अतिरिक्त
Vol 9 अंक 5
सितम्बर/अक्टूबर 2018
1. स्वास्थय सम्बन्धी विषय
अच्छे स्वास्थ्य के लिये अंकुरित अनाजों का महत्व
‘‘एक बीज को जब बोया जाता है तो उसमें से जीवन प्रस्फुरित होता है, लेकिन जब उसको पकाया जाता है तो जीवन नष्ट हो जाता है। भोजन का अपने वास्तविक रूप में सेवन करने से आयु में वृद्धि होती है। जो भोजन पकाया नहीं जाता है उसमें प्रोटीन की मात्रा सबसे अधिक होती है, मूँग दाल और सोया में प्रोटीन की मात्रा सबसे अधिक होती है।...मटर, फलियाँ और मसूर की दाल को खाने का सबसे अच्छा तरीका है उनको भिगोकर अंकुरित करना। इस प्रकार तुम उनको उनके प्राकृतिक गुणों के साथ सेवन करते हो...” Sathya Sai Baba1
1. बीज ही स्त्रोत है!
हमारे चारों ओर स्थित पौधे बीजों से ही उत्पन्न हुये हैं, आवश्यक बुद्धि और वातावरणीय सहारे के साथ। वैज्ञानिक अभी तक यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि वास्तव में बीज के अन्दर ऐसा क्या परिवर्तन होता है कि उसके अन्दर जीवन का प्रादुर्भाव होने लगता है जो देखने वाले के चित्त को आर्कषित करता है। विशेष जैविक क्रियायें सक्रिय हो जाती हैं जो संजित ऊर्जा को पोषक तत्वों में बदलने लगती हैं जो पौधे स्वस्थ जीवंत पौधे के लिये आवश्यक हैं। वही निष्क्रिय ऊर्जा सक्रिय होकर घर पर ही मनुष्य के लिये उपलब्ध हो जाती है।1,2
2. अंकुरण क्या है?
अंकुरित चीजे बहुत से पोषक तत्वों की खजाना होती है। बीज में से उत्पन्न छोटे-छोटे डंठल ही अंकुरण कहलाये जाते है। यह क्रिया केवल बीज को पानी में कुछ घंटे तक भिगोकर रखने से ही प्रारम्भ हो जाती है।2
3. किन बीजों को अंकुरित किया जा सकता है?
सभी खाने योग्य बीज (साबुत) जैसे कि फलियाँ, दालें, मसूर, मटर को आसानी से अंकुरित किया जा सकता है। विभिन्न देशों में अंकुरित किये जाने वाले बीज हैं - मूँग, चने, गेहूँ, अल्फा-अल्फा, सूर्यमुखी, मैथी, मूंगफली, मूली, गोभी। ये सभी जैविक प्रकृति के होने चाहिये, स्वस्थ तथा ताजा होने चाहिये। उन पर कोई रासायनिक क्रिया नहीं होनी चाहिये, न ही सड़े गले या पकाये हुये होने चाहिये।1,3,4
4. अंकुरित कैसे करें?
घर पर अंकुरित करना बहुत आसान, सस्ता तथा शीध्र करने का तरीका है। छोटे मात्रा से शुरू करें। हमें बीजों को और उनको अंकुरित करने में सफाई का ध्यान रखना चाहिये।1,3,4
- सबसे पहले बीजों को साफ पानी से धोलें फिर उनको एक साफ बर्तन में रख लें।
- बीजों की मात्रा से 3 या 4 गुना पानी डाले और उसे ढ़क दें।
- कुछ समय के लिये कमरे के तापक्रम पर छोड़ दें ताकी बीज पानी को सोख सकें। यह समय बीज की किस्म पर निर्भर होता है। कुछ बीज के लिये यह समय 30 मिनट का ही होता है जबकि सामान्य तौर पर 6-8 घंटे का समय लग जाता है। ठीक प्रकार पानी सोखने की प्रक्रिया से ही बीज में जीवन का संचार शुरू होता है। बहुत देर तक पानी में रखने से बीज सड़ कर किणबित होने लगते है। 6 से 8 घंटे के बाद पानी को बदल देना चाहिये।
- पर्याप्त समय तक पानी सोख लेने के बाद पानी को निकाल देना चाहिये क्योंकि अंकुरण पानी में नहीं होता है। निष्कासित पानी को घर के अन्य़ पौधों में डाला जा सकता है।
- पानी को सोखे हुये बीजों को एक बार साफ पानी से धोले और फिर उनको साफ बर्त्तन में डाल कर जालीदार कपड़े से ढ़क दें जिससे कि बर्त्तन में वायु का आवागमन बना रह सके।
- बर्त्तन को कमरे के तापक्रम पर ऐसे स्थान पर रखें जहाँ सीधे सूरज की रोशनी न पड़ती हो। अंधेरा या कम रोशनी बाला स्थान सबसे उपयुक्त होता है। अंकुर प्रस्फुटित होने के बाद उन्हें धूप में रखा जा सकता है। ऐसा करने से अंकुरित बीजों में क्लोरोफिल बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसके साथ बहुत से अन्य पदार्थों का भी संश्लेषण प्रारंभ हो जाता है।
- दिन में 2-3 बार उनको धोना चाहिये जिससे कि ये स्वच्छ बने रहें तथा उनको पानी भी मिलता रहे।
- अंकुरण की क्रिया पूरी हो जाने पर उनको भली भाँति धोकर पानी को निकाल दे।
- अंकुरित बीजों के पोषक तत्वों को बचाये रखने के लिये या तो उन्हें उसी समय उपयोग में ले लेना चाहिये या फिर उन्हें फ्रीज़ में रख देना चाहिये।1,3,4
- अंकुरण का समय बीजों की प्रकृति पर निर्भर होता है। धोने की संख्या, पानी का तापक्रम, वातावरण का तापक्रम भी अंकुरण की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। छोटे बीज अंकुरण के लिये 10-12 घंटे का समय लेते हैं (मूंग और बीन्स)। बड़े बीज अंकुरण के लिये 3 से 4 दिन का समय लेते है।
5. अंकुरित ही क्यों?
सभी कच्चे बीजों में उनके अपने स्वाभाविक गुण होते हैं पोषक तत्वो का विरोध करने वाले, एन्जाइम अवरोधक जो शरीर के पोषक तत्वों को अवशोषित और आत्मसात करने से रोकते हैं। अध्ययन के फलस्वरूप इनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है विशेषकर पोषक तत्वों जैसे कि खनिज लवणों, विटामिन्स आवश्यक फैटी अम्ल, रेशे, एण्टी-ऑक्सीडेन्ट और एन्जाइम के अवशोषण में। स्टार्च से वायु बनाने का कार्य करने वाले कारकों का भी नाश करते हैं।3,4,6,9
अध्ययन5 से यह भी मालुम हुआ है कि अंकुरित दालों में कैल्शियम और विटामिन C की मात्रा भी बढ़ जाती है। पोषक तत्व विरोधी पदार्थ कम हो जाते हैं तथा प्रोटीन का अवशोषण बढ़ जाता है। एक अन्य अध्ययन7 के अनुसार, बीजों को एक निश्चित समय तक अंकुरित करने से हाइड्रोलायटिक एन्जाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है, कुछ आवश्यक ऐमीनो अम्ल की मात्रा, कुल शुगर की मात्रा, विटामिन B‐ग्रुप में बढ़ोत्तरी होती है तथा सूखे तत्वों, स्टार्च और पोषकतत्वो के विरोधी तत्व की संख्या में कमी हो जाती है। बीज से संरक्षित प्रोटीन और स्टार्च जल्दी पच जाते है क्योंकि अंकुरण के समय इनका आंशिक जल अपटन हो जाता है। पोषक तत्वों में बढ़ोत्तरी कई बातों पर निर्भर होती है जैसे कि अनाज का प्रकार, बीज की किस्म और अंकुरित बनने का वातावरण। सूखे अनाज में विटामिन नगण्य रूप में होता है लेकिन 7 दिनों के अंकुरण के पश्चात् यह काफी मात्रा में होता है।8
6. अंकुरण के लाभ
ताजा सब्जियों में अंकुरित दाले प्रथम स्थान रखती हैं तथा अकल्पनीय रूप से हमारे लिये लाभकारी होती है1,3,4,6,9,11। इनमें से कुछ का वर्णन निम्न प्रकार से हैः
- तुरंत ही ऊर्जा प्रदान करती है, जीवन युक्त होती है अतः आसानी से पच जाती है और शरीर की ऊर्जा को बनाये रखती है।
- अशुद्धियों को दूर करके रक्त को शुद्ध बनाती है।
- प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाते हैं तथा रक्त के कोषों को फ्री रेडिकल से होने होने वाले नुकसान से बचाते हैं।
- शरीर में अम्ल-क्षार का संतुलन बनाये रखकर पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं।
- इनमें कैलोरी की मात्रा कम होती है अतः मोटापे को कम करते हैं तथा ऊतकों और मांसपेशियों में शक्ति का संचार करते हैं।
- ब्लड प्रैशर को नियमित रखते हैं और हृदय संबंधी बीमारियों में लाभप्रद होते हैं।
- रक्त शर्करा का संतुलन बनाने में सहायक हैं तथा गठिया रोग को समाप्त करते है।
- बढ़ती हुई उम्र की बीमारियों से रक्षा करते हैं।
- मासिक धर्म शुरू होने और मैनोपाज़ के समय में होने वाली तकलीफों में भी आराम दिलाते हैं।
- शरीर की त्वचा, लीवर व अन्य तंत्रों को सुचारू बनाते हैं।
- बहुत सी बीमारियों में यह रामबाण हैं जिनमें कैंसर भी शामिल है। इनमें उपस्थित एण्टीऑक्सीडेंट के कारण यह बहुत उपयोगी होते हैं।
संपूर्ण दृष्टि से, बिना पकाया हुआ अंकुरित अनाज बहुत अच्छी किस्म के पौष्टिक तत्वों का खजाना होते हैं अतः हमारे भोजन का यह एक आवश्यक अंग होना चाहिये। उसमें थोड़ा नमक और नींबू का रस मिलाकर उसे स्वादिष्ट बनाया जा सकता है। इसको सलाद के साथ मिलाया जा सकता है। खाने के पहले या बाद में भी इसे खाया जा सकता है या फिर दोनों भोजनों के बीच में भी स्नैक्स के रूप में खाया जा सकता है।
यदि स्वंय की पसंद या सुविधा या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण अंकुरित अनाज का सेवन संभव नहीं हो तो पानी में भिगोकर खा लेना ही लाभप्रद होता है। साबुत अनाज, फलीयों, दाले जब रात को भिगोकर पकाई जाती है तो वे अधिक पौष्टिक हो जाती है। मेवों को अंकुरित नहीं करना चाहिये, उन्हें सिर्फ भिगोना चाहिये।4 बादाम को यदि रात भर भिगोकर सबुह छील कर खाने से बहुत लाभ होता है।12
7. सावधानियाँ
- कमजोर इम्यून तंत्र, बच्चों, वृद्ध, गर्भवती महिलाओं को कच्चे अंकुरित बीजों के सेवन से परहेज करना चाहिये। वे उन्हें भाप देकर खा सकते है।13-14
- राजमाँ अंकुरित होने पर विषाक्त हो जाता है अतः उनको पकाकर ही खाना चाहिये।13
- गर्म और नम वातावरण जो अंकुरण के लिये आवश्यक है वह बैक्टीरिया की ग्रोथ के लिये भी उपयुक्त होता है। भोजन विशेषज्ञों के अनुसार6, अंकुरण के समय पर संदूषण की संभावना भी रहती है क्योंकि उस समय जीवित एन्जाइमस विषैले बैक्टीरिया जैसे कि सैलमोनेला और e-coli को जन्म दे सकते हैं। स्वास्थ्य संबंधी सावधानियाँ को रखते हुये भी हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि अंकुरित करने के बाद उसे कुछ समय के लिये फ्रिज में रखना चाहिये। फिर उसे 3-4 दिन में खा लेना चाहिये।13-14
References and Links:
- https://www.slideshare.net/jannap/teachings-ofsathyasaibaba The teachings of Sathya Sai Baba on health by Srikanth Sola MD page 10. Also Appendix B.
- https://wonderpolis.org/wonder/how-do-seeds-sprout
- https://articles.mercola.com/sites/articles/archive/2015/02/09/sprouts-nutrition.aspx
- https://draxe.com/sprout
- https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4573095
- https://food.ndtv.com/food-drinks/6-benefits-of-sprouting-and-the-right-way-to-do-it-1691887
- https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/2692609
- https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/23088738
- https://foodfacts.mercola.com/sprouts.html
- www.thefitindian.com/benefits-of-eating-sprouts-in-our-daily-diet
- http://www.sproutnet.com/Resources-Research-on-the-Role-of-Sprouts-in-Wellness-and-Disease-Prevention
- http://www.saibaba.ws/articles/medicaladvices.htm
- https://www.precisionnutrition.com/all-about-sprouting Caution
- http://www.foodsafety.gov/keep/types/fruits/sprouts.html Caution
2. 108CC कॉम्बो की पुस्तक की सूची का परिशिष्ट
108CC कॉम्बो की पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2011 में किया गया था। पिछले सात वर्षों में उसमें कई परिवर्तन/संयोजन किये गये हैं जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है। हमें खेद है कि हम इस परिवर्त्तन को पिछले समाचार पत्र में न दे सके।
Addison's disease 6.1 Adhesions 21.1
Adrenal Gland Deficiency 6.1 Alopecia 11.2+12.4
ASD 3.6+15.5+18.1 Asperger’s 15.5
Autism spectrum disorder 3.6+15.5+18.1 Baldness 11.2+12.4
Blepharitis 7.3 Cholera 4.6+4.10+9.3
Concentration weak 17.3+18.1 Condyloma 8.5/14.2+21.1
Death approaching 15.1 Dengue 9.3+3.1
Down’s syndrome 3.6+18.2 Epithelioma 2.1+2.3+21.1
Extremities painful, circulation 3.7 Eye lashes in-turning 7.1
Eye stye 7.3 Genital cyst/wart, female 8.5+21.1
Genital cyst/wart, male 14.2+21.1 Genital herpes female 8.5+21.8
Genital herpes male 14.2+21.8 Head Injury 10.1+18.1+20.7
Hysteria 15.1 Involuntary semen 14.3
Irritable bladder 13.3 Leucoderma 21.2+21.3+12.4
Lung cancer 2.1+2.3+19.3+19.6 Mycoplasma pneumonia 19.6+19.7
Multiple sclerosis (MS) 18.4 + 12.4 Nose bleed 10.1
Oral Candida 11.5 Plantar fasciitis 20.1+20.4
Polymyalgia Rheum.(PMR) 20.2+20.4+20.5 Prog. Syst. Sclerosis 12.4+15.1+21.2+21.3
Prostate – enlarged 13.1+14.2 Prostatitis 14.2+13.1
PSP Syndrome 7.1+15.1+18.4+18.6 Pulmonary hypertension 3.1+3.6+19.3
Retinitis pigmentosa 7.1+7.2 Salmonella 4.6+4.8
Scars internal 21.1 Sinusitis due to allergy 19.2+4.10
Skin dry 21.1 Spinal Injury 10.1+20.5
Spine – degeneration 20.5 Teething 11.5
Typhoid-recovery stage 9.1+4.11 Vitiligo 12.4+21.2+21.3
Walking pneumonia 19.6+19.7 Zika virus 3.1+9.3
3. AVP कार्यशाला पुट्टपर्थी, भारत 22-26 जुलाई 2018
इस पाचँ दिवसीय कार्यशाला में 9 अभ्यार्थियों ने AVP की सफलतापूर्वक ट्रेनिंग ली। (7 भारत के, जिन्में 2 पुट्टपर्थी* व 2 विदेश के थे। एक अभ्यार्थी थाईलैन्ड का व एक गालोन से था)। भारत के दो चिकित्सक जिन्होंने कई वर्ष पूर्व ट्रेनिंग ले ली थी अपने ज्ञानवर्धन के लिये इस ट्रेनिंग में भाग लिया था। कार्यशाला का संचालन अनुभवी दो चिकित्सकों10375&11422 द्वारा प्रतिदिन परस्पर संवादात्मक रूप से किया गया। यह प्रशिक्षण बहुत ही प्ररेणादायक रहा। वरिष्ठतम चिकित्सक डा. जीत अग्रवाल ने यू.के. से स्काईप के माध्यम से प्रतिभागियों से प्रतिदिन संपर्क बनाये रखा। इस प्रशिक्षण का मुख्य आर्कषण एक जीवंत सत्र था जिसमें चिकित्सक हेम अग्रवाल ने किसी रोग का प्रभावी ढ़ग से विवरण तैयार करना सिखाया। गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर उन्होंने स्वामी के समक्ष शपथ दिलवाई।
*इनमें से एक एलौपैथिक डॉक्टर है और दूसरे के पास लंबे समय से वाइब्रो सेवा में कार्यरत उनके पिता जी के साथ काम करने का लंबा अनुभव है। पाठ्यक्रम के पूरा होने के तुरंत बाद, उन्होंने महिलाओं की सेवा दल इमारत में सेवा शुरू कर दी।
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4. AVP कार्यशाला और रिफ्रेशर फ्रांस में 8-10 सितम्बर 2018
फ्रांस के समन्वयक और ट्रेनर01620ने तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया, यह कार्यशाला उनके होने वाले चिकित्सक के घर पर आयोजित की गई। कुल 8 प्रतिभागी थे - 2 नये प्रतिभागी, 5 वर्त्तमान में कार्यरत चिकित्सक तथा नया प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सक03572 थे। गाबोन से (साऊथ अफ्रीका, स्काईप के माध्यम से) थे। दोनो नये प्रतिभागी बहुत ही ध्यान देने वाले और उत्तरदायी थे। कार्यशाला के अन्त में 108CC बॉक्स को ग्रहण करते समय वे बहुत भावुक हो गये थे। वह इतने उत्साही थे कि स्काईप पर डा० अग्रवाल के साथ विदाई के समय बातचीत के दौरान ही दो रोगियों ने दरवाजा खटखटाया। नये चिकित्सको ने उन्हें उपचार दिया। वर्त्तमान में कार्य कर रहे चिकित्सों ने अनुभव किया कि कार्यशाला में आपसी संवाद बहुत उत्साहजनक और ज्ञानवर्धक अनुभव था।
5. तेलंगाना राज्य में वाइब्रोनिक्स, भारत 9 सितम्बर 2018
दो जिलों की संयुक्त बैठक में चिकित्सक11585 को राज्याध्यक्ष और श्री सत्य सेवा संगठन के सभी पदाधिकारियों के समक्ष विचार व्यक्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। उस बैठक में अन्य गणमान्य अतिथि थे दोनों जिलों के जिला अध्यक्ष, सभी समितियों समन्वयक तथा अन्य सभी पदाधिकारी। यह स्वामी की कृपा ही थी कि इतने गणमान्य लोगों के समक्ष चिकित्सक ने 25 मिनट तक वाइब्रोनिक्स पर वार्ता जारी रखी। उन्होंने बताया कि किस प्रकार यह उपचार रोगी के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यत्मिक स्तर पर कार्य करता है। इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है और परिणाम आश्चर्यजनक होते है। उन्होंने जिले में चल रहे मेडिकल कैम्पस के बारे में भी संक्षिप्त ब्यौरा प्रस्तुत किया। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि इन मेडिकल कैम्पस को कहीं भी बड़ी आसानी से आयोजित किया जा सकता है। उन्होंने यह भी बतलाया कि चिकित्सक11592 के साथ मिलकर सत्य साई मंदिर, पलवोमचा में साप्ताहिक कैम्पस में उपचार किया है। यह वार्ता सुनकर वहाँ उपस्थित सभी पदाधिकारियों के मन में वाइब्रोनिक्स के प्रति रूचि जागृत हो गई। बैठक के पश्चात्, दो चिकित्सकों ने 27 रोगियों का, जिनमें कुछ पदाधिकारी भी थे, का उपचार किया। इस प्रकार वाइब्रो के प्रति रूचि जागरण से राज्य में वाइब्रोनिक्स के विस्तार को बढ़ावा मिलेगा।