साई व्हाइब्रियोनिक्स पत्रिका

" जब आप किसी हतोत्साहित, निराष या रोग ग्रस्त व्यक्ति को देखते हो, वहीं आपका सेवा क्षेत्र है " Sri Sathya Sai Baba
Hands Reaching Out

Vol 10 अंक 3
मई/जून 2019
मुद्रणीय संस्करण


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डॉ० जीत के अग्रवाल की कलम से

प्रिय चिकित्सकों,

हमारे प्रिय भगवान बाबा के आराधना दिवस पर लिखते हुये मुझे अपार प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है इस दिवस को विश्व मानव मूल्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। एक माह से आराधना दिवस तक आध्यात्मिक साधना के विषयों पर चर्चायें होती रही जिन पर चल कर हम अपने हृदयों को निर्मल बना सकें और हमारा रूपान्तरण हो सके यह चर्चाये भक्तगणों के मध्य प्रेम और क्षमाशीलता जैसे गुणों को अपनाने के बारे में ही होती रही। प्रशांति निलयम में इस दिन भगवान बाबा के संदेश का विषय भी रूपान्तरण के संबंध में ही था। हम भी यह विश्वास करते है कि एक वाइब्रो चिकित्सक में भी प्रेम और क्षमाशीलता के गुणों का होना आवश्यक है, इन्हीं गुणों के कारण वह निस्वार्थ सेवा कर सकेगा। मुख्य बात तो यह है कि वाइब्रो सेवा करने से व्यक्ति तथाकथित अंतरों से ऊपर उठकर अपना रूपांतरण करने में सक्षम हो जाता है। स्वामी कहते हैं ‘‘जीवन रूपी समुद्र को पार करने के लिये तपस्या करना तीर्थ यात्रायें करना, शास्त्रों का अध्ययन करना, जप करना ही काफी नहीं हैं, इसको पार करने के लिये सेवा करना आवश्यक है,.......प्रत्येक व्यक्ति की सेवा यह समझ कर करों कि उसमें भी वही भगवान हैं जो तुम्हारे अन्दर हैं’’...Sathya Sai Speaks, vol 35. आइये हम सब इस बात को अपने हृदयों और मस्तिष्क में अंकित कर लें।

हम भाग्यशाली हैं कि हम बहुत से उन चिकित्सकों के साथ कार्य कर रहे हैं जो स्वामी के उक्त संदेशानुसार चल रहे हैं। मैं बड़े दुःख के साथ आप लोगों को सूचित कर रहा हूँ कि हमारे दो दिग्गज चिकित्सक डा० नन्द अग्रवाल10608…भारत 9 अप्रैल 2019 को और श्रीमती जोजा मेन्टस01159…क्रोशिया16 अप्रैल 2019 को स्वामी के चरणों में विलीन हो गये हैं। हमारी वाइब्रो मिशन में दोनो ही उच्च कोटि का नेतृत्व प्रदान करने वाले थे। डा० नन्द अग्रवाल वर्ष 2012 से ही वरिष्ठ चिकित्सक का कार्य अपनी धर्म पत्नी02817...भारत, के साथ बैंगलोर और मुंबई में कर रहे थे। उन्होंने यहाँ पर कई प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया था। धर्म क्षेत्र और अपने घर पर रोगियों की चिकित्सा करते थे और दोनों ही स्थानों पर रोगियों की बढ़ती संख्या एक उदाहरण थी। व्यक्तिगत तौर पर मैंने एक करीबी दोस्त और निष्ठावान साथी को खो दिया है। जोजा मिन्टस एक समर्पित दयालु चिकित्सक थी। वह 1999 से ही यह कार्य कर रही थी। वह क्रोशिया के SSIO नेशनल काऊंसिल की अध्यक्ष थी। पेनक्रिया के कैंसर से बड़ी हिम्मत के साथ जुझते हुये उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये। साई संगठन और वाइब्रो सेवा में अपने अनुपम उदाहरण से वे सदैव याद की जाती रहेगी।

वैश्विक स्तर पर होने वाली स्थानीय मासिक बैठकों में मुझे एक स्वस्थ और बढ़ती हुई प्रवृत्ति का अनुभव हुआ है। मैं इस उत्साह अभियान और प्रतिबद्धता को देखकर बहुत प्रोत्साहित हुआ हूँ। ये चिकित्सक इन बैठकों का आयोजन करते हैं उसमें विचारों को आदान प्रदान करतें हैं। जहाँ इस प्रकार की बैठकों का आयोजन संभव नहीं होता है उसके लिये हमें इन्टरनेट प्रोद्योगिकी का उपयोग करना चाहिये। (स्काईप या अन्य कोई साधन जिससे मुलाकात हो जाये) और हमारे बीच की भौतिक दूरी समाप्त हो जाये। मैं चिकित्सकों को एक सलाह देना चाहता हूँ कि प्रत्येक बैठक से पहले किसी एक विषय का चयन करके जिस पर बैठक में चर्चा की जानी है। सभी चिकित्सक पूरी तैयारी के साथ उसमें भाग लें तथा अपने अनुभवों का आदान प्रदान करें। इससे बैठकों की उपयोगिता बढ़ जावेगी। इसके बाद व्यापक रूप से वाइब्रोनिक्स समुदाय के साथ साझा की जाने वाली चर्चाओं और निष्कर्षों का सारांश दिया जाना चाहिए।

कार्यशालाओं के संचालन के समय मैंने यह महसूस किया है कि चिकित्सकों में वाइब्रो प्रैक्टिस के प्रति रूझान बढ़ रहा है और अपनी उन्नति के लिये विभिन्न तकनीकी गतिविधियों को सीखने की जिज्ञासा बढ़ रही है (रूपांतरण की बढ़ने की प्रवृत्ति)। यह एक अच्छा संकेत है। यद्यपि हम जानते हैं कि सकारात्मक विचारों से हम में क्षमाशीलता, प्रेम, दया तथा सहनशीलता के गुण आ जाते हैं और उपचार करते समय यह चिकित्सक पर प्रभावी रहते हैं। मैं यह विश्वास करता हूँ कि जब हम सचेतन मन और सकारात्मक विचारों के साथ उपचार करते हैं तो आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होते हैं। एक मशहूर बौद्ध महंत Thich Nhat Hanh के अनुसार, ’’हमारी उपस्थिति ही दूसरों के लिये सबसे मूल्यवान उपहार होता है। जब हम किसी को सच्चेतनमन से प्रेम करेंगे तो वह फूल की तरह खिल उठेगा।’’

निकट भविष्य में ईश्वरम्मा दिवस आने वाला है, हमें प्रयास करना चाहिये कि जो भी हमारे संपर्क में आये उसे हम मातृभाव से प्रेम करें। तुम सभी प्रसन्न रहो!

साईं की प्रेममयी सेवा में

जीत के अग्रवाल

 

ल्यूकोरिया 10596...भारत

एक 38-वर्षीय महिला 6 वर्षों से बदबूदार सफेद पानी के स्त्राव के कारण बहुत परेशान थी। इस कारण से वह बहुत कमजोर हो गई थी और अपने दैनिक कार्यों को पूर्ण करने में असमर्थ हो गई थी तथा अवसाद में घिरती जा रही थी। उपचार का खर्च वहन करने में असमर्थ थी अतः कोई उपचार नहीं ले रही थी। 17 नवम्बर 2017 को उसको निम्न उपचार दिया गया :

CC3.7 Circulation + CC8.1 Female tonic + CC8.5 Vagina & Cervix + CC12.1 Adult tonic + CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC21.3 Skin allergies…TDS

5 दिनों में ही स्त्राव तथा कमजोरी में 25% का लाभ हो गया। एक माह के उपचार से स्त्राव व बदबू  समाप्त हो गये। वह अब न तो कमजोरी महसूस करती थी और नहीं अवसाद से ग्रस्त थी। 17 दिसम्बर 2017 को, खुराक को BD कर दिया गया। दो माह बाद खुराक को OD कर दिया गया। रोगी अभी भी उपचार OD में ले रही है, वह नहीं चाहती है कि खुराक को और कम कर दिया जाये। अप्रैल 2019 तक उसे कोई समस्या नहीं हुई हैं।

 

हथेली में धब्बे 10596...भारत

एक 51-वर्षीय महिला को हथेलियों में एक वर्ष से गहरे काले धब्बे थे और उनमें लगातार खुजली होती रहती थी। उस महिला ने ऐलोपेथिक उपचार पर काफी खर्च कर दिया था परन्तु उसे कोई लाभ नहीं मिला था। त्वचा की स्थिति से वह अवसाद में रहती थी। उसका अनुमान था कि कपड़े धोने के कारण उसकी त्वचा पर साबुन के कारण यह स्थिति हुई है। 9 सितम्बर 2016 को उसको निम्न उपचार दिया गया :  

CC3.7 Circulation + CC10.1 Emergencies + CC21.2 Skin infections + CC21.3 Skin allergies…TDS 

मौखिक रूप से एवं इसी दवा को तेल में मिलाकर बाह्य उपयोग के लिये कहा गया।

2 सप्ताह में ही जलन समाप्त हो गई तथा दोनों हथेलियों में धब्बे भी 25% तक कम हो गये थे। अगले दो सप्ताह के उपचार से धब्बे और कम हो गये थे। 14 सप्ताह के उपचार से 21 दिसम्बर 2016 को धब्बे बिलकुल समाप्त हो गये। वह विश्वास नहीं कर नहीं कर पा रही थी इस प्रकार का प्रभावी उपचार वह भी निःशुल्क  संभव है। वह इस उपचार के प्रति आभार से भर गई। वह अब अवसाद ग्रस्त भी नहीं थी। 2 माह के लिये खुराक को OD करके उसे बन्द कर दिया गया। उपचार बन्द करने के दो माह तक उसे कपड़े धोने पर भी कोई परेशानी नहीं हुई थी।

 

 

 

. जीर्ण नाक बंद 10596...भारत

मुंबई के वृद्ध आश्रम में रहने वाले एक 82 वर्षीय व्यक्ति को पिछले 8 वर्षों से नाक के बंद रहने की समस्या थी, उन्हें सायनुसाइटिस की भी शिकायत थी। इस समस्या के कारण उन्हें ठीक से नींद भी नहीं आती थी। उन्होंने ऐलोपैथिक उपचार भी करवाया परन्तु उससे कोई आराम नहीं मिला। जनवरी 2019 से वृद्ध आश्रम रहने लगे और उन्होंने ऐलोपैथिक उपचार को बन्द कर दिया था। वह अपनी बिमारी के कारण तनाव ग्रस्त रहता था और कोई उसकी मदद कर दे, ऐसी वह इच्छा रखते थे।

19 जनवरी 2019 को उनको निम्न उपचार दिया गया :
CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC19.2 Respiratory allergies + CC19.5 Sinusitis…TDS

चिकित्सा के एक माह बाद वृद्ध आश्रम में जाने पर रोगी ने बतलाया कि उपचार को 3 दिन तक लेने के बाद से ही उसे अच्छी नींद आने लग गई थी। बंद नाक और सायनुसाईटिस भी धीरे-धीरे ठीक होने लगे। अब वह सब ठीक हो गये हैं, दर्द भी नहीं है। 19  फरवरी को खुराक को  OD कर दिया गया। चूँकि इस दवा से उन्हें नींद अच्छी आने लगी थी अतः वह खुराक को कम नहीं करना चाहते थे। अप्रैल 2019 तक उन्हें यह समस्या दुबारा नहीं हुई, वह अब बहुत प्रसन्न हैं तथा उपचार को OD के रूप में ले रहे है।

 

 

वाचा गायब 02836...भारत

30 मार्च 2010 को एक 32-वर्षीय युवक जब सुबह उठा तो गले से आवाज नहीं निकल रही थी अतः वह अत्यधिक रूप से बेचैन हो गया। तुरंत ही ऐलोपैथिक उपचार दिया गया परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। तीन माह पश्चात् उसके आॅफिस के नियंत्रक अफसर को वाइब्रोनिक्स के बारे में पता चला तब उन्होंने चिकित्सक से रोगी का उपचार करने का अनुरोध किया।

20 जून 2010 को रोगी को निम्न उपचार दिया गया:
#1. CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC18.1 Brain disabilities…TDS

#2. CC19.7 Throat chronic…TDS

8 दिन में ही रोगी की आवाज वापस आ गई। उसने स्वंय ही चिकित्सक को यह सूचना दी, वह बहुत खुश था। उसको दोनों औषधियों को लेते रहने की सलाह दी गई। 2 माह के बाद वह बिल्कुल स्वस्थ्य हो गया था अतः उसने स्वंय ही उपचार को बन्द कर दिया। 4 वर्ष बाद जब उसकी चिकित्सक से मुलाकात हुई तो उसने बतलाया कि वह बिलकुल स्वस्थ्य है और रोग ने उसे दुबारा परेशान नहीं किया है।

 

 

साइकिक अटैक 02836...भारत

15 सितम्बर 2010 को, एक 35-वर्षीय हुष्ट-पुष्ट महिला को उसका पति चिकित्सक के पास लेकर आया। पिछले 10 वर्षों से वह मानसिक आघातों से पीड़ित थी। चिल्लाना, गालियाँ देना, बच्चों को और कभी-कभी अपने पति को पीटना यह उसकी आदत बन गई थी। वह पिछले 3 वर्षों से ऐलोपैथिक उपचार करवा रही थी लेकिन उससे कोई लाभ नहीं मिला।

 

#1. CC15.2 Psychiatric disorders…TDS

चिकित्सक ने उसे कुछ देर के लिये शांत होकर बैठने के लिये कहा और फिर उसके मुख में दवा की पहली खुराक खिलाई। उसको आँखे बन्द करके गहरी सांस लेने के लिये कहा गया और 5 मिनट तक अपनी सांसों पर ध्यान केन्द्रित करने की सलाह दी, उस दौरान चिकित्सक प्रार्थना करता रहा। प्रार्थना के दौरान चिकित्सक ने देखा कि एक 4 इंच लम्बी छाया रोगी के मुँह के दाहिनी ओर से निकल कर बायीं ओर जा रही है। रोगी रोने लगी, चिल्लाने लगी और फिर शांत हो गई। 

3 दिन के बाद सूचना मिली कि वह अब पहले की अपेक्षा थोड़ा शांत हो गई है। लेकिन गालियाँ देने का सिलसिला अभी कायम था। उसको ठीक से नींद भी नहीं आती थी अतः काम्बो #1 को निम्न कॉम्बो मे मिला दिया गया। अब उपचार :
#2. CC15.6 Sleep disorders + #1…TDS से शुरू कर दिया गया।

एक सप्ताह बाद, वह अपने पति के साथ चिकित्सक के यहाँ पहुँची और उनको बतलाया कि कैसे यह आघात शुरू हुये। किशोरावस्था में वह एक नदी में तैर रही थी, तैरते हुये ही उसके तलवे से कोई चीज़ टकराई। उसने उस वस्तु को उठाया, वह एक मूर्ति थी। वह उसे घर ले आई। इसके दस वर्षों के बाद उसे मानसिक आघात होने लगे। एक पंडित जो रहस्यमय विज्ञान का अच्छा ज्ञाता था ने महिला से मूर्ति को नदी में विसर्जित करने के लिये कहा। महिला ने ऐसा ही किया लेकिन इससे भी महिला को कोई आराम नहीं हुआ। फिर भी एक माह तक वाइब्रो उपचार लेने से वह काफी शांत हो गईं थी और आघातों की तीव्रता भी कम हो गई थी। अतः उसने स्वंय ही ऐलोपैथिक औषधियों को लेना बन्द कर दिया।

उसने रेमेडी  #2 को 3 माह तक लिया जिससे वह बिल्कुल शांत हो गई थी तथा अपशब्दों का उच्चारण भी समाप्त हो गया था। रोगी से चिकित्सक का संपर्क 2017 में हुआ रोगी ने चिकित्सक के प्रति आभार प्रकट किया और बतलाया कि अब वह बिलकुल स्वस्थ है।

 

लूपस 03571...थाईलैंड

चिकित्सक का एक साथी जो 26 वर्ष की थी, इस रोग से पीड़ित हो गई। उसके मुँह और बाँहों पर चकत्ते हो गये थे, कान के भीतरी भाग में ललाई थी, यह घटना जून 2018 की है। उसके न केवल मुँह पर सूजन थी बल्कि मुँह पर चकत्ते बड़े थे लगभग 4cm के। रोगी ने फोटो देने से मना कर दिया। उसको ऐलर्जी विरोधी औषधि सिट्रेजीन दी जा रही थी। जिसे वह दिन में दो बार लेती थी। उसके चर्म रोग विशेषज्ञ ने उसे कोई अन्य औषधि का सेवन न करने की हिदायत दी थी। जब वाइब्रो चिकित्सक ने उसे औषधि दी तो उस रोगी ने उक्त आधार पर औषधि का सेवन करने से मना कर दिया। 2 दिन पूर्व त्वचा की बायोप्सी की गई थी जिसकी रिपोर्ट आनी थी। जब चिकित्सक ने रोगी को यह बतलाया कि इस दवा के कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं तो वह बाह्य उपयोग के लिये सहमत हो गई।

अतः 25 अगस्त 2018 को चिकित्सक ने उसे निम्न उपचार दिया :
CC8.1 Female tonic + CC21.2 Skin infections + CC21.3 Skin allergies + CC21.7 Fungus…TDS अति शुद्ध नारियल के तेल में, बाह्य उपयोग के लिये ।

3 दिन पश्चात् चिकित्सक ने महसूस किया कि बाँहों और चेहरे के चकत्ते कम हो रहे हैं। कानों के अन्दर की लालिमा .समाप्त हो गई थी। पन्द्रह दिनों के उपचार से चेहरे की सूजन, चकत्ते आदि समाप्त हो गये थे। अगले दो सप्ताह के बाद, रोगी ने सिट्रेजीन का सेवन बन्द कर दिया लेकिन वाइब्रो उपचार को वह 20 अक्टूबर 2018 तक लेती रही। स्वस्थ हो जाने के कारण उसने उपचार बन्द कर दिया। रोगी के अन्य स्थान पर चले जाने के कारण चिकित्सक से उसका संपर्क नहीं हुआ परन्तु उसने यह सूचना भेज दी थी कि बायोप्सी की रिपोर्ट आगई है तथा उसे लूपसरोग हो गया था परन्तु अभी वह ठीक है। 30 अप्रैल 2019 तक उपचार को 6 माह हो गये थे परन्तु रोगी को शिकायत दुबारा नहीं हुई।

 

एर्लिकियोसिस,पनोस्टाईटिस इन डॉग 03571...थाईलैंड

 जुलाई 2018 में  AVP का प्रशिक्षण प्राप्त कर के जब चिकित्सक अपने घर पहुँची तो वह अपने मित्र के घर अपने दो वर्षीय डॉग को लेने पहुँची तो उसको देखकर उसे बहुत धक्का लगा कि उसका डॉग ब्राउनी पक्षाघात से पीड़ित था (देखें चित्र)।  

वह हड्डियों और मांस के पिंड की भाँति दिख रहा था जैसे कि उसमें प्राण ही न हों। जिस क्षण चिकित्सक ने उसे उठाया और पुचकारा वह मुँह के बल वापस जमीन पर गिर गया, वह अपने शरीर के भार को वहन नहीं कर पा रहा था। वह थका हुआ लग रहा था और उसका वज़न भी 4 kg कम हो गया था।

6 अगस्त 2018 को चिकित्सक ने उसको निम्न औषधि को उसके पानी के बर्तन में मिलाकर दी:
#  1. CC1.1 Animal tonic + CC18.4 Paralysis + CC20.4 Muscles & Supportive tissue + CC20.5 Spine + CC20.7 Fractures…6TD

 3 दिन में भी उसकी स्थिति में परिवर्तन नहीं होने के कारण वह उसे पशुओं के अस्पताल में ले गई। वहाँ उसके रोग का निदान टिकबोर्न संक्रमण जिसे एर्लिकियोसिस भी कहते है के रूप में किया गया जो कि ब्राउन टिक के काटने से फैलता है। उसे ऐन्टीबॉयोटिक्स और दर्द निवारक औषधियों दी गई।

उसके साथ ही 9 अगस्त 2018 को अन्य वाइब्रो औषधि  #2 तैयार की गई:
#  2. CC9.4 Children’s diseases + CC10.1 Emergencies + CC17.2 Cleansing + CC18.5 Neuralgia + CC21.4 Stings & Bites + CC21.11 Wounds & Abrasions + #1…6TD, पहले उसके पानी के बत्र्तन में डाल कर दी, परन्तु बाद में सिरिंज के माध्यम से उसके मुख में डाली जाने लगी क्योंकि ब्राउनी ने पानी पीना बन्द कर दिया था।

ब्राउनी की अवस्था धीरे-धीरे ठीक होने लगी थी। एक सप्ताह में ही वह धीरे-धीरे चलने लगा था, लेकिन उसका दाँया पाँव लंगड़ा रहा था। एक और सप्ताह बाद वह बिलकुल स्वस्थ्य हो गया था। वह इस अवस्था में तीन सप्ताह तक रहा चिकित्सक ने इतनी तीव्र गति से स्वस्थ्य होने की क्रिया के ऐलोपैथिक उपचार और वाइब्रो उपचार का प्रभाव माना।

 

लेकिन कुछ समय बाद ही उसके पाँव कड़े होने लगे और एक सप्ताह में ही 18 सितम्बर 2018 को वह पक्षाघात की चपेट में आ गया और दर्द से कराहने लगा। यह दृश्य दिल दहलाने वाला था चिकित्सक उसे फिर हॉस्पिटल ले गई वहाँ डाक्टर ने एण्टीबायोटिक्स व एन्टीइन्फ्लेमेटरी इंजैक्शन से कुछ दिन उपचार किया। ब्राउनी की अवस्था को पनोस्टाईटिस के रूप में निदान किया गया, इस रोग में दर्द एक पाँव से दूसरे पाँव में स्थानान्तरित होता रहता है। इस रोग का मुख्य कारण एर्लिकियोसिस रोग है। ब्राउनी की अवस्था में कोई परिवर्तन न होने से डॉक्टर्स ने उसे बैंकाक ले जाने की सलाह दी जहाँ उसके मस्तिष्क के द्रव का विश्लेषण किया जा सकता था।

24 सितम्बर 2018 को चिकित्सक ने स्वामी से प्रार्थना की और ब्राउनी को कहीं भी नहीं ले जाने का निर्णय किया। उसने सभी ऐलोपैथिक औषधियों को बन्द कर दिया और एक नया कॉम्बो बनाया :

#3. CC3.7 Circulation + CC9.1 Recuperation + CC9.4 Children’s diseases + CC10.1 Emergencies + CC20.7 Fractures + CC21.11 Wounds & Abrasions… 6TD सरिंज की सहायता से मुँह में डालकर। ब्राउनी धीरे-धीरे ठीक होने लगा और एक माह में ही 25 अक्टूबर 2018  को बिलकुल स्वस्थ्य हो गया (देखें चित्र)।

.वह सामान्य रूप से चलने-फिरने और खाने लगा था, उसका वज़न भी बढ़ गया था, अतः खुराक को TDS कर दिया। लेकिन अफसोस है कि नियतिवश सड़क पार करते समय दुर्घटनावश उसने दम तोड़ दिया। दुर्घटना का कारण था नये वर्ष 2019 के उपलक्ष्य चलाये जा रहे पटाखे।

जीर्ण खाँसी 11573...भारत

एक सोलह वर्षीय बालक 3 वर्ष की आयु से ही बार-बार (हर माह) खाँसी से पीड़ित रहता था। खाँसी के साथ ज्वर भी हो जाया करता था, गले में खराश व जुकाम भी हो जाता था। बदलते हुये मौसम में आवृत्ति बढ़ जाती थी। हर बार ऐलोपैथिक उपचार से 5-6 दिनों में वह स्वस्थ हो जाता था। लेकिन यह अस्थायी होता था। उसकी माँ जिसने अपने लिये वाइब्रो उपचार लिया हुआ था, उसको लेकर चिकित्सक के पास पहुँची। उस बालक को उस समय मामूली सी खाँसी जुकाम की शिकायत थी। इस बार उसने ऐलोपैथिक उपचार नहीं लिया। 

5 अगस्त 2018 को चिकित्सक ने उसको निम्न उपचार दिया :
#1. SR218 Base Chakra…OD एक सप्ताह के लिये।

उसे किसी भी प्रकार का पुल आऊट नहीं हुआ बल्कि उसकी तबियत में सुधार होने लगा। 3 दिन बाद 15 अगस्त 2018 को उसे निम्न मियाज्म दिया गया : 
#2. SR252 Tub-Bac…एक खुराक।
दूसरे दिन ही बालक ने सूचित किया वह बहुत स्वस्थ महसूस कर रहा है तथा खाँसी और जुकाम के सभी लक्षण समाप्त हो गये है। चूँकि पुल आऊट नहीं हुआ था अतः #2 की दूसरी खुराक 30 अगस्त 2018 को दी गई। 3 सप्ताह के बाद बालक ने सूचित किया कि वह बिल्कुल स्वस्थ है। इस बार भी पुल आऊट नहीं होने के कारण औषधि #2 की खुराक देने की आवश्यकता नहीं थी। 

बालक पूर्ण रूप से स्वस्थ है और मौसम में परिवर्तन का भी उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ था। वर्ष 2018‌‌-19 के सर्दियों के समय भी वह बिलकुल स्वस्थ रहा। 17 अप्रैल 2019 को यद्यपि बालक को कोई समस्या नहीं थी फिर भी चिकित्सक ने उसे CC12.1 Adult tonic…TDS रूप में एक माह तक लेने में फिर अगले माह CC17.2 Cleansing…TDS रूप में लेते रहने की सलाह दी। यह क्रम उसे पूरे एक साल तक चलाना था। उससे उसकी रोग प्रतिरोध क्षमता में बढ़ोत्तरी हो जाती।

जिन चिकित्सकों के पास  SRHVP मशीन नहीं है उन्हें वरिष्ठ चिकित्सकों से परामर्श ले लेना चाहिये।

कान में फंगल इन्फैक्शन 11602...भारत

एक 48-वर्षीय महिला के कान में खुजली मचती रहती थी उसका निदान 4 वर्ष पूर्व फंगल ओटिटिस एक्सटर्ना के रूप में किया गया था जिसका एन्टी फंगल ड्रॉप्स और एन्टीबायोटिक्स से उपचार करने पर वह ठीक हो गया था। 2 वर्ष बाद वह रोग फिर उभर गया तथा पहले वाले उपचार से वह ठीक हो गया। 3  सप्ताह पूर्व उसके कान में फिर से खुजली होने लगी थी, इस बार उपरोक्त औषधियों से पूर्ण आराम नहीं मिला।अतः उसने खाने वाली एलोपैथिक औषधियों को बन्द कर दिया तथा 20 जनवरी 2019 को चिकित्सक के पास पहुँची।

उन्होंने महिला को निम्न औषधि दी :
#1. CC5.1 Ear infections  + CC12.1 Adult tonic + CC21.7 Fungus…एक खुराक हर दस मिनट के बाद 1 घंटे तक उसके पश्चात् 6TD

पहले घंटे में महिला को खुजली नहीं हुई परन्तु बाद में मामूली सी शिकायत हुई। इस परिणाम से उत्साहित होकर ऐलोपैथिक कान की ड्रॉप्स को भी बन्द कर दिया, चिकित्सक ने कान में डालने के लिये निम्न औषधि दी: 
#2. CC5.1 Ear infections + CC21.7 Fungus…TDS अति शुद्ध ओलिव तेल में 1 बूंद प्रत्येक कान में।

यद्यपि शुरू में कान में तेल डालने के प्रति महिला को हिचकिचाहट हुई परन्तु वह इसके लिये मान गई। दूसरे दिन ही उसने खुजली में 90% सुधार की सूचना दी। तीसरे दिन  23 जनवरी 2019 को खुजली बिल्कुल बन्द हो गई थी। औषधि #1 की खुराक को TDS कर दिया गया। 15 फरवरी को दोनों औषधियों की खुराक को OD कर दिया गया। 1 मार्च 2019 को नाक-कान के डॉक्टर ने जाँच में पाया कि कैनाल में किसी भी प्रकार का संक्रमण नहीं है अतः #2 को 2 सप्ताह के बाद बन्द कर दिया गया। औषधि #1 की खुराक को अगले 3 सप्ताह के दौरान पहले OD और फिर OW किया गया। अप्रैल 2019 तक रोग दुबारा नहीं हुआ। औषधि #1 को OW के रूप में अभी भी ले रही है।

 

 

सायटिका दर्द 11603...भारत

एक 68-वर्षीय महिला 10 वर्षां से साइटिका के दर्द से परेशान थी। उसके पीठ से दर्द शुरू होता था और दाहिने पाँव से होते हुये टखने तक यह दर्द तकलीफ देता था। प्रारंभ में उसने दो माह तक होम्योपैथिक उपचार लिया था परन्तु उससे मामूली सा ही फायदा हुआ था। ऐलोपैथिक उपचार को कई माह तक लेने से उसे पूरा आराम मिल गया था। दर्द 2 माह पूर्व फिर शुरू हो गया। जब वह चिकित्सक के यहाँ गई तो वह ठीक से नहीं चल पा रही थी। 2 वर्षों से उसके तलवों में भी जलन होती रहती थी। वह वाइब्रो उपचार लेना चाहती थी क्योंकि उसने इसके चमत्कारी, प्रभाव को देखा था। एक माह पूर्व उसको अचानक बहुत कमजोरी महसूस हुई, अत्याधिक पसीना आने लगा और लगभग मूर्छित सी हो गई, यह रात्रि का समय था। उसके पति जो वाइब्रो चिकित्सकों की सेवा में सहयोग देते थे और वाइब्रो उपचार के प्रभाव को जानते थे, अपने पड़ौस में रहने वाले वाइब्रो चिकित्सक से औषधि लेकर आये और पत्नी को उसको सेवन कराया। वे आश्चर्य चकित हो गये यह देख करके कि कुछ ही मिनिटों में महिला की तबीयत में सुधार हो गया था और इस प्रकार से रात्रि के समय हॉस्पिटल जाने से बच गये।

28 सितम्बर 2018 को उसको निम्न औषधि दी गई :
#1. CC10.1 Emergencies + CC12.1 Adult tonic + CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC18.5 Neuralgia + CC20.4 Muscles & Supportive tissue + CC20.5 Spine + CC20.6 Osteoporosis...TDS

#2. CC20.4 Muscles & Supportive tissue + CC20.5 Spine...BD नारियल के तेल में बाह्य उपयोग के लिये।

एक सप्ताह के बाद उसको काफी आराम मिल गया था, दर्द और जलन में। अगले सप्ताह उसकी सभी शिकायतें दूर हो गई थी। अगले दो सप्ताह बाद 30 अक्टूबर 2018 को उसने सूचित किया कि वह शत प्रतिशत ठीक हो गई हैं। जलन भी समाप्त हो गई थी और साइटिका का दर्द भी नहीं रहा था।  औषधि #1 #2 की खुराक को  OD कर दिया गया, 2 माह के लिये। अगले 2 माह में खुराक को OW कर दिया गया तथा 27 फरवरी 2019 को उपचार बन्द कर दिया गया। 17 अप्रैल 2019 को जब उससे मुलाकात हुई तो उसने बतलाया कि रोग दुबारा नहीं उभरा है।

चिकित्सक ने उसे बचाब की दृष्टि से वाइब्रो उपचार लेते रहने की सलाह दी और उसे निम्न औषधि दीः
#3. CC12.1 Adult tonic + CC20.5 Spine + CC20.6 Osteoporosis…TDS एक माह तक तदुपरान्त अगले माह CC17.2 Cleansing यह वैकिल्पक रूप से 1 वर्ष तक करना था। इससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में इज़ाफा होगा और कंकाल तंत्र मज़बूत होगा। उसको प्रतिदिन आधा घंटा 10 बजे से 12 बजे के बीच धूप में बैठने के लिये भी कहा गया जिससे उसे प्राकृतिक रूप से विटामिन D मिल सके।

 

सोरायसिस 11580...India

एक 61-वर्षीय महिला के हाथों और पैरों पर काले धब्बे थे वे इस प्रकार नज़र आते थे मानो वे बिना भरे घाव हों जिनमें खुजली भी होती थी। यह रोग उसे गत तीन वर्ष से था। इसका निदान सोरायसिस के रूप में किया गया था। उसने एक वर्ष तक ऐलोपैथिक उपचार लिया था परन्तु कोई लाभ नहीं होने से उसे बन्द कर दिया था। उसने अन्य किसी भी प्रकार का उपचार लेने का प्रयास नहीं किया था।

9 अक्टूबर 2016 को चिकित्सक ने निम्न औषधि दीः
#1. CC4.2 Liver & Gallbladder tonic + CC12.4 Autoimmune diseases + CC21.10 Psoriasis + CC21.11 Wounds & Abrasions…TDS 

रोगी ने पूर्ण विश्वास के साथ औषधि का सेवन किया। उसे आश्चर्य हुआ कि एक माह में ही जलन और धब्बों में 50% तक की कमी हो गई है। अगले दो माह में धब्बे पूर्णतया मिट गये थे और जलन भी समाप्त हो गई थी। यद्यपि वह ठीक हो गई थी परन्तु वह खुराक को कम करने या बन्द करने के लिये सहमत नहीं थी अतः अगले 8 माह तक औषधि को TDS के रूप में लेती रही। इसके पश्चात् 9 माह के लिये खुराक को BD कर दिया गया तदुपरान्त 6 माह के लिये OD कर दिया गया। दिसम्बर 2018 में खुराक को OW किया गया। खुराक को कम करने पर भी कभी भी रोग दुबारा नहीं उभरा और वह अब बिल्कुल स्वस्थ्य महसूस करती है।

औषधि #1 अभी  OW रूप में चल रही है। 25 अप्रैल 2019 को रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये एक वर्ष तक निम्न औषधि का सेवन करते रहने के लिये कहा गया : #2. CC17.2 Cleansing…TDS एक माह तक तत्पश्चात् #3. CC12.1 Adult tonic…TDS एक माह तक।

 

चिकित्सक की रुपरेखा 10596...भारत

चिकित्सक10596---भारत इतिहास विषय की स्नातक है, उन्होंने सिलाई में डिप्लोमा प्राप्त किया है। 5 वर्षों तक एक स्कूल में शिक्षिका का कार्य किया, बाद में 18 साल तक परीक्षा निरीक्षक का कार्य किया। 1999 में उनके घर के पास में नारायण सेवा हुई थी जिससे प्रेरित होकर वे साई संगठन से जुड़ गई। उसके बाद से सक्रिय रूप से साई संगठन के कार्यों को कर रही हैं। वह वर्ष में दो बार प्रशांति निलयम में सेवा के लिये जाती हैं। वह स्कूल के बच्चों और झोपड़ पट्टी में रहने वाली महिलाओं को सिलाई सिखाती हैं। ’’ग्राम सेवा’’ के अंतर्गत चलने वाली मोबाईल क्लिनिक में भी अपनी सेवायें देती हैं।

24 वर्ष की आयु में उन्होंने जड़ी बूटी वाले पौधों को उगाने में अपनी रूचि दर्शायी, फलस्वरूप उन्होंने अपने घर में ही इन पौधों को उगाया। इन पौधों से वह अपने परिवार के सदस्यों, पड़ौसियों और पशुओं का 40 वर्षों से उपचार कर रही हैं। उदाहरण स्वरूप बड़ी पिपली का वह तनु पेय बनाती हैं जिसका उपयोग, सर्दी, खाँसी, जोड़ों का दर्द जैसे रोगों के उपचार के लिये करती हैं। हठ जोड़ा के लेप से IBS और टूटी हड्डी का उपचार करती हैं। पाँच पत्तियों वाले नोची पेड़ के तने की भाप से मच्छरों को भगाने और अस्थमा का उपचार करती हैं। उनकी पौत्री का वायरल ज्वर पत्तियों की भाप से एक दिन में ही ठीक हो गया, साथ ही शरीर के सभी रेशेज़ भी ठीक हो गये। यदि उन्हें, आस पास के स्कूलों या समिति की बैठकों में,आमंत्रित किया जाता है तो वह अपने इन अनुभवों को बताती हैं।

वाइब्रोनिक्स के बारे में चिकित्सक को वर्ष 2009 में उस समय जानकारी मिली जब एक मेडिकल वैन उस ओर सेवा प्रदान कर रही थी। उन्होंने तुरंत ही एक चिकित्सक से अपने पुत्र के उपचार के लिये संपर्क किया जो श्वसन तंत्र के संक्रमण से ग्रस्त था। वाइब्रोनिक्स उपचार से वह शीघ्र ही स्वस्थ हो गया। इस घटना से वह बहुत अचंभित हुई। उसने तुरंत ही वाइब्रो प्रशिक्षण हेतु आवेदन कर दिया। धर्म क्षेत्र मुंबई में हुई कार्यशाला में उसने प्रशिक्षण प्राप्त किया और अप्रैल 2009 में वह AVP बन गई। 2013 में वह VP बन गई।

उसने वाइब्रो उपचार का अपने ऊपर वेरीकोस वेन्स का उपचार करके आरंभ किया। माह में एक बार पास के ही एक वृद्ध आश्रम में जाकर वहाँ के निवासियों को को सुख सुविधायें उपलब्ध कराती थी। चिकित्सक बनने के बाद वह वृद्ध निवासियोंको निम्न उपचार देने लगी : CC3.1 Heart tonic + CC4.1 Digestion tonic + CC4.2 Liver & Gallbladder tonic + CC12.1 Adult tonic + CC13.1 Kidney & Bladder tonic…TDS इस उपचार से वे आश्रमवासी स्फूर्तिवान और शांतमय हो गये थे। इस उपचार के द्वारा वृद्ध आश्रम के भोजन पानी में मिलावट का प्रभाव कम हो गया था।

वह अपने तीन AVP साथियों के साथ प्रत्येक गुरूवार और शनिवार को वैकल्पिक रूप से उपचार करने के लिये जाती हैं। दो सेवक उनके साथ रहते हैं बॉटल्स पर लेबल लगाते है और उनमें शुगर पिल्स भरते हैं। अब तक उन्होंने 11000 रोगियों का उपचार करके उन्हें आराम दिलाया है। इन रोगियों में से अधिकतर संख्या वंचितों की है। उन्होंने सफलतापूर्वक निम्न रोगों का उपचार किया है - वैरीकोस वेन्स, अस्थमा, गठिया तथा त्वचा संबंधी रोग जैसे कि दाद और सोरायसिस। अनिद्रा रोग के उपचार में उन्हें आशातीत सफलता प्राप्त हुई है, यह बिमारी मुंबई के व्यस्त जीवन में आम है।

उनके अनुसार टीम के रूप में कार्य करने से अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव होता है साथ ही सीखने को भी मिलता है, इससे आपसी एकता को बल मिलता है, आन्तरिक और बाह्य दोनों रूपों में। वह स्वामी के प्रति,इस सुनहरी सेवा के लिये अवसर देने हेतु, आभार व्यक्त करती है । वह जब रोगियों के प्रफुल्लित चेहरे देखती है तो उन्हें अत्यधिक आनन्द की प्राप्ति होती है।

वह समाचार पत्रों के माध्यम से सदैव अपने आपको अपडेट रखती है। अपने घरेलू कारणों से वह पिछले तीन वर्षों से पुट्टपर्थी की यात्रा नहीं कर सकी है लेकिन मुंबई होने वाले पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में अवश्य सम्मलित होती है। हाल ही में हुये एक दिन के रिफ्रेशर सेमीनार में भाग लेने से वह बहुत प्रसन्न है जहाँ उसने यह सीखा कि रोगों से बचने के लिये CC12.1 Adult tonic तथा CC17.2 Cleansing को वैकल्पिक रूप से प्रत्येक माह में 1 वर्ष तक लेना चाहिये। उसने इसको स्वंय भी लेना शुरू कर दिया है तथा अपने रोगियों को भी देने लगी है।

वाइब्रो अभ्यास से उसके आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है और दिन प्रतिदिन की समस्याओं का समाधान जल्दबाजी में नहीं करती है। उसे विश्वास है कि इस अभ्यास से हृदय निर्मल हो जाता है जो दिव्यता की ओर अग्रसर करता है। वह यह चाहती है कि जो लोग कम स्थान में जीवन यापन करते है जैसे कि मुंबई उन्हें वाइब्रोनिक्स का प्रशिक्षण अवश्य ले लेना चाहिये, यह उनके अपने हित में ही होगा, इसके द्वारा वह अपने परिवार, पड़ोसियों, मित्रों और समाज को लाभ पहुँचा सकते हैं। वह वाइब्रोनिक्स के प्रति आभार प्रकट करती है जिससे उसका रूपांतरण हो सका, परिवार को प्रसन्नता मिल सकी जो यह समझते है कि मैं बहुत समझदार हो गई हूँ।

अनुसरण योग्य उपचार:

 

 

चिकित्सक की रुपरेखा 02836...भारत

चिकित्सक02836…भारत कृषि विज्ञान में स्नातक महाराष्ट्र सरकार के बाग बगीचों के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में वर्ष 2007 में सेवानिवृत्त हुये। उनके दादा एक प्राकृतिक चिकित्सक थे, उन्हीं से उन्होंने प्राकृतिक तरीकों से उपचार के गुण आत्मसात कर लिये थे। उन्हें प्रकृति से बहुत प्रेम था। वह जब सेवा में थे तो उन्होंने अपने मित्र से होम्योपैथी की मूल बातों को सीख लिया था। शौक के तौर पर वह अपने परिवार वालों का, मित्रों का और अपने सहयोगियों का उपचार किया करते थे। वे स्वामी के संपर्क में वर्ष 1980 में आये तथा सभी आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लेने लगे। वर्ष 2009 में गुरूवार को उनके घर पर भजन के दौरान उन्हें मालूम हुआ कि मुंबई में वाइब्रोनिक्स की कार्यशाला आयोजित होने वाली है। तुरंत ही उन्होंने और उनकी धर्म पत्नी ने प्रशिक्षण हेतु आवेदन कर दिया। मई 2009 में वो AVP और जनवरी 2011 में वे VP बन गये। बाद में उन्होंने अक्टूबर 2011 में  SVP कोर्स भी प्रशांति निलयम में कर लिया।

पूर्ण विश्वास के साथ उन्होंने लगभग 4000 रोगियों का उपचार कर लिया है। यह कार्य उन्होंने अपने घर पर ही 10 वर्षों में किया है। उनके द्वारा उपचारित रोगों में मुख्य हैं-ल्यूकेमिया, हृदय एवं मानसिक विकार, टिनटिस, हाइपोथाइरोडिज़्म, बालों का झड़ना, सिरदर्द, मुँह के छाले, गुर्दे की पथरी, पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों में दर्द, त्वचा संक्रमण, इसके अलावा सामान्य रूप से होने वाले खांसी, जुकाम, ज्वर आदि। वाचा गायब होने के सभी 5 रोगियों का सफल उपचार। एक ऐसा केस नीचे वर्णित है।

जीर्ण रोगों में रोगियों को शीघ्र आराम के लिये वे कॉम्बो का चुनाव लक्षणों के आधार पर करते हैं वे उसके मूल कारणों को जानने के प्रयास में समय नहीं गंवाते हैं। इस दृष्टिकोण को अपनाने के बाद उन्होंने पिछले 1-2 सप्ताह के रोगियों का विश्लेषण किया तो उन्होंने पाया कि अधिकत्तर रोगी ठीक हो गये थे। इससे उन्हें वाइब्रोनिक्स के प्रति और अधिक विश्वास हो गया। जिन मामलों में उन्हें यह लगता है कि सुधार की गति कमजोर है तो वह उसके कारण को खोजते हैं और फिर उसी के अनुरूप रिमैडी देते हैं। इस हेतु वह या तो 108CC कॉम्बो बॉक्स या फिर  SRHVP का उपयोग करते हैं।

उनके अनुसार प्रत्येक रोगी को मन को शान्त करने के लिये तथा इम्यूनिटी बढ़ाने के लिये कॉम्बो दिया जाना चाहिये क्योंकि वर्त्तमान समय में हमने आधुनिक जीवन शैली अपना ली है जिसमें तनाव बढ़ गया है और वातावरण में विकिरणों तथा अन्य कारणों से अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। उनके अनुभवों के आधार पर प्रत्येक रेमेडी में CC12.1 Adult tonic + CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC18.1 Brain disabilities भी मिलाया जाना चाहिये। यह रोगी को शीघ्र स्वस्थ होने व ऊर्जावान बनाने में सहायक होगा।

वह इस बात से अचंभित है कि कैसे 108CC बॉक्स के काम्बोज़ में असंख्य रोगों को ठीक करने के लिये उसमें एकत्रित कर दिया गया है। वह वाइब्रोनिक्स कॉम्बोज़ के चमत्कारिक प्रभाव से भी आश्चर्यचकित हैं कि यह कॉम्बोज़ पेड़ पौधों, पशुओं और मनुष्यों पर समान रूप से प्रभावी हैं। यह सब आवश्यक कम्पनों को अवशोषित करके स्वस्थ हो जाते हैं। वह ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हैं कि उन्हें सेवा करने का ऐसा सुनहरा अवसर प्रदान किया है विशेषकर उन गरीब और असहाय व्यक्तियों के लिये जो उपचार का खर्चा वहन करने में असमर्थ हैं।

अनुसरण योग्य उपचार:

 

प्रश्नोत्तर

1. प्रश्न: क्या कोई ऐसी रेमेडी है जो प्रसव के समय मदद कर सके? और/या जिससे अंत्यंत प्रतिभावान या आध्यात्मिक रूझान वाली वाइब्रो संतान पैदा हो?

उत्तर : चिकित्सकों का यह अनुभव है कि जिन माताओं ने गर्भावस्था के दौरान वाइब्रो रेमेडीज़ का सेवन किया था उनका प्रसव परेशानी रहित था और उन्होंने तन्दुरूस्त बच्चे को जन्म दिया। ऐसी ही स्थिति उन महिलाओं के साथ हुई जिन्हें पहले गर्भपात हो चुका था और जहाँ जटिलतायें अवश्यम्भावी लगती थी। जैसा कि गर्भपात, मृत-जन्म, प्रसव में कठिनाई, यहाँ तक कि काले जादू का प्रभाव। एक रोगी के मामले में हर तीन माह में होने वाले अल्ट्रासाउन्ड स्कैन से मालूम हुआ कि गर्भस्थ शिशु के एक किडनी नहीं है। 3 माह तक वाइब्रो औषधि लेने के बाद स्कैन कराने पर पता चला कि किडनी बिलकुल स्वस्थ है। बाद में एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। (Newsletter vol 8 issue 1, January/February 2017, case #1).

जहाँ तक प्रतिभावान/आध्यात्मिक शिशु का सवाल है तो कोई तुलानात्मक अध्ययन इस बारे में नहीं किया गया है।प्रेगनैन्सी टॉनिक माँ की इम्यूनिटी बढ़ाने और शांति प्रदान करने के लिये है। एक स्वस्थ व शान्तचित्त महिला गर्भ में पल रहे शिशु पर अवश्य ही प्रभाव डालती है। चिकित्सकों का यह भी अनुभव है कि जो महिलाये गर्भावस्था में वाइब्रो औषधि का सेवन करती हैं उनके बच्चे तुलनात्मक रूप से प्रतिभावान और अच्छे स्वभाव वाले होते हैं। हमें विश्वास है कि जैसे-जैसे वाइब्रोनिक्स का उत्थान होता जायेगा वैसे-वैसे अधिक मामले हमारे समझ आयेंगे तथा कुछ चिकित्सक इस संबंध में प्रभावशाली कदम उठायेंगे।  

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    2. प्रश्नः कैम्प के दौरान बहुत से रोगियों का उपचार करके बहुत प्रसन्नता का अनुभव होता है परन्तु निरंतरता बनाये रखना बहुत मुश्किल होता है। कैम्प में आने वाले रोगियों 
    की   आवश्यकताओं को पूरा करने का सबसे अच्छा साधन क्या है?

     उत्तर : कुछ विशेष अवसरों जैसे कि स्वामी का जन्म दिन, समाधि दिवस, गुरू पूर्णिमा पर एक बारगी शिविर लगाना आदर्श बात है जहाँ अत्यधिक संख्या में व्यक्ति आते हैं। ऐसे स्थानों पर उपचारित व्यक्तियों से निरंतरता बनाये रखने का सबसे उत्तम साधन यह है कि          आप एक पर्ची पर चिकित्सक से संपर्क करने के लिये समुचित सूचनायें लिखकर उन्हें तैयार रखें तथा उपचारित व्यक्ति को वह पर्ची भी दे दें। आपातकालीन परिस्थितियों में भी एक बारगी शिविर लगाना भी उपयुक्त होता है। महामारी, मौसमी बीमारियों का प्रकोप,               प्राकृतिक आपदायें या युद्ध जैसे अवसर हैं जब इस प्रकार के शिविरों की आवश्यकता होती है। नियमित शिविरों के लिये साथी सदस्यों से सलाह मशविरा करके एक उपयुक्त स्थान का चयन कर लेना चाहिये जहाँ माह में कम से कम एक बार उपचार करना चाहिये इससे      उपचार में निरंतरता बनाये रखने में सुविधा रहती है।

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3 प्रश्नः क्या निद्रा के दौरान चलने का उपचार भी वैसा ही है जैसा कि अनिद्रा का है?

उत्तर :  हाँ! तुम वही रेमैडी दे सकते हो लेकिन सोने से पहले हर दस मिनट पर एक खुराक देनी चाहिये। अधिकतम खुराक की संख्या 6 है  यह रोग की गंभीरता पर निर्भर है। यदि इससे फायदा नहीं होता है तो निम्न रिमेडी साथ में दी जा सकती हैCC15.1 Mental & Emotional tonic or SM6 Stress + SM39 Tension सुबह उठने पर। यह दिन भर होने वाले तनाव से मुक्ति दिलायेगी (जैसे कि स्कूल या कार्य स्थल) जो कि इस रोग का एक कारण है। यदि अन्य कोई कारण है जैसे कि डर या आघात तो उसके अनुरूप उपचार करें।

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4 प्रश्न : कृप्या ऑल मियाज्म को बच्चों को किस प्रकार दे, प्रकाश डालें?

उत्तर  :  व्यस्कों, 18 वर्ष से अधिक  को, SR560 All Miasms सदैव दो पोटेन्सी 30C & 1M…OW में दी जाती है। यदि खुराक देने से पुल आऊट होता है तो एक सप्ताह तक प्रतीक्षा करें जिससे कि पुल आऊट का प्रभाव समाप्त हो जाये, उसके बाद ही दूसरी खुराक दें। इस क्रिया को करते रहें जब तक इसकी आवश्यकता हो और शरीर में कोई पुल आऊट नहीं हो, लगातार दो खुराक देने पर। रेमेडी को सीधे ही पानी में SRHVP मशीन की सहायता से बनायें। लेकिन कोई भी मियाज्म देने से पूर्व SR218 Base Chakra…OD को रात्रि के समय 3 से 7 दिनों तक दें जिससे कि सभी सुस्त मियाज़्म क्रियाशील हो जायें, इस दौरान पुल आऊट की संभावना नहीं होती है। 3 दिन तक इंतजार करो, फिर मियाज़्म दो।

बच्चों (1 से 12 माह) को : पहले SR218 Base Chakra की एक खुराक दें इससे उनके शारीरिक विकास में वृद्धि होगी। रिमैडी 1-2 बूंद को शुद्ध पानी (उबाल कर ठंडा किया हुआ) में बनाये व जीभ पर रखें। यदि बच्चा तन्दुरूस्त है तो उसे एक खुराक SR252 Tub-Bac 200C की दें। कम से कम 2 माह तक प्रतीक्षा करें जिससे कि बच्चा 12 माह का हो जाये तब तक एक खुराक SR560 All Miasms की दें।1 माह से छोटे या नवजात शिशु को कुछ भी नहीं देना है।

1 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये : SR218 Base Chakra की एक खुराक से शुरू करें। एक माह बाद, एक खुराक SR252 Tub-Bac 200C की दे जिसके 2 माह बाद SR560 All Miasms की खुराक दें।

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5 प्रश्नः क्या हम पहली बार में ही नोसोड दे सकते हैं? या फिर पहले 108CC बॉक्स के काम्बोज़ से उपचार करें उसके पश्चात SRHVP के द्वारा करें और फिर नोसोड से, इसी क्रम सें?

उत्तर : सामान्यतया नोसोड की आवश्यकता तब होती है जब रोग के लिये कोई उपयुक्त कार्ड नहीं होता है या फिर कई कार्डस का उपयोग करने के बाद भी कोई सफलता नहीं मिलती है। कुछ विशेष परिस्थितियों में नोसोड को सबसे पहले भी दे सकते हैं जैसे कि रक्त नोसोड, ल्यूकेमिया की स्थिति में, एलर्जी के संबंध में यदि ऐलर्जी पैदा करने वाले तत्वों की जानकारी हो तो भी नोसोड को पहली बार में दे सकते हैं। हॉलाकि कुछ चिकित्सकों ने बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त किये है छाती में संक्रमण के लिये थूक से नोसोड बना कर, बाल से नोसोड बना कर बाल झड़ने की समस्या के लिये, लार से मुँह के अल्सर के लिये, मल से IBS के लिये आदि।

 

दैवीय चिकित्सक का संदेश

‘‘डॉक्टर्स इस बात से सहमत हैं कि बिमारी का स्त्रोत गलत खान-पान की आदतें और फुर्सत के क्षणों में बेवकूफी भरी गति विधियाँ हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वे यह नहीं जानते हैं कि भोजन एक शब्द है जिसका अर्थ है विभिन्न प्रकार के खाद्यय् पदार्थों का ’सेवन’। भोजन से हमारी इन्द्रियाँ जो अनुभव ग्रहण करती हैं उसका हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हम कहते है ‘‘विचारों के लिये भोजन’’, जो कुछ भी देखते हैं, सुनते हैं, स्पर्श करते हैं उन सबका हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है अच्छा या बुरा। कुछ लोग रक्त देखते ही बेहोश हो जाते हैं, या फिर कोई बुरी खबर सुन कर, जो उन्हें आघात पहुँचाती है। ऐलर्जी की उत्पति, अप्रिय गंध या फिर कोई चीज़ जो आन्तरिक रूप से अनिच्छुक जुड़ी हो या चखी हो। स्वस्थ मन से ही स्वस्थ शरीर बनता है, स्वस्थ शरीर से मन भी स्वस्थ रहता है। प्रसन्नता के लिये स्वस्थ होना आवश्यक है। प्रसन्न रहने की क्षमता ही प्रसन्नता है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिये ‘चाहे जो भी हो’ आवश्यक है।’’

... Sathya Sai Baba, “Vehicle care” Divine Discourse, 16 October 1974

http://www.sssbpt.info/ssspeaks/volume12/sss12-48.pdf

 

‘‘प्रकृति के सभी जीव एक दूसरे की सेवा करके जीवन यापन कर रहें हैं। कोई भी किसी से श्रेष्ठ नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमताओं के अनुसार सेवा और गतिविधियाँ करनी चाहिये। मनुष्य के शरीर में हाथ है लेकिन हाथ वह कार्य नहीं कर सकते जो कार्य पाँव करते हैं, ना हीं आँखें, कानों का कार्य कर सकती हैं। कानों को जो खुशी मिलती है वह आँखों को नहीं। इसी प्रकार मनुष्यों में भी इसी प्रकार का अंतर है। उनकी क्षमताओं और योग्यताओं में भी अन्तर होता है। लेकिन प्रत्येक को अपनी क्षमता अपने उपकरणों और कार्य क्षेत्र के अनुरूप सेवा कार्य आवश्यक करने चाहिये।’’

    ... Sathya Sai Baba, “Born to Serve” Discourse,19November1987                                                                   http://www.sssbpt.info/ssspeaks/volume20/sss20-26.pdf

 

उद्धघोषणायें

आगामी कार्यशालायें

  •  भारत Jalgaon, Maharashtra: AVP रिफ्रेशर कार्यशाला 22-23 जून  2019, संपर्क: Narayan B Kulkarni by telephone at +91 9404490768
  • भारत पुट्टपर्थी: AVP कार्यशाला 17-22 जुलाई 2019 संपर्क: Lalitha at [email protected] or by telephone at 8500-676 092
  • भारत पुट्टपर्थी: SVP रिफ्रेशर कार्यशाला  24-25 जुलाई 2019, संपर्क: Hem at [email protected]
  • France Alès - Gard: SVP कार्यशाला  20-24 अक्टूबर  2019, संपर्क: Danielle at [email protected]
  • France Alès - Gard: AVP कार्यशाला और रिफ्रेशर सेमिनार  26-28 अक्टूबर 2019, संपर्क:Danielle at [email protected]
  • भारत पुट्टपर्थी: AVP कार्यशाला 17-22 नवम्बर 2019, संपर्क: Lalitha at [email protected] or by telephone at 8500-676-092
  • भारत पुट्टपर्थी: SVP कार्यशाला 24-28 नवम्बर अक्टूबर 2019, संपर्क: Hem at [email protected]

अतिरिक्त

1.  ताजा फलों से स्वास्थय व प्रसन्नता का स्वाद लें।

  • शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिये तुम को हर प्रकार के प्रोटीन और विटामिन्स की आवश्यकता होती है फल खाओ - और सब्जियाँ खाओ जो तुम्हें शक्ति प्रदान कर सकती हैं।’’…Sri Sathya Sai Baba1

1. फल क्या है?

माँ धरती के मूल्यवान उपहारों में से एक उपहार फल, किसी पौधे या पेड़ का गूदेदार उत्पाद है जिसमें बीज भी होते हैं। फल का प्राथमिक उद्देश्य बीजो की सुरक्षा और फिर उनका प्रसारण करना होता है जिससे कि प्रकृति का संतुलन बना रह सके। अनुग्रह के कारण यह मनुष्यों की भूख और प्यास भी मिटाता है जिससे कि वह प्रकृति के अनुरूप जीवन यापन कर सकें। 2-4

फल अधिकतर मीठे या खट्टे होते हैं जिन्हें कच्चा ही खाया जा सकता है जैसा कि बोल चाल में समझा जाता है, इनमें शामिल हैं - केला, आम, चीकू, पपीता, सेब, नाशपाती, अमरूद, अनार, तरबूज, अंगूर, अनानास, संतरा, चकोतरा, आडू, बेर, चेरी, कीवी, अंजीर, खुबानी और बेरीज। विज्ञान के अनुसार सर्व विदित सब्जियाँ जैसे कि ककड़ी, टमाटर, शिमला मिर्च, कद्दू, बैंगन भी फल हैं। फलियाँ, कुछ मसाले यहाँ तक कि साबुत अनाज जो वास्तव में बीज होते है जिनमें एक फल की एक दीवार होती है। मेवे भी फल हैं जिनका खोल कड़ा होता है। वर्ष 1893 में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने फल और सब्जियों के बारे में निर्णय देकर इस बहस का अन्त कर दिया। उनके अनुसार टमाटर एक सब्जी है क्योंकि लोग ऐसा ही सोचते हैं और इसी तरह उपयोग करते हैं न कि फल के रूप में या मिठाई के रूप में। 5-7

2. फलों के लाभ

आदर्श रूप से हमारे भोजन में पानी की मात्रा हमारे शरीर की मात्रा से अधिक होनी चाहिये। फलों में 90% पानी होता है और शरीर को जलयोजित रखता है और शक्ति प्रदान करता है। एक अध्ययन के अनुसार पुरानी भारतीय कहावतों के अनुसार पानी को फलों के द्वारा खाना अधिक लाभप्रद होता है। यदि हमारे खाने में 30% भाग स्थानीय तौर पर उगाये गये फलों का सेवन करते हैं तो हम कभी भी बीमार ही नहीं पड़ेगे। 8-9

प्रत्येक फल अपने आप सम्पूर्ण आहार होता है, बहुत पौष्टिक और आसानी से पच जाने वाला होता है और हमारे शरीर पर किसी प्रकार का दबाब देने वाला नहीं होता है। यह कम कैलोरी युक्त, अत्याधिक खनिज पदार्थों युक्त और विटामिन युक्त होता है। यह शरीर की प्रोटीन आवश्यकता को 10% तक पूर्ण कर देता है। 5,8,9,10

सभी फल हमारे लिये हितकर होते हैं क्योंकि ये हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को चुस्त बनाते है तथा मधुमेह जैसे रोगों, हृदय संबंधी बीमारियों और पाचन तंत्र की समस्या, प्रोस्टेट के बढ़ने की समस्या, गुर्दे में पथरी, कैन्सर, हार्मोन संतुलन, उम्र के साथ,हड्डी को नुकसान होने की समस्या, को रोक देते हैं, रक्त दाब को नियमित रखने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का कार्य भी करते हैं। प्रत्येक फल में कुछ विशेष होता है जिसे वह हमें प्रदान कर देते हैं। अतः हमें भिन्न-भिन्न प्रकार के ताज़ा फलों को स्थानीय बाजार से लेकर सेवन करना चाहिये। फ्रोजन, डिब्बा बंद तथा संसाधित (प्रोसेस्ड) फलों का सेवन नहीं करना चाहिये। मौसमी फलों के सेवन से मौसमी बिमारियों से बचने में मदद मिलती है। हमारी आस पास की जमीन में उगने वाले फलों का जब हम सेवन करते हैं तो हमें यह अहसास होता है कि मौसम के अनुकूल फल हमें प्राप्त हो रहा है। तरबूज और आम का सेवन गर्मियों में करना चाहिये। जहाँ तक संभव हो,यदि फलों  को उनके प्राकृतिक स्वरूप में ही सेवन किया जाये, छिलके और बीज को बिना फेंके तो वह हमारे लिये अत्यधिक लाभप्रद होता है, फलों को रस के रूप में न लें। 5,9,11

मधुमेह के रोगी को मौसमी फलों का सेवन उसी रूप में करना चाहिये न कि जूस के रूप में। जूस को लेने से रक्त में शुगर की मात्रा तेजी से बढ़ जाती है। वह फल जिनका ग्लाईसेमिक इन्डेक्स (GI) कम होता है वह मधुमेह के रोगियों के लिए अधिक सुरक्षित रहता है। जामुन या काले बेर या स्ट्राबेरी में मधुमेहरोधी गुण होते हैं। बुद्धिमानी इसी में है कि मधुमेह के रोगी खान-पान संबंधी दिशा निर्देशों का पालन करें। 12-15

ग्रह के अनुकूलः पका कर खाने की अपेक्षा कच्चा खाने से कार्बन का उत्सर्जन कम होता है तथा यह वातावरण को शुद्ध रखने में, मदद करता है। फल पेड़ो पर लगते हैं। इनकी खेती नहीं होती है,फलों के सेवन से प्राकृतिक नज़र से विश्व में बहुत बड़ा परिवर्तन हो जायेगा। अतः फलों के सेवन से हम अपने ग्रह की सेवा करते हैं! 10,16

3. फलों को कब और कैसे खाना चाहिये                 

फलों को स्वच्छ करना : फल को पानी से अच्छी तरह धोकर एक बाऊल में रखे, जो पानी से आधा भरा हो जिसमें एक चम्मच नमक व दो चम्मच सिरका मिला हुआ हो। 20 मिनिट तक उसी पानी में रखकर फिर से पानी से धोलें जहाँ तक हो सके नल के निकलते पानी से, जिससे कि उस पर चिपकी हुई गन्दगी साफ हो जाये। या फिर, एक बूंद CC17.2 Cleansing या NM72 Cleansing को स्वच्छ जल में डाल कर फल को उसमें डुबो दो।17

फल के छिलके या खोल उसमें उपस्थित एन्टी-ऑक्सीडेन्ट विटामिन की सुरक्षा करते हैं। एक बार फल को काटने के बाद उसे तुरंत ही या 30 मिनट के अन्दर ही खा लेना चाहिये। यदि यह संभव न हो तो उसे तुरंत ही फ्रिज में रख देना चाहिये। ऐसा न करने से उसमें उपस्थित विटामिन्स आक्सीकृत हो जाते हैं और किसी काम के नहीं रहते है। 18

फल खाने का उचित समय : घड़ी की सटीकता पर न जाइये। फल को भूखे पेट पर खाइये जिससे कि पेट पौष्टिक तत्वों को आसानी से अवशोषित कर सके और तंत्र को आसानी से डिटौक्सीफाई कर सके। दिन का प्रारंभ फलों से करने से बेहतर कुछ भी नहीं है! 19-22

फलों को पचाने के लिये पेट द्वारा उत्पन्न अम्ल की आवश्यकता नहीं होती है,  वह सीधे ही पेट से होकर आंतो में चले जाते हैं। इसीलिये फलों को अलग से खाना चाहिये बिना किसी मिलावट के, एक बार में एक ही फल का सेवन करें। तार्किक रूप से, भोजन के 30 मिनट पूर्व या 1 घंटा पूर्व फल का सेवन करना चाहिये। खाने के बाद मिठाई के रूप में कभी न खायें। 19,20

मुँह में पहला कौर रखते ही पाचन क्रिया आरंभ हो जाती है। यह भोजन समाप्त हो जाने की प्रतीक्षा नहीं करती है। फलों और सब्जियों को छोड़ कर सामान्य शाकाहारी भोजन को पचाने में पेट को दो से ढ़ाई घंटे का समय लगता है, उसके बाद भोजन छोटी आंतों में चला जाता है। अतः फल खाने का समय भोजन करने के 2 घंटे बाद है अन्यथा फल अवशोषित होने के बजाय किण्वित (फर्मन्ट) हो जायेगा। 19-22

एक अध्ययन के अनुसार खट्टे फलों का सेवन प्रातः 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच में करना उत्तम होता है लेकिन खाली पेट नहीं। मीठे फल जैसे कि केला और आम का सेवन सोने से पहले नहीं करना चाहिये। इनके सेवन से ऊर्जा स्तर बढ़ जाता है और ठीक से नींद नहीं आती है।19,22

फलों की आदर्श मात्रा : यदि प्रतिदिन के आहार में सब्जियाँ और साबुत अनाज हों तो दो बार फलों का सेवन पर्याप्त है। 150gm हर बार यदि फलों पर व्रत हो तो सेवन तीन बार करें, यदि आहार सामान्य हो। उदाहरण के लिए सामान्य नियम है, कुछ भी अधिक नहींजैसे कि 2 केले मदद करेंगे लेकिन 4 केले नुकसान करेंगे।एक अध्ययन के अनुसार खट्टे फलों का सेवन प्रातः 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच में करना उत्तम होता है लेकिन खाली पेट नहीं। मीठे फल जैसे कि केला और आम का सेवन सोने से पहले नहीं करना चाहिये। इनके सेवन से ऊर्जा स्तर बढ़ जाता है और ठीक से नींद नहीं आती है। 23,24

फलों का संयोजन25-27 : मुख्य रूप से हम फलों को तीन श्रेणियों में रख सकते हैं - मीठे, खट्टे (अम्लीय) तथा मीठे/खट्टे (अर्ध अम्लीय)। इसका कारण है फल में उपस्थित फ्रक्टोस, अम्ल, विटामिन्स, प्रोटीन, सैल्यूलोस और स्टार्च की भिन्न-भिन्न मात्रायें जो उन्हें एक विशेष स्वाद प्रदान करते हैं और उनकी श्रेणी का निर्धारण करते हैं।

केला, नाशपाती, अमरूद, अंगूर, खजूर तथा सभी प्रकार के तरबूज-खरबूजा (जिनमें पानी बहुत मात्रा में होता है। ऐसे कुछ फल हैं जो स्वाद में मीठे होते हैं। खट्टे फलों की अपेक्षा इनमें फ्रक्टोस की मात्रा अधिक होती है। ब्लैक करंट (काले बेर) रसभरी, कीवी ये फल खट्टे होते हैं। खट्टे फल जैसे कि नींबू, लाईम और अंगूर भी खट्टे होते हैं पर कभी-कभी कड़वे भी हो सकते हैं। इनमें अम्ल की मात्रा अधिक होती है।

सभी फल मीठे या खट्टे नहीं होते हैं। कुछ फल जैसे कि संतरे, अनारअनानास, सेब, आम, नाशपाती, पपीता, स्ट्राबेरी, ब्लैक बेरी में अम्ल और फ्रकटोस की मात्रा बराबर होती है इसलिये इनका स्वाद खट्टा-मीठा होता है।

एक ही श्रेणी के फलों का पाचन समान गति से होता है अतः उनका संयोजन किया जा सकता है। मीठे फलों को खट्टे फलों के साथ नहीं मिलाना चाहिये। हालांकि, मीठे/खट्टे फलों को मीठे या खट्टे फलों के साथ मिलाया जा सकता है।25-27

4. सवधानियाँ एवं सुझाव

आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार जो भोजन हम करते हैं वह अच्छे स्वस्थ्य के लिये हमारे अन्दर विद्यमान पांचों तत्वों- ईथर, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के अनुकूल होना चाहिये। असंगत भोजन पदार्थों का संयोजन हमारे अन्दर पाचक अग्नि को भ्रमित कर देता है तथा असंतुलन पैदा हो जाता है। तदनुसार :19

  • केवल एक फल का ही सेवन करें उसे किसी अन्य पदार्थ से न मिलायें लेकिन तब जब पेट भरा हुआ नहीं हो।

  • फल का सेवन करने से पहले कम से कम आधा या एक घंटे पूर्व पानी पीले। फल खाने के तुरंत बाद पानी न पीयें ऐसा करने से पाचन तंत्र में गड़बड़ी होती है तथा डायरिया एवं पेट फूलता है।

  • ताजा फलों का संयोजन कच्ची या पक्की हुई सब्जियों के साथ न करें।

  • मीठे फलों को भी दूध के साथ सेवन न करें क्योंकि हमारे शरीर में 2 से 5 वर्ष की आयु के बाद पर्याप्त जीवणु (लैक्टेस) का उत्पादन नहीं होता है जो दूध के प्रोटीन को पचाने के लिये आवश्यक है।28 जब हम फल के साथ दूध का सेवन करते हैं तो फल के खाने से लाभ मिलने के स्थान पर बिमारियों को आमंत्रण दे देते हैं, यह हमारे पाचनतंत्र पर अधिक भार डालने वाला हो जाता है।29

5. अंतिम सुझाव!

कभी-कभी सामान्य निर्देश कुछ व्यक्तियों के अनुकूल नहीं होते हैं, क्योंकि शरीर रचना भिन्न-भिन्न होती है और प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में विशिष्ट होता है। जो कुछ भी हम खाते हैं उस पर हमें ध्यान देना चाहिये और इस बात की जानकारी होनी चाहिये उससे हमें कैसा महसूस होता है। शरीर हमें जो संकेत देता है उसके प्रति यदि हम सावधान रहेंगे तो हम यह जान सकेंगे कि हमारे लिये क्या अच्छा है, कब और कितना खाना चाहिये।

 References and Links:

  1. Health, Food, and Spiritual Disciplines, Divine Discourse 8 October 1983, Sathya Sai Baba Speaks on Food, Sri Sathya Sai Sadhana Trust, Publications Division, First edition, 2014, page 56.
  2. What is a fruit: https://www.organicfacts.net/health-benefits/fruit
  3. https://www.cropsreview.com/functions-of-fruits.html
  4. http://www.uky.edu/hort/Ecological-importance-of-fruits
  5. Types of fruit: https://www.nutritionadvance.com/healthy-foods/types-of-fruit/
  6. Tomato is vegetable: https://www.livescience.com/33991-difference-fruits-vegetables.html 
  7. https://en.wikipedia.org/wiki/Nix_v._Hedden
  8. Eat water through fruits: https://www.youtube.com/watch?v=gSYsI3GCbLM
  9. https://isha.sadhguru.org/us/en/wisdom/article/fruit-diet-good-for-you-planet
  10. Fruits have protein: https://www.myfooddata.com/articles/fruits-high-in-protein.php
  11. https://www.healthline.com/nutrition/20-healthiest-fruits
  12. For diabetics: https://www.everydayhealth.com/type-2-diabetes/diet/fruit-for-diabetes-diet/
  13.  https://diabetes-glucose.com/fruit-diabetes-diet/
  14.  https://www.onlymyhealth.com/health-slideshow/best-fruits-diabetics-eat-1271667125.html
  15. https://drmohans.com/dos-and-donts-in-diabetes/
  16. Impact on planet: https://www.independent.co.uk/life-style/health-and-families/veganism-environmental-impact-planet-reduced-plant-based-diet-humans-study-a8378631.html
  17. Washing fruits: Manual for Senior Vibrionic Practitioners, 2018, chapter 9, A.6, page86; Newsletter, vol.8, # 5, Sept-Oct 2017, Health Tips, Enjoying food the healthy way,  para 6,  https://news.vibrionics.org/en/articles/228
  18. Cut fruits: https://www.verywellfit.com/fruits-vegetables-cut-nutrients-lost-2506106
  19. Healthy Fruit eating: http://www.muditainstitute.com/articles/ayurvedicnutrition/secrettohealthyfruiteating.html
  20. https://www.quora.com/Do-fruits-need-stomach-acids-to-get-digested
  21. http://www.ibdclinic.ca/what-is-ibd/digestive-system-and-its-function/how-it-works-animation/
  22. https://www.ayurvedabansko.com/fruits-and-vegetables-in-ayurveda/
  23. How much to eat: https://www.eatforhealth.gov.au/food-essentials/how-much-do-we-need-each-day/serve-sizes
  24. How much Satvic food: http://www.saibaba.ws/teachings/foodforhealthy.htm
  25. Food combinations: https://lifespa.com/fruit-ayurvedic-food-combining-guidelines/
  26.  https://www.ehow.com/info_10056003_sweet-vs-sour-fruits.html
  27. http://www.raw-food-health.net/listoffruits.html#axzz5mXlWmuVw
  28. Inadequate lactase in adult to digest milk: https://healthyeating.sfgate.com/milk-digestible-4441.html
  29. Science of nutrition-yogic view: https://www.kriyayoga-yogisatyam.org/science-of-nutrition

 

2. AVP कार्यशाला, पुट्टपर्थी, भारत, 6-10 मार्च 2019

 इस 5-दिवसीय कार्यशाला में कुल आठ व्यक्तियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। इनमें से 6 व्यक्ति (2 डाक्टर्स भी थे, व अब पुट्टपर्थी के जनरल हॉस्पिटल में स्वैच्छिक सेवायें दें रहे हैं) इनमें से एक व्यक्ति फ्रांस का और एक व्यक्ति क्रोशिया का था। इस प्रशिक्षण के दौरान दो कोर्स अध्यापको10375&11422 ने कृत्रिम चिकित्सालय का भी आयोजन किया। इस प्रशिक्षण में 4 अन्य चिकित्सकों ने भी ज्ञान वर्धन हेतु भाग लिया। दो डॉक्टर्स के सहयोग ने इस कार्यशाला को और अधिक समृद्ध बना दिया जिससे यह कार्यशाला जीवंत और परस्पर संवादात्मक हो गई। प्रशिक्षणार्थियों ने कोर्स की सामग्री और अधिक व्यावहारिक बनाने के बारे में सुझाव दिये यह उपलब्धि और अधिक मॉक/फील्ड क्लिनिक के आवंटन से संभव हो सकती है। एक सत्र, केस हिस्ट्री लिखने के लिये समर्पित किया गया जिसमें प्रायोगिक उदाहरण दिये गये, रोगी से संबंधित सूक्ष्म जानकारी के लाभ भी बताये गये।

प्रतिभागियों को डा० अग्रवाल ने संबोधन से ज्ञानवर्धन किया तथा उन्हें यह भी बतलाया कि कैसे इस शक्तिशाली उपचार का प्रादुर्भाव हुआ और स्वामी ने किस प्रकार हर चरण पर मार्ग दर्शन किया, उनका मार्ग दर्शन अभी भी मिल रहा है और वाईब्रोनिक्स से किस प्रकार चिकित्सकों का रूपांतरण हो रहा है।

 

 

 

3. जागरूकता और पुनश्चर्य गोष्ठी-कैम्बरै, फ्रांस, 9 मार्च 2019

 चिकित्सकों के डाटा के अपडेट करने के प्रयास में फ्रैंच की र्कोडिनेटर01620 की मुलाकात बहुत से पुराने चिकित्सकों से हो गई जिनके पास SRHVP  थी और वे इस प्रणाली में पुनः प्रशिक्षण लेना चाहते थे विशेषकर 108CC बॉक्स के उपयोग में। उन्होंने  इस जागरूकता अभियान आयोजन को एक चिकित्सक के घर पर किया था। इसमें भाग लेने वाले चिकित्सकों की संख्या 9 थी। उनको बतलाया गया कि किस प्रकार वाइब्रोनिक्स का उत्थान हुआ और अभी भी हो रहा है और किस प्रकार से वे अपना योगदान कर सकते हैं। उसने वाइब्रोनिक्स का साहित्य उनके समक्ष रखा जो अब आसानी से पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है। प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेन्स का साहित्य भी पुस्तक के रूप में उपलब्ध है। हमारी मुख्य साईट पर भी पुस्तक के रूप में उपलब्ध है।

उन सभी में एक साथ सीखने का उत्साह था और इस मिशन में सक्रिय कार्य करने के लिये उत्सुक थे। वे अपने मित्रों को भी इस मिशन में शामिल करने के लिये भी तैयार थे। कुछ चिकित्सकों के पास 108CC बॉक्स भी था, उन्होंने अपने अनुभवों का आदान प्रदान करने के लिये इस अवसर का उपयोग किया तथा अपने-अपने 108CC बॉक्स को रिचार्ज भी किया।

 

 

4. SVP कार्यशाला और रिफ्रेशर, पैरीगिक्स, फ्रांस 16.20 मार्च 2019

फ्रांसीसी समन्वयक और प्रशिक्षक01620 द्वारा उनके निवास पर पांच-दिवसीय SVP पाठ्यक्रम संचालित किया गया था। उन्होंने SVP बनने की भूमिका और जिम्मेदारियों पर प्रकाश डालते हुए सारगर्भित वक्तव्य दिया जिसे सभी प्रतिभागियों ने स्वागत किया। VP जिसने मॉरीशस से आने के लिए सभी तरह के प्रयास किए और शानदार प्रदर्शन किया और SVP के रूप में योग्यता हासिल की और फिर SRHVP में अपने सह-प्रतिभागी के लिए एक उपाय किया।

दो SVP जिन्होंने एक साल पहले योग्यता प्राप्त की थी, ने अपने अनुभव और केस इतिहास साझा करके  सक्रिय भाग लिया। उन्होंने गहन 5-दिवसीय कार्यशाला को अमूल्य पाया। यह पाठ्यक्रम स्काइप पर डॉ. अग्रवाल के साथ एक सूचनात्मक प्रश्न और उत्तर सत्र के साथ संपन्न हुआ।

 

 

5. नई दिल्ली, भारत में रिफ्रेशर कार्यशाला, 23 मार्च 2019

नई दिल्ली के समन्वयक और अध्यापक02059 ने एक बहुत ही प्रेरणादायक कार्यशाला का आयोजन साई अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र पर किया जिसमें 19 प्रतिभागियों ने भाग लिया। उन्होंने बहुत ही जटिल रोगों के बारे में सफलतापूर्वक अपने विचारों का आदान-प्रदान किया। डा० अग्रवाल ने चिकित्सकों से आग्रह किया कि उन्हें वाइब्रोनिक्स उपचार का निरंतर निस्वार्थ भाव और स्वामी के प्रति आभार और समर्पण के साथ जैसा कि उन्होंने स्वामी के समक्ष शपथ ग्रहण के समय किया था, करते रहें। अपने ज्ञान को उच्च स्तर तक ले जाने के लिये प्रयासरत रहें, टीम वर्क में विश्वास रखें और प्रशासनिक कार्यों में अपने योगदान के लिये आगे आयें जिससे कि वाइब्रोनिक्स का विकास सही दिशा में होता रहे।

हाल में समाचार पत्रों में वर्णित कुछ महत्वपूर्ण वाइब्रोनिक्स पहलुओ के बारे में विस्तार से चर्चाये हुई, उनमें से कुछ निम्न रूप से वर्णित हैं-

  • यदि चिकित्सक 2 सप्ताह से अधिक समय के लिये बाहर जाता है तो उसके स्थान पर उपचार की समुचित व्यवस्था करना आवश्यक है।
  • कुछ रेमेडीज़ को तैयार करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है जैसे कि आँख में डालने की दवा बनाते समय पानी को उबाल कर उसे ठंडा करना आवश्यक है, कान में डालने की औषधि को शुद्ध घी या तेल में ही बनायें, चर्म रोगों के लिये पानी में बनाई औषधि अधिक प्रभावशाली होती है, बजाय तेल, क्रीम या जैल के।
  • निर्देशानुसार फोटो को लेने के लिये कोण, दूरी और प्रभावित भाग का ध्यान रखना तथा 108CC बॉक्स को हर 2 साल के बाद रिचार्ज करना।
  • प्रत्येक रोगी को उचित भोजन, निद्रा, व्यायाम तथा स्वच्छ हवा में गहरी सांस लेने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये जिससे कि वे स्वस्थ जीवन जी सकें।
  • जिस समय आप औषधि बनाते हैं उस समय रोगी को हमारे समाचार पत्रों, सेमिनार की पुस्तकों को पढ़ने के लिये दें, इससे उनका वाइब्रोनिक्स के प्रति विश्वास बढ़ेगा।
  • लक्षण समाप्त हो जाने के बाद औषधि की खुराक को धीरे-धीरे कम करें तत्पश्चात् रोगी की रोग विरोधी क्षमता को बढ़ाने के लिये उसे क्लींसिंग और इन्यूनिटी बढ़ाने बाली औषधि का वैकल्पिक रूप में उपयोग करायें जिससे कि रोग दुबारा आक्रमण न कर सके। तत्पश्चात् मियाज्म से उपचारित करें जिससे कि रोग जड़ से ही समाप्त हो जाये।
  • मन से दूषित विचारों को निष्कासित करने हेतु क्षमाशीलता के सिद्धान्त को अपनाये।