारंपरिक और वर्तमान समय में इसका उपयोग उच्च रक्तचाप रोधी, दस्त रोधी, लिवर टॉनिक, भूख बढ़ाने वाला, दर्द निवारक, जीवाणु रोधी, डाईयूरेटिक, त्वचा विकार जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए किया जाता है। मुट्ठी भर बीजों को सरसों के तेल में गर्म करके सूजे हुए जोड़ों पर लगाने से बहुत आराम मिलता है।
चेतावनी: 1 ग्राम( आधा चम्मच) बीज पर्याप्त होते हैं भोजन पकाने में। 0.3 से 0.5 ग्राम का औषधि के रूप में प्रयोग पर्याप्त होता है।30,31,32
10. हल्दी
यह पीला मसाला ताजा या सूखा भी उपलब्ध रहता है, साबुत या पाउडर के रूप में। इसमें एक विशिष्ट गंध होती है। थोड़ी सी मिर्ची और खट्टी गंध और अदरक जैसा स्वाद अन्य मसालों के साथ भली-भांति मिल जाता है। यह एक उपहार में मिला मसाला है क्योंकि इसका एक महत्वपूर्ण घटक है करक्यूमिन । यह एक प्राकृतिक पीले रंग का फिनॉल होता है । करक्यूमिन फैट मे घुलनशील होता है। इसलिए हल्दी का उपयोग अच्छे किस्म के तेल के साथ करना चाहिए जैसे कि नारियल तेल, ऑलिव ऑयल या घी और काली मिर्च जो इसकी कार्य शक्ति को 20 गुना तक बढ़ा देती है, शरीर के द्वारा इसके अवशोषण को। अलग से हल्दी का उपयोग करने पर करक्यूमिन का अवशोषण होने के पूर्व ही चयापचय हो जाता है।
इसकी प्रबल एंटी-ऑक्सीडेंट क्षमता के कारण यह मधुमेह से मुकाबला कर सकती है, कैंसर को नष्ट कर सकती है, उसकी बढ़ोतरी को रोक सकती है विशेषकर स्तनो में, पेट में, आंतों में, पेनक्रियाज में और त्वचा में। इसके अलावा यह हृदय के रोगों में भी लाभकारी है। यह पाचन क्रिया को ठीक करती है, अवसाद को कम करती है, खून का थक्का बनने से रोकती है। सूजन को कम करती है तथा गठिया के दर्द को कम करती है। अल्जाइमर रोगों में मदद करती है, घावों को जल्दी भर देती है और दाद के रोग में भी लाभप्रद होती है। सोरायसिस और एक्ने में भी लाभ पहुंचाने वाली है। एक अध्ययन में पाया गया कि दवा-प्रतिरोधी ट्यूमर सिकुड़ने पर एक कीमोथेरेपी दवा अधिक प्रभावी थी, जब कर्क्यूमिन के साथ संयोजन में उपयोग किया जाता था।
चेतावनी: अधिक मात्रा के सेवन से दस्त और जी मिचलाने की समस्या हो जाती है ।33-38
11. अदरक
इसका स्वाद थोड़ा चटपटा और मीठा होता है। तीखी गंध और मसालेदार महक होती है। यह बहुत सी सब्जियों, सलाद, सूप और सॉस के साथ मिलाया जाता है। इसके अधिकतर पोषक तत्वों को प्राप्त करने के लिए डिश बनाते समय पहले और बाद में दोनों वक्त इसको मिलाना चाहिए। अदरक की चाय, मिठाईयां बहुत से लोगों की पहली पसंद है। यह सूजन नाशक मसालों में से एक हैI यह पेट को दुरुस्त करती है और जी मिचलाने पर ठीक करती है, गर्भवती महिला की उल्टी और सुबह के वक्त की बीमारी को ठीक करती है, मोशन सिकनेस में लाभदायक है और विशेषकर संधिवात गठिया के दर्द में लाभ पहुंचाती हैI गर्म अदरक का पानी एक बेहतरीन औषधि है, जब हम इसका नियमित सेवन करते हैं तो हम सर्दी, फ्लू, या खांसी से अपना बचाव कर सकते हैं। शोध से पता चला है कि कच्ची या पक्की अदरक व्यायाम के फलस्वरुप हुई चोट को ठीक करती है। यह आंतों के कैंसर में भी लाभप्रद है।
औषधीय अदरक की चाय: 2-इंच लंबे अदरक के टुकड़े को घिसे (बिना छीले) उसमें 2 कप पानी डालकर 10-20 मिनट तक उबालें। छाने और उसमें एक चुटकी दूसरा मसाला जैसे कि हल्दी, काली मिर्च, दालचीनी मिलाएं तदुपरांत एक चम्मच कच्चा शहद और आधा नींबू का रस मिलाएं। स्वादिष्ट अदरक की चाय तैयार हैI
चेतावनी: एक-दो चम्मच घिसा हुआ अदरक पर्याप्त और सुरक्षित होता है। यदि सीने में जलन हो या दस्त हो जाए या पेट में दर्द हो जाए तो मात्रा में कमी कर दें।39-41
12. लहसुन
यह एक बल्ब के सामान सब्जी है। इसे मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें गंधक और पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं, इसकी गंध भी बहुत तेज होती है। कच्चा खाने पर जलन पैदा कर देता है, यह किसी भी प्रकार से तैयार की गई डिश में मिल जाता है, कच्चा, भुना हुआ, बेक किया हुआ या पकाया हुआ।।
ताजा लहसुन में अमीनो अम्ल एलीन उपस्थित होता है। जब लहसुन की एक कली को काटा जाता है तो एक एंजाइम एलीनेज़ निकलता है ।एलीन और एलीनेज़ आपस में क्रिया करके एलोसिन नामक यौगिक बनाते हैं। यही लहसुन जैविक रूप से मुख्य पदार्थ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि लहसुन को काटकर 10 मिनट के लिए छोड़ देने से यह अपना कार्य शुरू कर देता है, क्योंकि एलिसिन को सक्रिय होने के लिए कुछ मिनटों की आवश्यकता होती है। कच्चा लहसुन सबसे अधिक प्रभावशाली होता है। इसको 140 डिग्री फॉरेनहाइट से नीचे पकाना चाहिए। इससे ऊंचे ताप पर एलोसिन नष्ट हो जाता है। सबसे अच्छा तरीका है कि जब सब्जी लगभग तैयार हो जाए तब इसको मिलाओ।
पुराने और मध्यकालीन युगों में अपनी औषधीय गुणों के कारण मशहूर हुआ था। कब्र खोदने वाले कुचले हुए लहसुन को प्लेग से बचाने के लिए इस्तेमाल करते थे। दो विश्व युद्धों के दौरान इसको एंटीसेप्टिक के रूप में लिया जाता था। सिपाहियों में गैंग्रीन को रोकने के लिए भी इसका उपयोग होता था। हल्दी के बाद इसे ही सबसे अच्छा मसाला माना गया है। काफी खोजबीन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि इस के उपयोग से रोगों जैसे कि हृदय रोग, हृदयाघात, कैंसर, मधुमेह, संक्रमण, रक्तचाप, जुकाम, बालों का गिरना, अल्जाइमर डिजीज़, फंगस और एथलीट फुट में लाभ मिलता है। नोट: लहसुन के सप्लीमेंट से कोई लाभ नहीं होता है।
चेतावनी: इसका उपयोग कम मात्रा में ही करना चाहिए। जिन व्यक्तियों को जुकाम जल्दी हो जाता है या जीर्ण प्रकार का संक्रमण हो जाता है, उनके लिए एक कली प्रतिदिन के हिसाब से काफी होती है। जिनको निम्न रक्तचाप, अल्सर तथा आंतरिक समस्याएं या ब्लड थिन्नर से पीड़ित हो तो डॉक्टर की सलाह से ही इसका उपयोग करें। आत्मिक दृष्टिकोण से नकारात्मक भोज्य पदार्थ के रूप में जाना जाता है। औषधीय दृष्टि से यह एक दवा के रूप में कार्य करता है। यह नर्वस सिस्टम को तेज करता है, अतः आध्यात्मिक विचार वाले पुरुष सेवन नहीं करते हैं।42-46
प्याज भी लहसुन के सामान उसी परिवार की सदस्य हैं यह भी मसालों के रूप में उपयोग में ली जाती है( इसका विस्तृत विवरण दो भागों में वॉल्यूम 5#1&2 में दिया गया है)।
13. सौंफ/सौंफ के बीज
सौंफ और सौंफ के बीज यह बीज़ एक ही परिवार के दो विभिन्न पौधों से प्राप्त होते हैं। इनकी गंध और स्वाद समान होते हैं। यह एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जा सकते हैं। लेकिन मोटी सौंफ का उपयोग कम मात्रा में किया जाता है। बीज़ साबुत या पाउडर के रूप में सलाद, पास्ता, सब्जियां तथा कुकीज़ के आटे में उपयोग किए जाते हैं। इनसे गरम चॉकलेट या कॉफी या चाय भी बनाई जाती है।
भोजन के पश्चात इसको चबाया जाता है। इससे मुख शुद्धि भी होती है और पाचन क्रिया भी सुचारु हो जाती है। यह जीवाणु और फंगल संक्रमण के विरुद्ध कार्य करती है। पेट के अल्सर, रजोनिवृत्ति की क्रियाओं में सहयोग करती है, अवसाद में भी लाभप्रद है। अध्धयन के अनुसार, 5 ग्राम प्रतिदिन खाने से औषधि के रूप में कार्य करती है, जो पोस्टमेनोपॉज़ल लक्षणों में सुधार करती है। मसाले के रूप में आधा से एक चम्मच काफी होती है। इसका एक अन्य रूप भी है जिसे स्टार एनीज़ का नाम दिया गया है। यह एक अन्य परिवार की है,परन्तु इससे भिन्न है और इसकी गंध और स्वाद सामान ही होते हैं। लेकिन दोनों में समान स्वास्थ्य लाभ के साथ शराब जैसा स्वाद हैI47,48
14. इलाइची-हरी (इलाइची), काली (बड़ी इलाइची)
हरी इलायची : एक विशिष्ट गंध होती है। जिसमें नींबू और पुदीना की खुशबू का अहसास होता है। अखरोट के समान गंध और खट्टा, मीठा और चटपटा स्वाद होता है। इसकी खेती मनुष्यों की मेहनत से ही होती है अतः मजदूरी का खर्चा बहुत अधिक होता है। अच्छे परिणाम के लिए जिस समय आवश्यकता हो इसका छिलका हटाकर दोनों को पीसकर उपयोग में लिया जाना चाहिए। भारत में इसका उपयोग चाय में होता है। इसके अलावा इसका उपयोग मीठे पकवानों में, केक पैनकेक, कुकीज और पिज्जा में किया जाता है। यह एक प्राकृतिक ताजगी प्रदान करने वाला होता है। चिंगम का यह एक आवश्यक घटक है। भोजन करने के बाद इसको खाया जाता है, इससे मुख की शुद्धि होती है, भोजन का पाचन अच्छी तरह से होता है, मुंह की दुर्गंध को दूर करता है। अस्थमा, खांसी और रक्तचाप में लाभप्रद होता है।
काली इलायची: इसकी विशेष गंध होती है, धुयें के समान गंध और स्वाद वाली होती है। मिठाइयों में इसका बहुत कम उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग राजमा, काबुली चना, सब्जियों, स्पेशल चावल की रेसिपी को बनाने में किया जाता है।
यह पेट की बहुत सी समस्याओं से निजात दिलाने वाली है । सामान्य संक्रमण तथा दंत रोग में लाभकारी है। मुंह से दुर्गंध को दूर करती है। चीन में यह मलेरिया की औषधि थी।
चेतावनी: एक या दो से अधिक हरी इलायची का ताज़ा स्वांस और पाचन के लिये प्रतिदिन सेवन तो ठीक रहता है, खाना पकाने में एक काली इलायची का सेवन करना चाहिए। अगर पित्ताशय की पथरी है तो इसका उपयोग करने से बचें क्योंकि इससे पेट दर्द हो सकता हैI49-51
15. लौंग
यह एक सूखी हुई फूल की कली है, अत्यधिक खुशबू वाली और तीखे स्वाद की होती है। इसका उपयोग बहुत सी मिठाइयों के स्वाद को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है। यह एक शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट और बहुत ही जीवन रोधी बीमारियों से बचाव करने में सक्षम है। वे रोग हैं, कैंसर। यूजिनॉल का यह प्राकृतिक स्रोत है, यह एक फेनोलिक अम्ल है, सूजन रोधी है, रोगाणु रोधी है, उत्परिवर्ती है, इसके साथ ही यह सड़न रोकने वाली औषधि, दर्द निवारक औषधि के रूप में भी कार्य करती है। मुंह की तकलीफों के लिए यह प्रभावी औषधि है। दंत चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता है तथा सिर दर्द को भी ठीक करती है। छोटे-मोटे कट में इसका चूर्ण काम आता है। गरम पेयों में खासी के लिए लाभकारी होती है।
चेतावनी: 1 दिन में 15 लॉन्ग सुरक्षित रूप से ली जा सकती हैं। यदि त्वचा में कोई शिकायत उभरती हो या ब्लीडिंग डिसऑर्डर हो तो इसका उपयोग करने से बचें।52-55
16. दालचीनी
यह वृक्ष की भूरी छाल से प्राप्त होती है। इसमें मीठी लकड़ी जैसी गंध होती है जो अत्यंत सुखदायक होती है। शोधों के अनुसार इसे मसालों में नंबर 1 मसाला माना गया है। यह शरीर के अन्य मसालों के अवशोषण में मदद करता है। यह मिठाइयों में, पेय पदार्थों में, और फलों में मिश्रित किया जाता है। यह एक प्राकृतिक खाद्य परिरक्षक है और कटे हुए फलों और सब्जियों में मिलाने से उनका रंग नहीं बदलता।
यह एक अच्छा एंटी-ऑक्सीडेंट है। इसमें फाइबर और खनिज मैन्गनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है। यह सूजन, संक्रमण विशेषकर वायरस और एलर्जी को दूर करता है। महावारी के दर्द को कम करने वाला, अधिक रक्तस्राव को रोकने और रक्त शर्करा को स्थिरता प्रदान करने वाला, भोजन के उपरांत जलन को रोकने वाला तथा श्वसन तंत्र की नलिका को स्वच्छ करता है, सर्दी के मौसम में अदरक और काली मिर्च के साथ लेने पर राहत प्रदान करने वाला होता है। केवल इसकी लकड़ी को सूंघने मात्र से दिमाग की कार्यशीलता बढ़ जाती है।
चेतावनी: प्रतिदिन 6 ग्राम तक लेना सुरक्षित होता है। इससे अधिक मात्रा में सेवन करने से एलर्जी, मुहं के छाले,लीवर की समस्या, रक्त शर्करा कम होने की समस्या और श्वसन संबंधी समस्याएं सामने आ सकती हैं।56-59
17. केसर
बैंगनी रंग के केसर के फूलों के योनिछग को अलग करके व सुखाकर केसर को प्राप्त किया जाता है। यह आकर्षक सुगंधित मसाला लाल रंग का होता है, इसमें तीखी गंध होती है और स्वाद में थोड़ा कड़वा होता है। इसकी खेती करना एक मुश्किल भरा काम है। इसमें अत्यधिक मजदूरी लगती है। लाख से भी अधिक फूलों से मात्र 1 पौंड केसर की प्राप्ति होती है। इसीलिए मसाला बहुत महंगा है और बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हो पाता है। यह मिठाइयों, पुडिंग में और चावल के व्यंजनों में और सब्जियों में मिलाया जाता है। यह एक बहुत ही आकर्षक खुशबू युक्त रंग करता है। यह पीला-नारंगी प्रदर्शित करता है।
पारंपरिक रूप से इसका उपयोग औषधि के रूप में जठरांत्र और ऊपरी श्वसन तंत्र की समस्या के लिए किया जाता है। घावों को भरने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता रहा है। यह तनाव, अवसाद, हार्मोन असंतुलन, रक्तचाप, मैकुलर डिजनरेशन और हृदय संबंधी रोगों में लाभदायक होता है। यह एलुमिनियम के द्वारा उत्पन्न टाक्सीसिटी को कम कर देता है। इसमें खनिज मैंगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है इसलिए यह हड्डियों व थायराइड में बहुत लाभदायक होता है।
चेतावनी: इसको केवल बहुत अधिक विश्वासपात्र व्यक्ति से ही खरीदना चाहिए। बहुत से शोधो द्वारा मालूम हुआ है कि इसकी 30 मिलीग्राम की मात्रा प्रतिदिन 6 सप्ताह तक लेने से कोई हानि नहीं होती है। अत्यधिक मात्रा टॉक्सिक होती हैI60-62
18. जायफल/गदा (जावित्री/जयफल)
यह दोनों फल एक ही वृक्ष नटमैग से प्राप्त होते हैं लेकिन इन के गुण अलग-अलग होते हैं। नटमैग पत्थर के समान गहरे रंग का होता है जिसके अंदर मेस होता है जो खोल के रूप में पत्थर में होता है, यह लाल रंग का होता है। यह अपने मीठे स्वाद और गर्म तासीर के लिए जाना जाता है। यह भुनी हुई सैवोरीज़ तथा मिठाइयों में मिलाया जाता है। मेस अधिक मीठा कोमल, अधिक स्वादिष्ट और सुगंधयुक्त होता है। दोनों के लाभ समान हैं।
एक चम्मच शहद और एक चुटकी भर नटमैग/मेस के उपयोग से किडनी स्टोन से मुक्ति मिल जाती है। पानी और अदरक के साथ मिलाकर पीने से यह पेट के सभी समस्याओं से छुटकारा दिला देती है। दस्तों में भी अत्यंत गुणकारी है। पेट के अल्सर, दांतो की समस्याओं, नसों की समस्याओं, अनिद्रा, हृदय, दिमाग और त्वचा रोगों में अत्यंत लाभकारी है।
चेतावनी: इसका उपयोग 1 ग्राम से अधिक नहीं करना चाहिए। 5 ग्राम की मात्रा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर देती है।63-66
19. सारे मसाले
अपने नाम के विपरीत एक प्रकार के सूखे जामुन से प्राप्त किया जाता है। देखने में यह काली मिर्च के समान होता है। लेकिन इसका स्वाद काली मिर्च, लॉन्ग, दालचीनी और जायफल के मिश्रण के जैसा होता है। यह अदरक की ब्रेड में गंध के लिए मिलाया जाता है। इसको मिठाइयों और पेय पदार्थों में भी मिलाया जाता है। इसके मीठे स्वाद के कारण हम चीनी के उपयोग को कम कर सकते हैं। इससे बनाई गई चाय पेट के फूलने की समस्या से छुटकारा दिलाती है। इसके पाउडर से बनाए गए पुल्टिस से शरीर के दर्द को दूर किया जा सकता है।67
20. लोकप्रिय मसाला मिक्स
भारतीय द्वारा बनाए जाने वाले व्यंजनों का यह एक आवश्यक घटक है। यह निम्न मसालों को मिलाकर बनाया जाता है, जीरा, धनिया, सुखी लाल मिर्च, काली और सफेद मिर्च ,सौंफ,दालचीनी, लॉन्ग, काली और हरी इलायची, जावित्री और जायफल। इनको पीसने से पहले थोड़ा सा भूना जाता है जिससे कि यह सूख जाए और इसकी गंध निकलने लगे। इन सब मसालों को ध्यान पूर्वक मिलाना चाहिए जिससे कि इसका संतुलित प्रभाव हो।68
पंच फोरन 5 साबुत मसालों का मिश्रण है – काली सरसों, मेथी, सौंफ, जीरा और निगैलाI भारत के पूर्वी भाग में इस मिश्रण का आचार बनाने में बहुतायत से उपयोग होता है। सब्जियों को बनाने के पहले इस मिश्रण को पहले तेल या घी में सेका जाता है।69
निष्कर्ष: इसमे कोई संदेह नहीं है कि यह मसाला हमारे भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए रंग, जीवन और उत्साह प्रदान करेगा, हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करेगा, और अगर समझ और देखभाल के साथ उपयोग किया जाता है तो हमें कई बीमारियों से बचा सकता है। जैसा कि श्री सत्य साईं बाबा ने सलाह दी है "मसाले, मिर्च और नमक की अधिकता से बचें।"70
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2. AVP कार्यशाला, पुट्टपर्थी, भारत, 23-29 फरवरी 2020
इस कार्यशाला का आयोजन दो वरिष्ठ चिकित्सकों10375 & 11422 ने मिलकर किया। इस कार्यशाला में 11 उत्साही व्यक्तियों ने भाग लिया जिसमें भारत के अलावा विदेशी व्यक्तियों ने भी सहभागिता की थी। दक्षिण अफ्रीका गाबोन और इंडोनेशिया के प्रतिभागियों के अलावा चार विदेशी चिकित्सकों ने फ्रांस, गाबोन, कनाडा और आयरलैंड से आकर इस आयोजन को नई ऊंचाइयां प्रदान की। फ्रांस के चिकित्सक ने अपने आपको फ्रांसीसी भाषा के अनुवादक के रूप में प्रस्तुत कियाI कार्यशाला को गति प्रदान की गई मौक और लाइव क्लीनिक के द्वारा। रोल प्ले और डेमो का प्रस्तुतीकरण वरिष्ठ चिकित्सकों11578 & 11964 द्वारा किया गया। इनके द्वारा अवधारणा को समझने, समझाने में बहुत सहूलियत हुई। केस हिस्ट्री लिखने के महत्व को हेम अग्रवाल ने बखूबी समझाया व इस बात पर बल दिया कि केस के पक्ष में दिए गए महत्वपूर्ण रिपोर्टों को भी संभाल कर रखे। डॉ जीत अग्रवाल ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि यहां उपस्थित व्यक्तियों को यह सोचना आवश्यक है कि वे यहां क्यों आए हैं। अपने स्वामी के साथ व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर उन्होंने बताया कि निस्वार्थ सेवा क्या होती है और उससे संबंधित घटनाओं को बताया। उन्होंने बताया कि SRHVP मशीन को स्वामी ने किस तरह से कृतार्थ किया और कहा कि वाइब्रॉनिक्स भविष्य की औषधि है, साथ ही यह चेतावनी भी दी कि वाइब्रॉनिक्स के बारे में बड़ी बड़ी उपलब्धियां मत गिनाना जिससे कि रोगी के दिमाग में बड़ी-बड़ी आशाएं जागृत ना हो जाए। उन्होंने कहा कि औषधि को अपने बारे में स्वयं ही जानकारी देने दो, यह तुम्हारे रोगी के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी करेगा। सत्र के अंतिम क्षणों में डॉ अग्रवाल ने कहा कि एक सफल चिकित्सक बनने के लिए तुम्हें प्रोफेशनल दृष्टिकोण अपनाना होगा और इस कार्य को करते समय तुम्हारा ह्रदय पूर्ण रूप से दया और प्रेम से संतृप्त रहना चाहिए।
3. कोविड-19 - साईं वाइब्रोनिक्स प्रैक्टिशनर्स की वैश्विक प्रतिक्रिया
कोविड-19 महामारी के फैलने के कारण हमारे समक्ष बहुत सारी चुनौतियों खड़ी हो गई है। फरवरी 2020 में पहली बार चीन के बाहर इस रोग से पहले व्यक्ति की मृत्यु हुई थी तो यूरोप के कुछ चिकित्सकों ने हम से पूछना शुरू कर दिया था और तभी से हमारी अनुसंधान टीम ने महसूस कर लिया था कि इस वायरस से मुकाबला करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि लोगों की इम्यूनिटी को बढ़ाया जाए। अत: इम्यूनिटी बढ़ाने वाली रेमेडी को तैयार किया गया जो इस बीमारी से बचाव करने में सक्षम रहेगी और 12 फरवरी को उन लोगों के पास भेज दी जिन्होंने इस बारे में जानकारी मांगी थी। 1 मार्च को प्रकाशित हुए समाचार पत्र में इस बारे में पूर्ण जानकारी प्रस्तुत की गई थी। इस महामारी के कारण सारे विश्व में स्थिति बिगड़ती जा रही थी तब 11 मार्च को WHO ने कोविड-19 को महामारी घोषित कर दिया। हमारे अनुसंधान कार्यकर्ताओं ने मार्च से कार्य शुरू कर दिया और बहुत सोच-विचार करके कोविड-19 के उपचार के लिए रेमेडी तैयार की, इसकी जानकारी तुरंत ही सब चिकित्सकों के पास भेज दी गई थी। इस संबंध में जो भी जानकारियां पूरे विश्व से प्राप्त हो रही थी उनको भी सभी चिकित्सकों तक पहुंचाया जा रहा था। हमको भी यह जानकारी मिल रही थी कि यह वायरस शरीर में किस प्रकार से कार्य करता है। अतः इस बार हमारी अनुसंधान टीम ने इस रोग से बचाव और उपचार हेतु उच्च शक्ति की रेमेडी तैयार की तथा सूचना सभी चिकित्सकों के पास 20 मार्च को प्रेषित कर दी गई। अब हमें विश्व के हर कोने से इस बारे में प्रतिक्रिया और सूचना मिल रही थी और हमने 13 अप्रैल को, इसमें एक ओर रेमेडी को मिला कर तैयार किया।
हम यहां केवल कुछ ही रिपोर्टों को प्रस्तुत कर रहे हैं।
भारत: देश में लोकडाउन घोषित होने के पूर्व ही हमारे चिकित्सकों ने अपने रोगियों को और उनके परिवारों को यह दवा वितरित कर दी थी। यह दवा मेडिकल कैंपस में भी वितरित की गई थी। लॉकडाउन के पश्चात, इसका वितरण 13 अप्रैल के तीसरे संस्करण के अनुरूप ही किया गया है। प्रेस में छपने तक समाचार प्राप्त हुआ था कि उनके अनुसार 42,903 व्यक्ति इम्यूनिटी बूस्टर का उपयोग कर रहे हैं। यह संख्या और भी अधिक होगी क्योंकि बहुत से चिकित्सकों की रिपोर्ट अभी तक आ रही है।
विदेश में: भारत से बाहर 80 देशों में चिकित्सक कार्यरत है। वहां से केवल 19 रिपोर्ट, कुछ देशो के थोड़े से चिकत्सकों से ही प्राप्त हुई है। कुल 5,088 बोतल बचाव हेतु बांटी गई थी; यूएसए (1504), यूके (1001), पोलैंड (628), बेनिन (480), फ्रांस (427), स्लोवेनिया (295), क्रोएशिया (175), रूस (124), ग्रीस (102), अर्जेंटीना (78), उरुग्वे (76), गैबॉन (48), रोमानिया (45), दक्षिण अफ्रीका (44), पेरू (29), स्पेन (13), बेल्जियम (10), लक्समबर्ग (6), और मॉरीशस (3)।
131 ऐसे रोगियों का उपचार किया गया जिनको कोविड-पाजिटिव था या कोविड-19 के मजबूत लक्षण थे। कुछ को ब्राडकास्टिंग के माध्यम से भी उपचार किया गया। व्यावहारिक रूप से उनमें से सभी 2 सप्ताह में पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए थे,लेकिन उनमे से बहुत से लोग एक सप्ताह में ही ठीक गये और कम से कम 26 लोग 2-4 दिनों में ही ठीक हो गयेI एक ऐसा भी रोगी था जो आईसीयू में था और अभी भी आईसीयू में है उसकी स्थिति में सुधार है। सामान्य अनुभव यह रहा है कि रोग शुरू होते ही उपचार शुरू कर देने से बहुत जल्द ठीक हो गए। 3 ऐसे केसेस हैं जिनमें बचाव की दवा लेने के दौरान लक्षण बढ़ गए थे लेकिन जैसे ही खुराक को बढ़ाया गया तो जल्द ही ठीक हो गए।
हमको ऐसे अनेकों पत्र मिले हैं जिनमें प्रेरणादायक किस्से दिए गए हैं कि कैसे बहुत से चिकित्सकों ने कई लोगों के जीवन में खुशी लाने के लिए खुद को आगे रखाI हम इनको आपके साथ बाद में शेयर करेंगे।
समस्त लोका: सुखिनो भवंतु! पूरे विश्व के लोग सुखी व निरोग रहे!
ओम् साईं राम