साई व्हाइब्रियोनिक्स पत्रिका

" जब आप किसी हतोत्साहित, निराष या रोग ग्रस्त व्यक्ति को देखते हो, वहीं आपका सेवा क्षेत्र है " Sri Sathya Sai Baba
Hands Reaching Out

Vol 11 अंक 3
मई-जून 2020
मुद्रणीय संस्करण


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डॉ० जीत के अग्रवाल की कलम से

प्रिय चिकित्सको,

कृतज्ञता से ओतप्रोत तथा विनीत भाव से हम अपने प्रिय स्वामी के चरणों में कोटि-कोटि नमन करते हैं। हमने पिछले माह में ईस्टर, रामनवमी, आराधना महोत्सव जैसे पवित्र त्योहार मनाए हैं। लेकिन इस माह में स्थिति थोड़ी भिन्न है। परंतु एक बात निश्चित है कि हमारे स्वामी इस स्थिति में हमारा बेड़ा पार लगाएंगे। हम इस समय सर्वव्यापी महामारी  कोविड-19 का मुकाबला कर रहे है। इस संबंध में स्वामी ने कहा है, “सेवा करने से जो प्रसन्नता शरीर को प्राप्त होती है वह आपको हर प्रकार के रोग से रक्षा करती है।” हम वाइब्रो चिकित्सक इस उक्ति के गवाह है।

जैसे ही हमको सूचना मिली कि कोविड-19 पूरे संसार में व्यापक महामारी के रूप में फैलने वाला है तो तुरंत ही हमारे वरिष्ठ चिकित्सकों ने अनुसंधान और उपचार के क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां तेज कर दी थी।

नित नई सूचनाओं के आधार पर हमारे अनुसंधान कार्यकर्ताओ ने इसी प्रकार की बीमारियों के लिए सिद्ध की हुई दवाईयों के आधार पर इस रोग के लिए भी उचित काम्बो का निर्धारण किया। बहुत से देशों के ‘लॉक-डाउन’ में चले जाने के बावजूद हमारे चिकित्सकों ने अपने-अपने देश के नियमों का पालन करते हुए सेवा गतिविधियां जारी रखी। उन्होंने इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में वाईब्रो औषधियां को वितरित करते रहने का जिम्मा निभाया। यह औषधि इम्यूनिटी बढ़ाने के साथ-साथ रोग के रोकथाम के लिए काफी सफल रही है। हम इसके लिए कोई श्रेय नहीं लेना चाहते हैं - स्वामी कि वह शक्ति है जो इस कार्य को कर रही है। परिणाम बहुत ही संतोषप्रद है! पिछले दो माह से, जिन्होंने वाईब्रोनिक्स औषधियों का सेवन किया है उनसे हमें निरंतर उत्कृष्ट प्रतिक्रियाएं प्राप्त हो रही हैं।

हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि इस बार श्री सत्य साईं संगठन ने हम लोगों का इस संकट की घड़ी में साथ दिया है। मैं अखिल भारतीय संगठन के अध्यक्ष के पास गया था, उन्होंने बड़े विनय पूर्वक पूरी मदद करने का भरोसा दिलाया और उन्होंने तुरंत ही सभी राज्य अध्यक्षों के पास संदेश भिजवाया कि वाइब्रॉनिक्स चिकित्सकों को हर संभव मदद करें। स्वामी की  कृपा के कारण पूरे भारत में वाइब्रो चिकित्सकों को पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ है। यह सब चिकित्सक संकट की घड़ी में निस्वार्थ सेवा करने के लिए अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे। मैं विनय पूर्वक सुझाव देता हूं कि इन चिकित्सकों को अपने स्थानीय साईं संगठन के पदाधिकारियों से संपर्क बनाए रखना चाहिए और उनके सहयोग के लिए आभार जताना चाहिए जिसके कारण साईं भक्तों में वाइब्रॉनिक्स के बारे में जानकारी दी जा सकी है। इस प्रकार से अधिक लोगों तक ‘इम्यूनिटी बूस्टर’ को बांट सकेंगे। इस प्रकार हम अपना छोटा सा योगदान इस रोग से निदान के प्रयास में दे सकेंगे।

चिकित्सक होने के नाते आपने वाइब्रॉनिक्स के आश्चर्यचकित करने वाले परिणाम देखे हैं परंतु आश्चर्य की बात यह है कि जिन्होंने इस औषधि का सेवन किया है उनके परिणाम अत्यधिक राहत देने वाले हैं। हमें इस बात की प्रसन्नता है कि हमने ऐसे लोगों की कहानियां हमारे ‘अतिरिक्त’ वाले कॉलम में प्रस्तुत की हैं। यद्यपि यह महामारी मानवता को बहुत प्रकार से हानि पहुंचा रही है जिनमें मुख्य है, आर्थिक, भावनात्मक, मानसिक, शारीरिक और अधिक मात्रा में देहावसान। परंतु इससे हमें अभूतपूर्व अवसर भी प्राप्त हुआ है कि हम अपने आपको निस्वार्थ सेवा जैसे कार्यों में लगाकर लोगों का भला कर सके! नये रोगियों को बूस्टर डोज देने के बाद उनको और उनके परिवार के सदस्यों का भी ख्याल रखना होगा कि उन में से कोई सदस्य अवसाद तनाव या किसी अन्य रोग से तो ग्रस्त नहीं है जिसके लिए वाइब्रॉनिक्स औषधियां बहुत कारगर सिद्ध होती हैं। पुराने अनुभवों के आधार पर मैं सभी चिकित्सकों को सलाह देता हूं इस प्रकार की महामारी में शुगर पिल्स, एथिल-अल्कोहल और बॉटल्स की अत्यधिक आवश्यकता होती है। अतः हमें उनका समुचित भंडार कर लेना चाहिए।

मैं इस बात से भी चिंतित हूं कि यद्यपि नए रोगियों की संख्या में कमी आ रही है परंतु हमारे यहां लोगों की यह प्रकृति रही है कि और हमारे चिकित्सकों की भी यह प्रकृति है जो नियम बनाए गए हैं इस महामारी से बचने के लिए उनका हम सही तरीके से अनुपालना नहीं करते है। अतः मेरा सब से अनुरोध है कि हम सभी से इन नियमों की अनुपालना में कोई कमी ना रह जाए अन्यथा इसके हमें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। मैं सभी चिकित्सकों से अनुरोध करता हूं कि अपने अभ्यास को उच्चतर बनाएं और अच्छे दर्जे का स्वास्थ्य बनाए रखें और सभी नियमों का पालन करते रहें जिससे कि वह बचे रहें, जब तक कोविड-19 नियंत्रित नहीं हो जाता।

स्वामी ने कहा है, “तुम्हारे प्रतिदिन के कार्यों में निस्वार्थ प्रेम की झलक होनी चाहिए। दिव्यता उसी में से प्रस्फुटित होगी!” - Divine Discourse, Jul 5, 1996.  मैं प्रार्थना करता हूं कि वह हमारे माध्यम से ही इस महामारी को रोकने का कार्य कर रहे हैं और हमें स्वस्थ एवं सुरक्षित बनाए हुए हैं। हम सभी समझते हैं कि हम सभी के मन में एक डर समाया हुआ है और वह जीवन के हर पहलू से संबंधित है जैसे कि जीवन, स्वास्थ्य, आपसी संबंध और भविष्य के प्रति अनिश्चितता। ऐसी स्थिति में स्वामी के इन शब्दों को याद कर लेना चाहिए, “जब मैं यहां हूं तो डर किस बात का है”, और हमें इस संदेश को उन सभी लोगों तक पहुंचाना है जो हमारे संपर्क में हैं। जैसे कि रोगी, परिवार, मित्र, पड़ोसी, असहाय और सार्थक तरीके से उनके जीवन में आनंद भरना है।

साईं की प्रेममयी सेवा में

जीत के अग्रवाल

चिलब्लेन, कलाई और उँगलियों में दर्द 10354...India

गत 10 वर्षों से एक 42-वर्षीय वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी जोकि निर्माण कंपनी  में पारी में काम करते थे, की कलाई में बहुत तेज दर्द रहता था। सर्दी के दिनों में ठंडी हवा में रहने के कारण हाथ व पैरों की त्वचा में बिवाई पड़ गई थी। जिसकी वजह से उंगलियों को आसानी से ना तो मोड़ और ना ही सीधी कर सकते थे। उनकी हथेलियों में जलन और पावों में  सूजन रहती थी। सर्दी के मौसम में दर्द बहुत ज्यादा हो जाता था खासकर जब उनकी ड्यूटी रात्रि की होती थी। तब उनकी उंगलियां लाल, सुन्न और जकड़ जाती थी जैसे कि किसी ने उन्हें  जमा दिया हो। गर्मी शुरू होते ही उनकी स्थिति में सुधार होना शुरू हो जाता था। कई वर्षों से वह एलोपैथिक उपचार ले रहे थे लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। वह रात्रि को ठीक से सो भी नहीं पाते थे और वह दर्द निवारक औषधियों का सेवन करने लगे थे। इसके अतिरिक्त अब उनमें भूलने की समस्या भी जन्म लेने लगी थी। 30 सितंबर 2018 को, वह चिकित्सक के पास कैंप में, उपचार के लिए गए जहां उन्हें निम्न औषधि दी गई:

Move Well-2* + Tiredness/Fatigue** + CC9.2 Infections acute + CC12.4 Autoimmune diseases + CC15.6 Sleep disorders + CC21.2 Skin infections + CC21.3 Skin allergies…QDS

एक माह बाद एक नवंबर को रोगी ने बताया कि वह अपनी उंगलियों को काफ़ी सहजता से हिला-डुला लेता है। उसकी हथेलियों की जलन और पावों की सूजन ठीक हो गई है।  वह  बहुत खुश था कि वह अब वह बाइक को चलाने योग्य हो गया है। अन्यथा वह 10 सालों से पीछे की सीट पर ही बैठता था। अब दर्द निवारक दवा के बिना ही ठीक से सो पाता था। खुद  की स्थिति में  सुधार देखकर उसने एलोपैथिक दवाइयों को बंद कर दिया था। 22 नवंबर 2019 तक, वह बिल्कुल स्वस्थ हो गया था। अत: खुराक को TDS कर दिया गया। दिसंबर में वह दवा लेने नहीं आया परंतु जनवरी 2020 में उसने सूचित किया कि अब वह 100% फिट है। पूरा सर्दी का मौसम बिना किसी परेशानी के बीत गया। वह बिल्कुल स्वस्थ हो गया था और अपने कार्य को सुचारू रूप से करने लगा था। रोगी को यह मत था कि रोग फिर से नहीं होगा, अतः वह दुबारा दवाई लेने नहीं आये, परन्तु उसने अपने कई साथियों को उपचार के बारे में जानकारी देकर उपचार के लिए भेजा। अप्रैल 2020 तक, यह रोग उसे दुबारा नहीं हुआI

संपादकीय टिप्पणी : रोगियों की विशेष आवश्यकता अनुसार (कैम्प)  में अपने वैलनेस किट में दो अतिरिक्त कॉम्बो  जोड़ लिए थे और उन्होंने अपने रोगियों के उपचार में उनका उपयोग किया। उसमें CC9.2 Infections acute को डाला गया क्योंकि रोगी निरंतर शिफ्ट कार्य करने के कारण विभिन्न परिस्थितियों  में रहता था। स्किन रेमेडीज को इसलिए मिलाया गया कि सर्दी के कारण त्वचा में संक्रमण ना हो जाए। CC15.6 Sleep disorders नहीं दी गई क्योंकि उसे रात्रि में नींद की आवश्यकता नहीं थी; वह दिन में सोते थे।
*Move Well 2: CC3.7 Circulation + CC12.1 Adult tonic + CC18.5 Neuralgia + CC20.2 SMJ pain + CC20.3 Arthritis + CC20.4 Muscles & Supportive tissue + CC20.5 Spine

**Tiredness/Fatigue: CC3.1 Heart tonic + CC12.1 Adult tonic + CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC17.3 Brain & Memory tonic + CC18.1 Brain disabilities

 

अम्लता 12013...India

एक 62-वर्षीय पुरुष को वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारी के पद से उच्च पद जो अधिक जिम्मेदारी का पद था, पर वर्ष 2006 में, पर्मोट किया गया था। इससे वह अधिक तनाव ग्रस्त हो गया था तथा मुंह में खट्टेपन, डकार, पेट फूलने, अम्ल पर्तिवाह जैसी शिकायत होने लगी थी, यह शिकायतें उसे सुबह के नाश्ते व हर बार के भोजन के बाद होती थी। सुबह एक बार में ही उसका पेट साफ नहीं होता था, उसे दो-तीन बार जाना पड़ता था। वर्ष 2007 में, उसके डॉक्टर ने उसको प्रतिदिन पेंटासिड खाने की सलाह दी थी। उसने यह गोली लगातार 5 वर्षों तक खाई। इस गोली से उसे आराम तो मिला परंतु जो समस्याएं थी वह तो ज्यों की त्यों ही रही। वह इन समस्याओं का सामना,1 सप्ताह में दो-तीन दिन तक, करता था । वर्ष 2010 में,वह सेवानिवृत्त हो गया अतः ऑफिस का तनाव भी खत्म हो गया था लेकिन तनाव अभी भी कायम था, क्योंकि वह अब बहुत सी सेवा गतिविधियों में मुख्य भूमिका निभाने लगा था। वह अभी भी अपनी एलोपैथिक गोलियों पर निर्भर था वह सोचता था कि इसके अलावा कोई अन्य उपाय भी नहीं है। वर्ष 2011 में,वाईब्रोनिक्स चिकित्सक बनने के बाद  उसने स्वयं पर रेमेडीज के प्रभाव को जांचने का का मन बना लिया। उसने 8 नवंबर को निम्न औषधि का सेवन शुरू कर दिया:
CC4.1 Digestion tonic + CC4.10 Indigestion + CC15.1 Mental & Emotional tonic…QDS

तीन माह में ही उसे पेट फूलने, अम्ल प्रतिवाह, डकार आने की समस्या से 70% निजात मिल गई थी। 15 फरवरी 2012 को उसने पेंटासिड गोली को एक दिन छोड़ कर लेना शुरू कर दिया। 31 मार्च से उसने इस गोली को हफ्ते में केवल दो बार लेना शुरू कर दिया। वह वाइब्रॉनिक्स औषधि को निरंतर लेता रहा। 1 जुलाई को वह पूर्णतया स्वस्थ हो गया था। पेंटासिड को लेना बंद कर दिया तथा वाइब्रो औषधि की खुराक को भी TDS कर दिया गया था। ढाई माह बाद भी किसी लक्षण की वापसी नहीं हुई तो उसने खुराक को OD कर दिया उसके पश्चात, 15 नवंबर 2012 को उसने उपचार को बंद कर दिया। अभी तक उन्हें किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं हुई है।

 

माइग्रेन 12013 & 11553...India

एक 29-वर्षीय महिला को वर्ष दिसम्बर 2014 से तीव्र सिर दर्द की शिकायत थी। उसको हर माह 15 से 20 दिन इसी प्रकार की दर्द में बिताने पड़ते थे। सिर दर्द आंखों के ऊपर से शुरू होता था फिर वह सिर के बायीं और होने लगता था और सोते समय तक होता रहता था। कभी-कभी उसको सर्दी भी लगती थी और ज्वर भी हो जाता था। ज्वर 102o F तक हो जाता था और उसे एलोपैथिक औषधि का सेवन करना पड़ता था। सिटी स्कैन से भी किसी प्रकार की अनिमियतत्ता नहीं आई थी। उसके विचार से यह समस्या उसके अत्यधिक कार्य के दबाव और मानसिक तनाव के कारण है। उसने एलोपैथिक औषधियों को लेना शुरू कर दिया परन्तु पेट में जलन होने के कारण उन्हें छोड़ दिया।

दिसंबर 2015 में उसने होम्योपैथी उपचार शुरू किया और जनवरी 2017 तक उसको 75% तक लाभ मिल गया था। सिर दर्द की समस्या अब सप्ताह में एक बार ही होती थी और अब तीव्र भी नहीं होती थी तथा 3 से 4 घंटे तक रहती थी। जून 2017 तक अधिक लाभ ना होने के कारण और अत्यधिक व्यय के कारण यह उपचार बंद कर दिया। 15 दिन के बाद सिर दर्द फिर उसी तीव्रता और आवृत्ति के साथ उभरा जो पहले थी। अत: उसे उपचार फिर से शुरू करना पड़ा। 75% लाभ के लिए उस 8  माह तक उपचार लेना पड़ा था। तभी से वह किसी अन्य उपचार की तलाश में थी। तभी उसको वाइब्रॉनिक के बारे में मालूम हुआ। उसने होम्योपैथिक उपचार को बंद कर दिया तथा 15 फरवरी 2018 को चिकित्सा से मिलकर कर उपचार शुरू कर दियाI उसको निम्न औषधि गई:

CC4.10 Indigestion + CC11.3 Headaches + CC11.4 Migraines + CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC19.5 Sinusitis…6TD

30 अप्रैल 2018 को रोगी ने सूचित किया कि अब वह पहले की अपेक्षा अच्छा महसूस कर रही है। उसको ढ़ाई माह पूर्व जो तकलीफ थी वह अब नहीं है। दर्द की आवृत्ति भी कम हो गई थी और दर्द भी ज्यादा देर तक नहीं रहता है। 30 जून को खुराक को TDS कर दिया गया। सिर दर्द निरंतर कम होता गया और 30 सितंबर 2018 को बिल्कुल समाप्त हो गया था। वह औषधि को TDS रुप में कुछ और माह तक लेना चाहती थी जिससे कि बीमारी फिर से प्रगट ना हो जाए। अप्रैल 2018 को खुराक को OD कर दिया गया जो अब तक चल रही है। अप्रैल 2020 तक, वे दवाई को ले रही थी और उसे बंद नहीं करना चाहती है।

 

बेल्स पाल्सी 12013 & 11553...India

अमेरिका में एक 62-वर्षीय महिला पिछले 6 माह  से अत्यधिक तनाव ग्रस्त थी। 4 जून 2015 को जब वह अपनी कार चला रही थी तो उसे अपने चेहरे के बांई और सुन्नपन और दर्द युक्त खिंचाव महसूस हुआ अतः उसे अपनी कार को सड़क के किनारे रोकना पड़ा। उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसके मुंह पर लकवे का प्रभाव हो रहा है, अत: वह आपातकालीन सहायता के लिए एक हॉस्पिटल में गई। डॉक्टर ने इसका निदान बेल्स पाल्सी के रूप में किया तथा उसे बताया कि यह एक गंभीर बीमारी है इसमें हफ्तों तक स्टेरॉयड के सेवन और फिजियोथेरेपी कराने के बाद भी ज्यादा उम्मीद नहीं है। उसने स्टेरॉयड लेने का विकल्प नहीं चुना बल्कि सलाह के अनुसार सप्ताह में दो बार फिजियोथेरेपी शुरू की। उसका मुंह बांई और लटक गया था और उसमें कोई गतिविधि भी नहीं थी। अपने मुंह में भोजन को लेकर उसको चबाने की स्थिति में नहीं थी। भोजन करते समय वह होठों, गालों को काट लेती थी । स्थिति में कोई सुधार ना होने से चिंतित भी रहने लगी थी और उसका तनाव का स्तर भी और बढ़ गया था। 18 जून 2015 को वह बहुत निराश थी अतः उसने अंतरतम से स्वामी से प्रार्थना की तभी उसको आंतरिक चेतना से सूचना मिली कि उसे तुरंत ही चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए, उसके मित्र के अभिभावक USA में आए हुए हैं। उसने तुरंत ही उनको फोन किया और उनकी पुत्री उसके लिए औषधि लेकर आ गई । औषधि में निम्न कोंबो मिलाए गए थे:
CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC18.4 Paralysis…6TD

21 जून 2015 को जब चिकित्सक सांई सेंटर गए तो उनको वह रोगी भी  दिखाई दी लेकिन अब उसके चेहरे पर लक्वे के कोई चिन्ह नहीं थे। उसने बड़ी खुशी के साथ बतलाया कि अब उसके चेहरे पर लकवे का कोई चिन्ह भी नहीं है और वह बिल्कुल सामान्य है, यह मात्र 48 घंटे में ही हो गया था। उसकी किसी भी नस को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था। 24 जून 2015 को खुराक को TDS कर दिया गया। रोगी को ऐसा नहीं लग रहा था कि उपचार को आगे चालू रखा जाए, अत: उसने एक माह तक उपचार लेने के बाद उसे बंद कर दिया । वह चिकित्सकों से निरंतर संपर्क  बनाए रखती है। अप्रैल 2020 तक उसे किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हुई थी।

रोगी के विचार:

“48 घंटों के बाद मेरा चेहरा बिल्कुल सामान्य हो गया था । किसी भी नस को कोई नुकसान नहीं हुआ था। वाइब्रॉनिक्स औषधि लेने के पूर्व मैं अपनी बाई आंख को झपक भी नहीं सकती थी, मुझे अपनी उंगली की मदद से आंख को बंद करना पड़ता था और अक्सर पानी से साफ करना पड़ता था। स्वामी की कृपा और अंकल के प्रेम से मैं बिल्कुल ठीक हूं गई हूं और सामान्य हूं।”

“यह समाचार जान कर डॉक्टर को भी आश्चर्य हुआ। इतनी जल्दी ठीक होने की प्रक्रिया के बारे में उसने कोई समाचार सुना ही नहीं था। वह भी बिना किसी स्टेरॉयड की मदद के। डॉक्टर का कहना है - " यह वास्तव में एक आश्चर्यजनक घटना है। डॉक्टर के रूप में आज तक इस प्रकार की घटना नहीं देखी है।"

 

चिंता, अवसाद, आंतकी हमले, टिनिटस 02899...India

एक 63-वर्षीय महिला चिंता, अवसाद, आंतकी हमले, अनिद्रा, टिनिटस जैसे रोगों से पिछले 10 वर्षों से त्रस्त थी। वह  पूर्ण रूप से एलोपैथिक औषधियों पर निर्भर थी। इन औषधियों से यह रोग नियंत्रण में रहते थे। अतः वह अपने दैनिक कार्यो को सफलतापूर्वक कर लेती थी। यदि वह औषधि बंद कर देती  तो उसकी स्थिति बहुत खराब हो जाती । और दवाइयां लेने के बाद ही उसकी तबीयत ठीक होती थी और इसमें भी अधिक समय लग जाता था। अभी की स्थिति की शुरुआत 1 अप्रैल 2016 को हुई थी, जब पैनिक अटैक बहुत गंभीर हो गये थे, कानों मे भिनभिनाहट की आवाज़े आने लगती थी और भूख भी कम लगती थी। वह सीधे अपने कार्यस्थल को जाती थी और वापस घर आ जाती थी वह कहीं जाने से या आगंतुकों  के घर पर आने से बहुत परेशान हो जाती थी। कानों में आवाज आने की वजह से ठीक से सो भी नहीं पाती थी। नींद की गोलियों से भी उसे राहत नहीं मिलती थी। वह इससे इतना परेशान हो गई थी कि उसने कार्य पर, जुलाई 2016 से, जाना भी छोड़ दिया था। डॉक्टर बजिंग का कारण जानना चाहते थे। 24 जुलाई 2016 को उसे MRI के लिए भेजा गया परंतु उसकी तबीयत दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी।
यद्यपि उसका एलोपैथी पर अत्यधिक विश्वास था फिर भी अपनी 20 वर्ष की मित्रता के कारण उसने चिकित्सक से मिलने का मानस बना लिया था। 23 अगस्त 2016 को चिकित्सक ने उसे निम्न औषधि दी:

#1. CC5.3 Meniere’s disease + CC10.1 Emergencies + CC12.1 Adult tonic + CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC15.2 Psychiatric disorders + CC15.6 Sleep disorders + CC17.3 Brain & Memory tonic…TDS

रोगी की जुड़वा बहन के चिकित्सक से संपर्क में थी  अतः उसने चिकित्सक को बताया कि औषधि #1 की एक खुराक लेने के बाद उसने दवा नहीं ली है। अगले 2 महीने के दौरान उसकी तबीयत और अधिक खराब हो गई थी अतः उसका हॉस्पिटल में आना जाना लगा रहता था। वह कुछ भी नहीं खा पाती थी और बहुत कमजोर हो गई थी । वह सो भी नहीं पाती थी। अब वह घर से बाहर भी नहीं जा सकती थी। अब उसे ऐसा लगने लगा था कि कोई भी उसकी मदद नहीं कर सकता है। उसने अपनी बहन से कहा कि अब वह मरने वाली है।निराशा की हालत में उसकी बहन ने चिकित्सक से 28 अक्टूबर 2016 को संपर्क किया। चूंकि रोगी वाइब्रॉनिक्स औषधि का सेवन ही नहीं करना चाहती थी तो ऐसी स्थिति में क्या किया जा सकता था इस बात पर दोनों में विचार विमर्श हुआ। चिकित्सक ने हाल ही में अपना SVP कोर्स किया था अतः उसने ब्रॉडकास्टिंग माध्यम से उपचार करना शुरू कर दिया । उपचार 31 अक्टूबर को रोगी की फुल साइज फोटो के साथ किया गया। जिस कॉम्बो से उपचार किया गया था वह थी:

#2. NM5 Brain TS + NM6 Calming + NM12 Combination-12 + NM88 Meniere's Disease +

SM39 Tension + SM41 Uplift...TDS

औषधि शुरू करते ही रोगी को थोड़ा आराम मिला उसने थोड़ा खाना भी खाया। उसी दिन शाम को वह अपने पुत्र और पौत्रों से मिलने के लिए गई। ब्रॉडकास्टिंग जारी था, अब वह भोजन करने लगी थी और बातचीत भी करने लगी थी। 3 दिन में ही उसमें 50% अंतर आ गया था आंतकी हमले में और भूख में लेकिन कानों में आवाज आने में कोई कमी नहीं हुई थी। अतः 3 नवंबर 2016 को रेमेडी को बदल दिया गया: 

#3. SM19 Ears + #2...TDS

8 नवंबर 2016 तक रोगी की अवस्था में सुधार हो गया था। कानों में आवाज आने की समस्या में केवल 60% का अंतर आया था। अब उसका MRI का परिणाम आना बाकी थाI कुछ दिनों के पश्चात वह भी आ गया थाI उसके अनुसार उसकी स्थिति बिल्कुल सामान्य थी, उसे कोई बीमारी नहीं थी। रोगी अब औषधि को लेने के लिए तैयार हो गई थी अत: उसकी बहन ने औषधि #3 दे दी थी अब ब्रॉडकास्टिंग बंद कर दिया गया थाI

जनवरी 2017 के अंत तक कानों में आवाज की तीव्रता में 60% की कमी हो गई थी। इस समय एक सलाहकार ने उसका निरीक्षण करके बताया कि आवाज आने का कारण एलोपैथिकऔषधियों का दुष्प्रभाव है अतः डॉक्टर ने  एलोपैथिक औषधियों को कम करके वाइब्रॉनिक औषधियों को उसी रूप में चालू रखना शुरू कर दियाI इससे उसकी  स्थिति में मार्च के अंत तक 80% सुधारहो गया था।

अतः खुराक को BD कर दिया गयाI जुलाई 2017 तक, वह पूर्णतया ठीक हो गई थी उसकी औषधि भी बंद कर दी गई थीI वह अब बिल्कुल सामान्य है और उसे किस भी प्रकार की परेशानी सितंबर 2017 तक नहीं हुई थीI

चिकित्सक की टिप्पणी - जब खुराक को BD किया गया था तो रोगी ने औषधि को लेना बंद कर दिया और इस बारे में किसी को भी नहीं बताया था। बिना दवाई के ही दिसंबर 2019 तक बिल्कुल ठीक थी। जब उसको चिंता करने की बीमारी का हल्का आघात लगा। लेकिन उसने किसी भी प्रकार की औषधि लेने का निर्णय नहीं लियाI इस विश्वास के साथ कि वह स्वयं ही ठीक हो जाएगी। यद्यपि उसको एक हल्का आघात लगा था परंतु उसमें इतना साहस उत्पन्न हो गया था कि 10 वर्ष तक बीमार रहने के बावजूद बिल्कुल ठीक हो गई थी और अब हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार थी वह भी बिना किसी दवाई के।

यदि 108 CC बॉक्स प्रयोग कर रहें हैं तो देवें  #2: CC5.3 Meniere’s disease + CC12.1 Adult tonic + CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC17.2 Cleansing; और  #3: CC5.1 Ear infections + CC5.3 Meniere’s disease + CC12.1 Adult tonic + CC15.1 Mental & Emotional tonic + CC17.3 Cleansing

 

बांझपन - स्तम्भन दोष, डिम्बग्रंथि सिस्ट 10980...India

एक युवा दंपति 3 वर्ष से संतान के लिए प्रयत्नशील थे। उनका विवाह 2011 में हुआ था। 10 मार्च 2014 को, 26 वर्षीय युवक चिकित्सक के पास अपनी मेडिकल रिपोर्ट लेकर गया, जिसके अनुसार युवक नपुंसकता का रोगी था । उसने आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक उपचार पर काफी पैसा खर्च कर दिया था परंतु लाभ नहीं हुआ। उसको निम्न औषधि दी गई:

CC14.3 Male infertility…TDS

दो सप्ताह बाद रोगी ने सूचना दी कि उसको 50% का लाभ हो गया है। 6 अप्रैल 2014 को वह अपनी पत्नी को लेकर चिकित्सक के पास गया। दोनों प्रसन्न नजर आ रहे थे पति का इलाज से रोग दूर हो चुका था, परंतु वह रेमेडी को ढाई माह तक लेने के बाद 20 जून 2014 को अपने हिसाब से बंद कर दिया यह सोच कर कि अब इसकी कोई आवश्यकता नही थी।

पत्ति को इतनी जल्दी ठीक हो जाने से प्रेरित होकर 23 वर्षीय वह युवती भी वाइब्रॉनिक्स औषधि को चाहती थी। उसे 1 वर्ष से अनियमित मासिक धर्म की शिकायत थी। उसके दो मासिक धर्म के बीच में अंतर दो-तीन माह का होता था। दिसम्बर 2013 में, अल्ट्रासाउंड से ज्ञात हुआ था कि उसको डिंब ग्रंथि पुट्टी की समस्या है। उसको 5 अप्रैल 2014 को, निम्न उपचार दिया गया:

CC8.1 Female tonic + CC8.4 Ovaries & Uterus + CC8.8 Menses irregular…TDS

उसके मई से जुलाई तक, तीन चक्र समय से हुए। उन्हें अपार प्रसन्नता हुई जब वह अगस्त 2014 में गर्भवती हो गई। गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच से पता चला कि डिंब ग्रंथि में पुट्टी नहीं है। गर्भावस्था के दौरान उसे औषधि लेते रहने की सलाह  दी गई। उस दंपति ने 29 मई 2015 को सुखद सूचना दी कि उन्हें स्वस्थ पुत्री की प्राप्ति हो गई है। वह दोबारा गर्भवती हुई और मई 2018 में पुत्र का जन्म हुआ। मां और पुत्र दोनों स्वस्थ हैं। अब उनका पूरा परिवार केवल वाइब्रॉनिक्स औषधियों का ही सेवन करता है। अप्रैल 2020 तक वह सभी स्वस्थ एवं प्रसन्न थे।

रोगी की टिप्पणी - 15 मार्च 2019: मार्च 2014 में मैंने और मेरी पत्नी ने क्रमशः नपुंसकता एवं डिंब ग्रंथि की पुट्टी एवं अनियमित मासिक धर्म के लिए उपचार लिया था। हमारे विवाह के 3 वर्ष बाद भी संतान नहीं हुई थी। 3 माह तक उपचार करने के बाद मेरी पत्नी गर्भवती हुई और 8 मई 2015 को हमें पुत्री की प्राप्ति हुई। अभी हाल ही मई 2018 में हमें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। वर्ष 2014 से अभी तक हमने उपरोक्त समस्या के लिए कोई उपचार नहीं लिया है और कोई तकलीफ भी नहीं हुई है। हमें इन रोगों में मदद करने के लिए, हम वाईब्रोनिक्स उपचार और साईं बाबा के आभारी हैं।

 

मासिक धर्म का दर्द, रक्ताल्पता, अम्लता 11585...India

एक दूरस्थ गांव की 38-वर्षीय महिला को मासिक धर्म के समय तीव्र वेदना होती थी। यह समस्या उसे पिछले 25 वर्षों से थी यद्यपि रक्त स्त्राव सामान्य ही था। डॉक्टर की सलाह के अनुसार दर्द जब असहनीय हो जाता था तो वह दर्द निवारक गोलियों का सेवन कर लेती थी। 2 साल पूर्व, उसके पेट में जलन भी होने लगी थी तब वह एंटासिड गोली का सेवन करती थी। मार्च 2017 में, मालूम हुआ कि उसके शरीर में रक्त की कमी है, उसका  Hb काउंट 7 था, जो कि सामान्य स्तर 12-16g/dL से बहुत कम था। 25 अप्रैल 2017 को वह चिकित्सक के पास आई और अपनी कमजोरी और थकान के बारे में चर्चा की। उसको निम्न औषधि दी गई:

मासिक धर्म और रक्ताल्पता के लिए :

#1. CC3.1 Heart tonic + CC8.8 Menses irregular + CC12.1 Adult tonic...TDS
उसने औषधि #1 को शुरू करने के पहले दर्द निवारक गोलियों का सेवन बंद कर दिया था लेकिन एंटासिड का उपयोग जारी था । 19 मई 2017 को जब वह चिकित्सक से मिलने आई तो बहुत प्रसन्न थी। इस बार उसे मासिक के समय दर्द नहीं हुआ था, 25 वर्षों में पहली बार। उसको औषधि #1 को लेते रहने के लिए कहा गया और उसको अम्लता के लिए औषधि दी गई:

अम्लता के लिये:

#2. CC4.10 Indigestion...TDS

इस दवा को शुरू करने के बाद, उसमें एंटासिड लेना भी बंद कर दिया था। 8 सप्ताह के बाद 16 जुलाई को उसने सूचित किया कि जून और जुलाई के मासिक धर्म के समय कोई दर्द नहीं हुआ और पेट में जलन की समस्या भी पूर्णतया ठीक हो गई है। उसको अब कमजोरी और थकान की समस्या भी नहीं है। वह अब रक्त परीक्षण की आवश्यकता महसूस नहीं करती है। औषधि #1#2 की खुराक को BD कर दिया गया 2 सप्ताह के लिए फिर 2 सप्ताह के लिए OD, फिर धीरे धीरे कम करते हुए OW तथा 30 सितंबर 2017 को बंद कर दी। वाइब्रॉनिक्स दवा के प्रभाव से प्रेरित होकर उसके परिवार के सभी सदस्य इन्हीं औषधियों का सेवन करने लग गए। अप्रैल 2020 में मिली सूचना के आधार पर वह बिल्कुल स्वस्थ एवं प्रसन्न है।
 

 

कब्ज़ 11614...India

एक 61 वर्षीय वृद्ध महिला पिछले 5 वर्षों से कब्ज से पीड़ित थी। यद्यपि वह प्रतिदिन 2 लीटर पानी पी लेती थी। वह संतुलित भोजन करती थी जिसमें फलों और सब्जियों का भी समावेश होता था। पेट साफ करने के लिए उसे काफी मशक्कत करनी पड़ती थी, इसके साथ ही उसे रेचक का भी उपयोग करना पड़ता था। इतना सब करने पर भी
उसे 3 दिन में एक बार दस्त होता था। 7 सितंबर 2019 को, उसे निम्न औषधि दी गई:
CC4.1 Digestion tonic...TDS

1 सप्ताह पश्चात रोगी ने बताया कि उसे 30 से 40 प्रतिशत तक का लाभ हुआ है क्योंकि अब वह एकांतर दिनों में  दस्त के लिए जाती है और पहले की अपेक्षा अब तकलीफ भी कम होती है। एक और सप्ताह के बाद वह पूर्णतया ठीक हो गई थी और प्रतिदिन पॉटी के लिए जाने लगी। 4 अक्टूबर 2019 को रोगी ने बतलाया कि 3 दिन पूर्व उसने रेचक औषधियों का सेवन भी बंद कर दिया है। उसका पेट अब बिल्कुल ठीक है और 5 वर्षों से चल रही बीमारी दूर हो गई है। खुराक को कम करके OD कर दिया गया और धीरे-धीरे कम करते हुए OW कर दी। 28 अक्टूबर को उसने स्वयं ही उपचार को बंद कर दिया, उसे अब इसकी आवश्यकता महसूस नहीं होती थी। अप्रैल 2020 तक, उसे यह समस्या दोबारा नहीं हुई।

 

स्पॉन्डिलाइटिस, त्वचा पर खुजली 11614...India

एक 54-वर्षीय पुरुष को कई प्रकार के  रोग थे। जब वह चिकित्सक के पास आए तो उन्हें दोनों कंधों में जकड़न, गर्दन में जकड़न थी पिछले 6 माह से और वह अपनी गर्दन को बिना तकलीफ के घुमा नहीं पाते थे। वह किसी भी प्रकार की दवा का सेवन नहीं करते थे। पिछले 3 माह से उनके बाएं हाथ और बांई पिंडली में बहुत खुजली होती थी जिससे वह बहुत परेशान थे। डॉक्टर द्वारा बताए गए मल्लम को लगाने से कोई लाभ नहीं हुआ, अतः उसको भी छोड़ दिया। 15 दिन पूर्व गर्दन और कंधे का दर्द असहनीय हो गया। डॉक्टर ने बताया कि यह स्पॉन्डिलाइटिस है। डॉक्टर ने फिजियोथैरेपी उपचार कराने की सलाह दी। 1 सप्ताह तक उसने यह उपचार लिया परंतु इससे भी कोई विशेष लाभ नहीं हुआ, अतः उसे एलोपैथिक औषधियों का सहारा लेना पड़ा, दूसरे सप्ताह में। इससे उसको थोड़ा आराम मिला परंतु दर्द तो अभी भी कायम था। बाद में 3 दिन पूर्व, उसे बाएं कंधे में सुन्नपन का एहसास होने लगा था। तब उसने एलोपैथिक उपचार को छोड़कर कर वाइब्रॉनिक्स उपचार को शुरू किया। 25 सितंबर 2019 को चिकित्सक ने उसे निम्न औषधि दी:

CC20.5 Spine + CC21.3 Skin allergies…TDS

5 दिन में ही सुन्नपन ठीक हो गया इसके साथ ही गले और कंधे की जकड़न में भी फायदा हुआ। खुजली में भी 60-70% का लाभ हुआ था। 17 अक्टूबर 2015 तक वह 100% तक ठीक हो गया था। उसने कहा यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि अपनी सभी शारीरिक समस्याओं से वह मुक्त हो गया है। यह सब उपचार मात्र 18 दिनों में ही हो गया था। खुराक को पहले OD तक कम करने के बाद 3 सप्ताह के लिए OW  करके बंद कर दिया गया। दिसंबर 2019 को रोगी ने सूचित किया कि सब कुछ बिल्कुल ठीक है। अप्रैल 2020 तक, रोगी को दोबारा तकलीफ नहीं हुई थी।

 

पापुलर पित्ती 03552...UAE

एक 37-वर्षीय महिला के हाथ, पांव और पेट पर बहुत खुजली होती थी। वह महिला गर्भवती भी थी। उसकी बीमारी का निदान पित्ती के रूप में किया गया था । डॉक्टर ने उसे कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम लगाने की सलाह दी थी। रोगी उस क्रीम का उपयोग नहीं करना चाहती थी। वह आयुर्वेदिक उपचार के रूप में नीम पेस्ट, ग्वार पाठा का जैल और ओट मील से स्नान करती थी, परंतु इनका प्रभाव भी नगण्य ही था। वह चिकित्सक के पास 18 जुलाई 2016 को पहुंची, उसे निम्न औषधि दी गई:
#1. CC13.1 Kidney & Bladder tonic + CC21.3 Skin allergies…TDS तथा पानी में मिलाकर बाह्य उपयोग के लिए...BD, सुबह नहाने के बाद और रात्रि को सोने से पहले।

#2. CC8.2 Pregnancy tonic…TDS

अगले दिन हाथ व पांव पर खुजली बढ़ गई थी लेकिन रोगी दवा को निर्धारित खुराक के अनुसार TDS ही लेता रहा। 2 दिनों के बाद वृद्धि अपने आप ही कम हो गई और उसी सप्ताह में हाथ व पैर की खुजली में 90% का लाभ हो गया था, पांवो की खुजली में भी 50℅ की कमी हो गई थी।

तीसरे सप्ताह के अंत तक, 7 अगस्त 2016 को, खुजली एकदम ठीक हो गई थी। रोगी को उस समय और भी अधिक खुशी हुई जब उसे यह ज्ञात हुआ कि जहां पर शल्यक्रिया की गई थी उस स्थान का दर्द भी ठीक हो गया था। औषधि #1 खुराक को कम करके 1 सप्ताह के लिए BD कर दिया गया उसके पश्चात एक माह तक OD करके 15 सितंबर तक बंद कर देना था। उसको औषधि #2 को शिशु के जन्म लेने तक लेना था। अक्टूबर 2016 को उसने एक बालक को जन्म दिया। रोगी ने 2019 में जब चिकित्सक से संपर्क किया था उसको किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हुई थी।

 

चिकित्सकों की रूपरेखा 10354...भारत

चिकित्सक10354...भारत यह चिकित्सक एक योग्य केमिकल इंजीनियर है। इन्होंने केमिकल प्लांट डिजाइनिंग में स्नातकोत्तर किया है। उन्हें आईटी कंपनी में कार्य करने का 25 वर्ष का अनुभव है। उन्होंने वर्ष 2012 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी । उनका रुझान रियल एस्टेट के क्षेत्र में कार्य करने का है और वह बंगलोर में पिछले 6 वर्षों से यही कार्य कर रहे हैं।
2002 में वह मस्कट में अधिकारिक कार्य से गए थे । वहां उनके मित्र उन्हें साईं भजन में ले गए थे, यह भजन इन्हें बहुत अच्छे लगे। इन्होंने साईं बाबा से संबंधित पुस्तकों का अध्यन शुरू किया और वह उन्हें ईश्वर मानने लगे थे। 1 वर्ष में ही वह जहां भी गए साईं संगठन की गतिविधियों में सक्रिय रुप से कार्य करने लगे। वह महाराष्ट्र के सेवा दल के साथ हर वर्ष पुट्टपर्थी  भी जाने लगे। पुणे साईं समूह से प्रेरित होकर कर उन्होंने अपने कई अन्य साथियों के साथ वाईब्रोनिक्स कोर्स में प्रवेश लिया। यह घटना 2008 की है।

दिसंबर 2008 में AVP व अक्टूबर 2009 में VP के प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद पुणे के आसपास स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर सेवाएं देने लगे। बाद में काम के दबाव के कारण वह वाईब्रोनिक्स सेवा के लिए अलग से समय नहीं दे सके और कुछ वर्षों तक वह यह सेवा नहीं कर सके। वर्ष 2018 में उनकी पुनः इस सेवा को शुरू करने की इच्छा हुई। डॉ अग्रवाल के सुझाव के अनुसार उन्होंने पुट्टपर्थी  में आयोजित रिफ्रेशर कोर्स में ऑनलाइन माध्यम से भाग लिया।

अगले माह से ही उन्होंने शिरडी साई मंदिर पर लोगों का वृहस्पति वार के दिन उपचार शुरु कर दिया। कुछ माह बाद, एक अन्य चिकित्सक11597 ने, उनको मदद करना शुरू कर दिया। वह शिरडी साई मंदिर में शाम के समय दोनों मिलकर 60-70 रोगियों का उपचार कर लेते थे। यह रोगी अधिकांश रूप से दूरस्थ स्थानों के होते थे। जैसे-जैसे यह रोगी ठीक हो जाते थे अन्य रोगियों को भी इस उपचार के बारे में बतलाते थे। चिकित्सकों के अनुसार, यह सफलता वाइब्रॉनिक्स की उपचारक क्षमता तथा साईं मंदिर के प्रभाव के कारण थी। 21 फरवरी 2020 को शिवरात्रि के अवसर पर उन्होंने अकेले ही दूसरे दिन सुबह तक रोगियों का उपचार किया था। साईं संगठन द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों में आयोजित कैंपों में नियमित रूप से सेवाएं देते हैं, यह कैंप माह के अंतिम रविवार को आयोजित किए जाते हैं।

चिकित्सक ने यह भी बताया कि कुछ रोगियों को स्वपन में शिर्डी साईं मंदिर में जाने के लिए भगवान द्वारा निर्देशित किया गया था । उदाहरण स्वरूप :

  • एक 11 वर्षीय बालक जो कि थायराइड के कारण बोलने में असमर्थ  था, मई 2019 में यह स्वपन देखने के तुरंत बाद ही, चिकित्सक के पास बच्चे को उपचार के लिए लाया गया। उसकी मां ने कई हॉस्पिटल में उपचार पर काफी पैसा खर्च कर दिया था। केवल 2 माह के उपचार से, उसकी तबीयत में 60℅ का सुधार हो गया था।  मार्च 2020 तक उसे 80% का लाभ हो गया था। उसका वाइब्रॉनिक्स उपचार अभी भी चल रहा है।
  • एक 39-वर्षीय महिला को स्वपन में सभी महंगी दवाइयों को बंद करने के लिए कहा गया जिनको वह महिला और उसके दो बच्चे ले रहे थे। उनसे शिरडी मंदिर में जाने के लिए कहा गया और वहां के वाइब्रो उपचार लेने के लिए कहा गया। 3 सप्ताह के उपचार से ही उसका 10 वर्ष पुराना माइग्रेन ठीक हो गया था, अपच और अनिद्रा रोग भी ठीक हो गए थे। इसी प्रकार उसकी पुत्री और पुत्र भी अपनी-अपनी जीर्ण समस्याओं से 95% मुक्त हो गए थे। वे अभी शेष 5℅ के लिए उपचार ले रहे हैं।

उन्होंने अब तक 4000 रोगों का उपचार कर लिया है। बहुत से रोगियों को उपचार से काफी लाभ  प्राप्त हुआ है विशेषकर उच्च रक्तचाप और मधुमेह के रोगी; अन्य लाभार्थी जिनको अपने अपने रोगों से लाभ मिला है, उनके रोगों के नाम हैं, बवासीर, गैस्ट्रोएंट्राइटिस, अनियमित महावारी, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOD), ल्यूकोरिया, बालों का झड़ना, माइग्रेन, गुर्दे की पथरी, हे-फीवर, श्वसन परेशानी, एपिलेप्सी एवं मांसपेशियों में दर्द तथा एलर्जी।

चिकित्सक के कुछ दिलचस्प उपचार:

  • दो महिलाओं को तीन-चार बार गर्भपात हो चुका था, पिछले 2 वर्षों में। पांच माह के बाद उन्हें गर्भाधान हुआ और अब स्वस्थ बच्चों की मां हैंI
  • एक 30-वर्षीय मजदूर जो मकान बनाने का कार्य करता था कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त था। उसके रोग थे, बवासीर, पेट में अल्सर और गैस। वह 3 वर्षों से अधिक समय से इन रोगों से ग्रसित था। वाइब्रो चिकित्सक से मुलाकात से पहले वह कई हॉस्पिटल में उपचार करवा चुका था परंतु कोई लाभ नहीं हुआ था। 3 माह के उपचार के बाद में इन सभी रोगों से मुक्त हो चुका था।
  • मधुमेह टाइप-2 के 7 रोगियों ने 6 माह तक उपचार लिया जिसके पश्चात फिर उन्होंने अपने डॉ के निर्देशन में एलोपैथिक दवा को कम करना शुरू कर दिया। 3 माह बाद उन्होंने एलोपैथिक दवा बंद कर दी और अब 1 वर्ष से केवल वाइब्रो उपचार ले रहे हैं; उनके शरीर में शुगर का स्तर सामान्य बना हुआ है।
  • उनके कुछ टाइप-1 मधुमेह के रोगी यद्यपि इंसुलिन ले रहे हैं, वे उपचार के बाद काफी अच्छा महसूस करते हैं।

मांसपेशियों में दर्द, जले हुए स्थान, फटी एड़ियां, बिना संक्रमण वाले घाव, त्वचा पर चकत्तो के लिए वह पिल्स के अलावा जल्द आराम के लिए पेट्रोलियम जेली में विभूति मिलाकर बाह्य उपयोग के लिए देते हैं, बालों की समस्याओं और गंजेपन के लिए रेमेडी को नारियल के तेल में बना कर देते हैं, जिसे सिर की त्वचा पर मालिश के रूप में लगाना होता है, इससे उनके रोगियों को बहुत लाभ मिला है। जिन बच्चों को CC12.2 Child tonic + CC17.3 Brain & Memory tonic दिया 2 माह तक, तो उनका पढ़ाई में प्रदर्शन अच्छा रहा था जिन्होंने 9 माह तक दवाई का सेवन किया था उनका प्रदर्शन ना केवल पढ़ाई में बल्कि और सामान्य व्यवहार में उत्कृष्ट हो गया था। चिकित्सक ने यह भी बतलाया कि वर्ष 2018 की महामारी डेंगू के दौरान उनके 260 रोगियों में से किसी को भी इस बीमारी के दौरान खतरा पैदा नहीं हुआ था, जिनको CC9.2 Infections acute + CC9.3 Tropical diseases + CC9.4 Children’s diseases,दिया गया था। जबकि उनके क्षेत्र में इसका प्रकोप चरम पर था। मार्च 2020 में, वह रेमेडी ‘इम्यूनिटी बूस्टर’ 300 परिवारों को दे रहे हैं, COVID-19 से मुक्त रहने के लिए; इसके साथ ही वह स्वस्थ रहने हेतु निर्देश भी देते रहते हैं।
कम समय में अधिक रोगियों के उपचार के लिए वह ‘वैलनेस किट’ का उपयोग करते हैंI उन्होंने वैलनेस किट का विकसित रूप तैयार किया है; ‘वैलनेस किट’ की रेमेडीज में कुछ और रेमेडीज मिलाकर जो कि सामान्यतया रोगियों को लाभ प्रदान करती है। रोगी की उम्र और स्थिति को देखते हुए रोगी को सांत्वना देते हुए, जीवन शैली में बदलाव की अनुशंसा करते हैं। उनके सुझावों में होते हैं; पानी की व्यवस्था, स्वस्थ आहार जिनमें ताजी सब्जियां एवं फल, प्रोसेसड खाने की वर्जना, नित्य पैदल चलना और अपनी समस्याओं को स्वामी के चरणों में रखना। उनका अनुभव है कि हमारे पवित्र विचारों के कारण रोग शीघ्र ठीक होते हैं और जीर्ण रोगों की पुनरुत्पत्ति बहुत कम हो जाती है।

उनकी पत्नी, साप्ताहिक क्लिनिक और मासिक कैंप के लिए, उनकी मदद करती है। वह रोगियों को लाइन में व्यवस्थित रखती है और औषधि की पहली खुराक भी रोगी के मुंह में रखती है। रोगियों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सुझाव भी देती है। वह इमानदारी से यह स्वीकार करते हैं कि वह तो स्वामी के उपकरण मात्र हैं और उनके  जीवन का उद्देश्य मानवता की सेवा करना है। भगवान के संदेशानुसार, “मानव सेवा ही माधव सेवा है।”.

अनुकरणीय उपचार:

 

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चिकित्सकों की रूपरेखा 12013 & 11553...भारत

चिकित्सक12013 & 11553...भारत  आध्यात्मिक रुझान  वाले परिवार के सदस्य हैं। पति मैकेनिकल इंजीनियर है तथा प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की है। वर्ष 2018 में,जनरल मैनेजर के पद से 38 वर्ष की सेवा के पश्चात सेवानिवृत्त हुए हैं, पत्नी विज्ञान विषय की स्नातक है। 30 साल की सेवा के बाद वर्ष 2012 में सेवानिवृत्त हुई है। इन्होंने हाई स्कूल में अध्यापन का कार्य किया है। पति तो साईं के वातावरण में ही पला और बढ़ा हुआ है परंतु पत्नी शादी के बाद ही साईं फील्ड में आई। पिछले 40 से 45 वर्षों से साईं संगठन में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। पत्नी 1985 से, बाल विकास गुरु का कार्य कर रही हैं तथा महिला समन्वयक भी है तथा उसके पति आध्यात्मिक समन्वयक है। वर्ष 2011 में पति को एक योजना का कार्य प्राप्त हुआ इसके अंतर्गत उन्हें एक पहाड़ी पर स्थित गांव में पेयजल उपलब्ध कराना था। यह गांव महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में है। इस योजना के तहत एक कुआं नदी किनारे स्थानीय नागरिकों की मदद से बनवाया गया, उस कुएं में से पानी को खींचकर पहाड़ी पर एक टेंक में डाला गया। इस कार्य से वहां रहने वाले 200 निवासियों को बहुत आराम मिला, अन्यथा उन्हें नीचे से पानी लेने जाना पड़ता था। वर्ष 2008 में, इस दंपति की मुलाकात एक वरिष्ठ भक्त  से हुई। इस दंपत्ति ने देखा कि किस प्रकार रोगी इन रेमेडीज़ के माध्यम से रोग मुक्त हो रहे हैं और उन्हें किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं होता है। वरिष्ठ भक्त ने उन्हें प्रेरित किया कि आप भी यह ट्रेनिंग ले ले और सेवा कार्य से जुड़ जाएं।  सेवा मुक्त होते ही पति ने ट्रेनिंग ले ली और 2011 में चिकित्सक बन गए पत्नी ने भी उसके पश्चात ट्रेनिंग ले ली और 2012 में वह भी चिकित्सक बन गई। शुरू में, दोनों ने ही एक दूसरे के जीर्ण रोगों का उपचार किया और घुटने के दर्द तथा अपच से निजात पा ली। इससे उनके अंदर उपचार करने की प्रवृत्ति जागृत हुई और आत्मविश्वास भी प्राप्त हुआ। पिछले 8 वर्षों में, उन्होंने 500 रोगियों का उपचार किया है जिन रोगों का उपचार किया है वे हैं -  वेरीकोज वेन्स, अम्लता, दस्त, बुखार, खाँसी और सर्दी, राइनाइटिस, माइग्रेन, सिर का चक्कर, मिर्गी, पक्षाघात, गठिया, फ्रोजन शोल्डर, पीठ दर्द और सोरायसिस। उनके कई मरीज़, पहले  विभिन्न उपचारात्मक उपायों  द्वारा ईलाज करा  चुके थे लेकिन उन्हें कोई सफलता हासिल नहीं हुई , और अंत में वाईब्रोनिक्स द्वारा ईलाज कराने पर वे पूर्णतया ठीक हो गये I ऐसे  व्यक्ति बहुत खुश होते हैं और साहसपूर्वक दूसरों को भी इसी तरह की समस्याओं के लिए घोषणा करते हैं कि केवल वाईब्रोनिक्स उपचार  के कारण वे ठीक हो गए हैं। सामान्य तौर पर, उनके अनुसार किसी रोगी की स्थिति में सुधार, उसकी बीमारी की प्रकृति, इतिहास एवं रोगी के विश्वास, धैर्य और दृढ़ता पर निर्भर करता है। कभी-कभी ईलाज में थोड़ा सा ही सुधार आना शुरू होता है, लेकिन कुछ व्यक्ति तत्काल ईलाज की उम्मीद करते हैं तो वे निराश हो जाते हैं I ऐसे मामलों में, चिकित्सक निरंतर उनके आत्मविश्वास और विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए , परामर्श अनुसार उपचार करने पर बल देते हैं I उनके अनुभव अनुसार,  सभी रोगियों में से लगभग 70% ठीक हो जाते हैं।

यह चिकित्सा साप्ताहिक कैंप में भी भाग लेते हैं जो श्री सत्य साईं संगठन द्वारा आयोजित किए जाते हैं। एक कैंप के दौरान जून 2016 में, दो रोगियों से मुलाकात हुई जो महीनों से सोरायसिस रोग से पीड़ित थे। एक ने एलोपैथिक उपचार लिया तो दूसरे ने होम्योपैथिक उपचार लिया, दोनों को ही कोई लाभ नहीं हुआ, फिर उन्होंने वाइब्रॉनिक्स उपचार लिया। उन्हें CC21.3 Skin allergies + CC21.5 Dry Sores + CC21.10 Psoriasis,दिया गया और यही रेमेडी नारियल के तेल में मिलाकर बाह्य उपयोग के लिए। पहला रोगी पूर्णतया ठीक हो गया और उसे यह रोग दोबारा नहीं हुआ । दूसरे रोगी को 4 माह के उपचार के बाद 80% लाभ हुआ उपचार चल रहा है। दंपत्ति का मानना है कि वाईब्रोनिक्स स्वास्थ्य कैम्प का आवश्यक अंग होना चाहिए। बहुत से डाक्टर स्वामी के बारे में जानते हैं या जो उनके अनुयाई हैं, रोगियों को हमारे पास भेजते रहते हैं, जिससे उनको जल्दी आराम मिल सके। जीर्ण रोगों जैसे कि कब्ज, पाइल्स, अनिद्रा, घुटने का दर्द, कमर दर्द और अस्थमा के लिए लाभप्रद है क्योंकि व्यक्ति जल्दी आराम के लिए एलोपैथिक उपचार को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि यह रोग उनकी दिनचर्या के लिये चुनौतीपूर्ण होते हैंI

ये चिकित्सक दवा को डाक द्वारा अपने मित्रों और रिश्तेदारों को भारत के विभिन्न भागों में भेजते रहते हैं। अपने बच्चों के पास यूएसए में 2 साल के अंतराल पर जाते हैं। जाते समय वे अपने साथ वैलनेस किट के अलावा 36 अन्य रेमेडीज 108CC बॉक्स में से ले जाते हैं। यह औषधियां सामान्य रूप से होने वाली बीमारियों के लिए होती हैं जैसे कि सर्दी जुकाम, बुखार, सिर दर्द, अपच, सभी प्रकार के दर्द तथा कुछ जीर्ण रोगों के लिए जिसके लिए उनको पहले सूचना दे दी गई होती है। USA के साईं भक्तों को इस औषधि से बहुत लाभ मिला है उनकी बेटी के परिवार वालों को इस उपचार पर अत्यधिक भरोसा है। यहां तक कि उनकी 4 वर्षीय पोती भी तबीयत ठीक ना होने पर “वाइब्रॉनिक्स की दवा” की मांग करती है।

चिकित्सक इस बात को महसूस करते हैं कि मानवता के लिए यह औषधि एक वरदान है जो कंपन के आधार पर कार्य करती है और इसके कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है। यह निशुल्क उपलब्ध है। चिकित्सक इस उम्मीद से औषधि प्रदान करता है कि ठीक करने  वाले तो स्वामी ही हैं वह तो मात्र उनके हाथ का उपकरण है। समय के साथ, वाइब्रॉनिक्स में उनका विशवास बढ़ता ही जा रहा है। वह इस विचारधारा के हैं कि जितने अधिक व्यक्ति इस उपचार से ठीक होंगे उतने ही अधिक लोगों को इस औषधि को लेने के लिए प्रेरित करेंगे। उन्हें उम्मीद है कि और अधिक लोग इस विद्या को अपनाएंगे और दूरस्थ प्रदेशों में जाकर सेवा करेंगे, जहां तक यह अपनी पहुंच नहीं बना पाई है। वाइब्रो सेवा करने से आत्म संतुष्टि प्राप्त होती है,यह ईश्वर की पूजा के सामान है!

अनुकरणीय उपचार :

 

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1: क्या मैं कोविड-19 की दवा लेते हुए अन्य दूसरी जटिल या एक्यूट समस्या के लिए दवा ले सकता हूं?
 

उत्तर : कोविड-19 की रेमेडी को इसी रूप में प्रातः उठते ही लेनी होती है । अन्य बीमारी के लिए दूसरी रेमेडी को 20 मिनट के पश्चात लिया जा सकता है। हम यह जानते हैं कि नोसोड और मियाज्म को लेते वक्त भी हम नियम का पालन करते हैं। जब हमें इनके साथ अन्य रेमेडी को देना भी अत्यावश्यक होता है। हम इस बात को भी मानते रहे हैं कि दो रेमेडीज के बीच का 5 मिनट का अंतर पर्याप्त होता है, परंतु आधुनिकतम अनुसंधानों के फलस्वरूप यह मालूम हुआ है कि 20 मिनट का अंतर ही आदर्श अंतर है।_____________________________________________

प्रश्न 2: तीव्र समस्याओं के लिए मैंने अपने परिवार के सदस्यों को 108CC बॉक्स से एक बूंद रेमेडी को पानी में मिलाकर देने से वह अधिक प्रभावशाली हो जाती है वनस्पति इसके कि पहले पानी में गोलियों को घोलकर दवा बनाई जाए। क्या मैं ऐसा अपने रोगियों के लिए भी कर सकता हूं?

उत्तर: हां, तुम कर सकते हो लेकिन तुम्हें ध्यान रखना होगा कि रेमेडी तभी तक शुद्ध रह सकती है, जब तक की पानी शुद्ध रह सकता है, मान लो 1 सप्ताह। यदि जीर्ण रोगी इसका उपयोग करता है तो उसको तुम्हारे पास हर हफ्ते आना पड़ेगा ।( देखें प्रश्न 3 वॉल्यूम 9#2)
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प्रश्न 3: SRHVP मशीन का तांबे का बर्तन काला पड़ गया है। क्या यह रेमेडीज़ बनाने में कोई बाधा डालता है? क्या मैं इसको किसी और तरीके से साफ कर सकता हूँ?

उत्तर: वैल के काला पड़ जाने से रेमेडीज़ को बनाने में कोई फर्क नहीं पड़ता है। वैसे वैल को समय- समय पर साफ करते रहना चाहिए, एथिल अल्कोहल की कुछ बूंदों और मुलायम सफेद कपड़े की मदद से।

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प्रश्न 4: मैंने हाल ही में स्प्रे बोतल के स्थान पर डिफ्यूजर का उपयोग करना शुरू कर दिया है I CC15.1 को अपने मकान छिड़कने के लिए जिससे कि नकारात्मक ऊर्जा का निष्कासन हो जाए। क्या आप डिफ्यूजर के उपयोग के लिए सहमत हैं?

उत्तर: ऊपरी तौर पर देखा जाए तो डिफ्यूजर के उपयोग में कोई अंतर दिखाई नहीं देता है क्योंकि यह कमरे के बड़े क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है। किसी भी सुगंध को कमरे में फैलाने के लिए डिफ्यूजर का उपयोग अच्छा है। लेकिन औषधि के रूप में जब हम किसी रेमेडी को देते हैं तो उस समय हम स्वामी से प्रार्थना भी करते हैं। यहां प्रार्थना का महत्व रेमेडी से अधिक है। अतः जब हम डिफ्यूजर का उपयोग कर रेमेडी को कमरे में फैलाना चाहते हैं तो डिफ्यूजर जब भी रेमेडी को फैलायेगा तब प्रार्थना नहीं की जा सकती हो जो कि सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। अत: डिफ्यूजर की अपेक्षा छिडकाव ही बेहतर विकल्प है।

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प्रश्न 5: मेरा एक रोगी विदेश में रहता है वह सिस्टमिक लुपस रोग से ग्रसित है। SVP मैन्युअल के अनुसार उसको ब्लड नोसोड देना ही उपयुक्त है । वह ब्लड सैंपल भेजने में असमर्थ है। क्या इसका कोई अन्य उपाय भी है?

उत्तर: हां! इसका उपाय है। ब्लड नोसोड का उपयोग किसी भी सिस्टमेटिक बीमारी को ठीक करने के लिए किया जाता है। शरीर की पूरी जानकारी यदि किसी अन्य अंग में है तो वह है बाल। यद्यपि इसका उपयोग बालों की समस्याओं के लिए किया जाता है लेकिन इनका उपयोग किसी भी सिस्टमिक बीमारी के लिए भी किया जा सकता है। अतः तुम्हारे रोगी के बालों का नोसोड उतना ही प्रभावी होगा जितना कि उसके रक्त का नोसोड।

नोट: जब नोसोड शरीर के रोग ग्रस्त भाग से लिए गए रिसाव से जैसे कि पेशाब, थूक, पस, कान/ नाक/ आंख से लिया जाता है तो शरीर के उसी भाग का  उपचार करता है। रक्त या बाल से तैयार नोसोड भी इस कार्य के लिए उपयोग में लिया जा सकता है, लेकिन विशिष्ट रुग्ण पदार्थ से बना नोसोड बहुत तेज़ी से परिणाम प्राप्त करेगाI
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प्रश्न 6: मैं अपने रोगी के लिए चार एलोपैथिक दवाइयों को पोटेन्टाइज़ करना चाहता हूं। ये अपने दुष्प्रभावों के कारण कुछ समस्याएं पैदा कर रही है। यद्यपि ये औषधियां उसकी समस्याओं के लिए सही औषधियां है। क्या पोटेन्टाईज़ड औषधियों के कारण भी  पुल आउट हो सकता है?

उत्तर: तथ्य यह है कि रोगी की एलोपैथिक औषधियों के दुष्प्रभाव भी अधिक है। पोटेन्टाईज़ड औषधि इन दुष्प्रभावों को कम कर सकती है । ऐसी स्थिति में पुलआउट तो होता ही हैI कभी-कभी यह इतना कम होता है कि पता ही नहीं चलता है जबकि कुछ केसों में यह अत्यधिक होता है। लेकिन इसको पहले से ही जान लेना संभव नहीं होता हैI  अत: सुरक्षित यही है कि पहेली एक डोज़ दो, उसके प्रभाव को देख कर ही खुराक को बढ़ाना उचित रहेगा। यही तरीका ही उस समय अपनाया जाता है जब रोगी का उपचार पोटेन्टाइज़ड ऐलर्जन से किया जाता है।

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प्रश्न 7: यह माना जाता है कि रोग का कारण दिमाग ही होता हैI क्या यह उस समय भी जिम्मेदार होता है जब किसी दुर्घटना के कारण उसे यह रोग लग जाता है जबकि उसके दिमाग में ना तो दुर्घटना का कोई विचार होता है और ना ही उसके कारण उत्पन्न रोग विचार होता है।

उत्तर: जब किसी व्यक्ति की दुर्घटना होती है और उसको चोट लगती है तो यह बात दिमाग में आती है कि हमारा दिमाग इसके लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता है। यहां हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे सभी विचार और भावनाएं हमारे अवचेतन मन में एकत्रित होती रहती है। अवचेतन मन का कोई नकारात्मक विचार दुर्घटना का जिम्मेदार हो सकता है। फलस्वरूप दुर्घटना हो सकती है, चोट लग सकती है।

 

दैवीय चिकित्सक का सन्देश

“जब कभी भी गंदगी होती है और वातावरण गंदा होता है वहां पर खराब जीवाणु भी होते हैं । जहां वातावरण साफ होता है वहां के जीवाणु भी अच्छे होते हैं। जब हम गंदी जगह का स्पर्श करते हैं यह पूरी संभावना रहती है कि खराब जीवाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाएं और हमें बीमार कर दे। इसी प्रकार गंदा और अपवित्र शरीर भी हमें प्रदूषित कर सकता है। एक शरीर और दूसरा इसमें चुंबकों की तरह कार्य करते हैं। इसलिए जो लोग साधना के पथ के राहगीर होते हैं वे अपवित्र और गंदे वातावरण से दूर रहते हैं। इसी संदर्भ में हमारे पुरखों ने हमें सदैव पवित्र और बड़े लोगों के पैरों को छूने का संदेश दिया है। क्योंकि उनके पैरों का स्पर्श करने से उनके शरीर की पवित्रता हमारे अंदर प्रवेश कर जाती है। इसी प्रकार यदि तुम अपवित्र लोगों के संपर्क में रहते हो तो उसकी अपवित्रता तुम में प्रवेश कर जाती है।”

... Sathya Sai Baba, Good Health is Man’s Greatest Wealth,  Summer Showers June 1978 http://www.sssbpt.info/summershowers/ss1978/ss1978-28.pdf

 

“समाज को सेवा प्रदान करने के लिए हर संभव अवसर का लाभ उठाएं। सेवा की आवश्यकता व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है। राष्ट्रीय सेवा करना महत्वपूर्ण है। आपको यह जानने की जरूरत नहीं है कि किस प्रकार की सेवा की जानी चाहिए जब भी आपको लगे कि किसी को भी मदद की जरूरत है, तो उसे  सेवा प्रदान  करें । अमीर या गरीब या योग्य और अवांछनीय के बीच अंतर न करें। स्थिति की जरूरतों के अनुसार सेवा प्रदान करें।"

... Sathya Sai Baba, “The Spirit Of Service” Discourse 21 November 1988 http://www.sssbpt.info/ssspeaks/volume21/sss21-31.pdf

उद्घोषणायें

आगामी कार्यशालाएँ * 

  • भारत दिल्ली-एनसीआर: वर्चुअल रिफ्रेशर सेमिनार 8-12 मई 2020, प्रति दिन 2 घंटे डॉ. संगीता श्रीवास्तव से [email protected] पर संपर्क करें या 9811-298-552 पर टेलीफोन करेंI 
  • भारत पुट्टपर्थी: एवीपी कार्यशाला 8-14 जुलाई 2020 तक ललिता से [email protected] पर संपर्क करें या 8500-676-092 पर टेलीफोन करेंI             
  • भारत पुट्टपर्थी: एसवीपी रिफ्रेशर सेमिनार 16-17 जुलाई 2020 को हेम से [email protected] पर संपर्क करेंI 
  • यूके लंदन: यूके राष्ट्रीय वार्षिक रिफ्रेशर सेमिनार 20 सितंबर 2020 को [email protected] पर जेराम पटेल से संपर्क करेंI
  • यूएसए रिचमंड वीए: एवीपी वर्कशॉप 9-11 अक्टूबर 2020 [email protected] Susan से संपर्क करेंI 
  • भारत पुट्टपर्थी: एवीपी वर्कशॉप 25 नवंबर -1 दिसंबर 2020 ललिता से [email protected] पर संपर्क करें या 8500-676-092 पर टेलीफोन करेंI
  • भारत पुट्टपर्थी: एसवीपी वर्कशॉप 3-7 दिसंबर 2020 में हेम से [email protected] पर संपर्क करेंI 

* एवीपी और एसवीपी कार्यशालाएं केवल उन व्यक्तियों के लिए है जिन्होंने प्रवेश प्रक्रिया और ई कोर्स में भाग लिया है। रिफ्रेशर सेमिनार सिर्फ वर्तमान चिकित्सकों के लिए ही है।

 

अतिरिक्त

1. स्वास्थ्य सुझाव

अपने दिन को स्वस्थ तरीके से मनाएं!

"हम जो भोजन करते हैं वह स्वादिष्ट, पुष्टिवर्धक और  रुचिकर होना चाहिए। यह अत्यधिक गरम या अत्यधिक नमकीन नहीं होना चाहिए। इसमें एक संतुलन बनाए रखना चाहिए। यह ना तो उत्तेजित करने वाला और ना ही निराश करने वाला होना चाहिए। राजसिक भोजन भावनाओं का जागृत करने वाला होता है जबकि तामसिक भोजन सुस्ती और नींद फैलाने वाला होता है। सात्विक भोजन संतुष्टि प्रदान करने वाला होता है लेकिन वह जुनून को बढ़ाने वाला या भावनाओं को जागृत करने वाला नहीं होता है।”…Sri Sathya Sai Baba1

मसाला क्या है?

मसाला पौधे का सूखा भाग होता है, पत्तियों के अलावा जिसे हर्बस कहते हैं लेकिन उसका वर्णन यहां नहीं किया गया है। यह बीज, फल, फली के रूप में (सरसों, जीरा, मेथी, अजवाइन, निगैला, जायफल, सोफं, मोटी  इलायची) छाल (दालचीनी, जावित्री) सूखा फल( लॉन्ग) फूल (केसर) फल (काली मिर्च) जड़ या कंद( अदरक, हल्दी) राल (हींग) या बल्ब (लहसुन)होता हैI2,3 

उपयोग,लाभ और मसालों का भंडारण

उपयोग : मसालों का उपयोग पुराने जमाने से भोजन को और अधिक स्वादिष्ट, खुशबूदार और सजावट के लिए किया जाता रहा है, क्योंकि यह सुगंधित होते हैं भोजन में सुगंध पैदा करने वाले होते हैं, कभी कभी इनके कारण भोजन में रंग भी आ जाता है। ये ताजा, साबुत या पिसे हुए, तले या भुने रूप में प्रयोग किए जाते हैं। इनको पक जाने से थोड़ा पहले या फिर परोसते समय मिलाया जाता है जिससे कि इनकी सुगंध कायम रह सके। इनको पकाते समय भी मिलाया जा सकता है। ऐसे करने से ये अच्छी तरह से भोजन में अवशोषित हो जाते हैं। ये भोजन के रक्षक के रूप में भी कार्य करते हैं। इनकी उपस्थिति से रोगजनक कीटाणु भोजन में पनप नहीं पाते हैं।4,5
लाभ: लगभग सभी मसाले एंटी-ऑक्सीडेंट से युक्त होते हैं, इनमें खनिज जैसे कि आयरन, मैगजीन, कॉपर, सिलेनियम तथा विटामिन्स, अमीनो एसिड्स और कुछ ओमेगा-3 फैटी अम्ल साथ ही कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फाइबर होते हैं। इनको रोगों को ठीक करने का प्रबल दावेदार के रूप में जाना जाता है क्योंकि ये फंगस रोधी, रोगाणु रोधक, सड़न रोकने वाली, सूजन रोधी, विषाणु रोधी, दर्द निवारक रूप में भी कार्य करते हैं। इस प्रकार ये पुराने और परंपरागत रूप से दवाइयों के रूप में भी उपयोग में लाए जाते हैं। यद्यपि इस संबंध में अनुसंधानों की कमी के होते हुए इनके औषधीय गुणों को ख्याति प्राप्त नहीं हो सकी है। कुछ अध्ययनों और अनुभवों के आधार पर यह कहा जाता है कि कुछ मसाले शरीर का पोषण करते है, रोगों को रोक सकते और उपचार कर सकते हैं, यहां तक जीवन के लिए खतरा बनी बीमारियां जैसे कि कैंसर, मधुमेह, हृदयाघात और कुछ कोरोनरी हृदय से संबंधित बीमारियों की भी रोकथाम कर सकते है।2,4,5,8

भंडारण: समय के साथ मसाले अपनी सुगंध और स्वाद  खो देते हैं, अतः उन्हें ठीक से कसकर बंद करके डिब्बे में रखना चाहिए, धूप व नमी से बचाकर जिससे कि दाने 2 वर्ष तक और पाउडर 1 वर्ष तक खराब ना हो सके।2,4

सावधानियां: छोटी मात्रा में ही मसाले लाभदायक होते हैं, सामान्यता एक चम्मच (2 से 2.5 ग्राम) प्रतिदिन, परंतु कभी-कभी एक चुटकी भर या दो चुटकी भर ही पर्याप्त होता है। जो लोग उपचार पर चल रहे हो या गर्भवती महिलाएं तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए कि उन्हें मसालों का सेवन करना चाहिए अथवा नहीं यदि करना है तो कितना।2,8 

विशिष्ट मसाले:

लगभग 100 प्रकार के विशिष्ट मसाले उपलब्ध है।5 परंतु हम केवल उन 20 मसालों का जिक्र कर रहे हैं जिनका हम सामान्य रूप से रसोई घर में उपयोग करते हैं।.

1. सरसों के बीज (सरसों, राई)

अन्य कोई गंध वाला मसाला डालने से पूर्व राई को थोड़े से तेल या घी में भूना जाता है। पिसा हुआ मसाला सलाद के ऊपर छिड़का जा सकता है तथा आचार के मसालों में मिलाया जाता है। इसके पेस्ट में, जिसे पूरी रात भिगो कर रखा जाता है, कई प्रकार के खनिज, ओमेगा-3 फैटी अमल भी होता है।

यह आंतों में से कीड़ों को निष्कासित करने के काम आता है, खांसी में उपयोगी है, रक्त के प्रवाह को समुचित बनाता है जिससे हड्डी व मांसपेशियों के दर्द में लाभ होता है, यह सोरायसिस और त्वचा के प्रदाह में भी लाभकारी है। 

बाह्य उपयोग: गले की खराबी के लिए रोगी सरसों के दानों की चाय से कुल्ला करें, पैरों को भिगोने वाले पानी में सरसों का चूर्ण मिला देने से छाती में जमा कफ बाहर निकल जाता है। सरसों की पुल्टिस को शरीर पर बांधने से खांसी में आराम मिलता है। बर्तनों को साफ करने के लिए थोड़ी सरसों के दाने पानी और विनेगर के साथ मिलाकर बर्तनों पर रगड़ कर रात भर के लिए उन्हें छोड़ दो, सुबह उनको धोलें। 

चेतावनी: 2 ग्राम तक यह सुरक्षित रूप से लिया जा सकता है। जिन लोगों को थायराइड,गाल-ब्लैडर की समस्याएं हो तो उन्हें डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करना चाहिए।6,7

 

2. जीरे के बीज (जीरा)

कुछ परिवारों में खाना तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक की उनके भोजन में मिट्टी के समान परंतु तीखी और चटपटा स्वाद वाले जीरे का तड़का ना लगा हो। इसका तड़का, सूप, सब्जियों, चावल या अन्य भोजनों में लगाया जाता है । भुना हुआ जीरे का पाउडर दही के स्वाद को बढ़ा देता है, छाछ का स्वाद भी इसी से बढ़ता है।

यह आयरन, कैल्शियम तथा विटामिन ए व सी का अच्छा स्रोत है। यह एनीमिया में लाभदायक है, रक्तचाप को नियंत्रित करता है, भोजन से उत्पन्न वायरल संक्रमण, अनिद्रा व कमजोर हड्डियों में लाभप्रद है। लिवर को डीटॉक्सिफाई करता है, भूख को बढ़ाता है, रक्त शर्करा को कम करता है, इम्यूनिटी को बढ़ाता है और शक्ति प्रदान करने वाला होता है।
एक अध्ययन में यह सामने आया है कि यदि मोटी महिलाएं अधिक मात्रा में जीरे को दही के साथ दो बार खाएं, 3 माह तक, तो उनके वजन में काफी कमी हो जाती हैI शरीर में HDL/LDL कोलेस्ट्रोल स्तर के अनुपात को स्थिर बनाए रखता है और 8 हफ्ते में, इंसुलिन के स्तर में भी कमी आ जाती है। 4,8,9,10

एक कप जीरे की चाय प्रभावी रूप से दर्द निवारक का कार्य करती है, विशेषकर पेट दर्द में, छाती में से कफ निकालने में और गर्भावस्था में दूध की मात्रा बढ़ाने का कार्य करती है।11

चेतावनी: एक चुटकी (0.1 gm) प्रतिदिन की मात्रा पर्याप्त होती है और यह (0.6 gm.) ¼ चम्मच तक का सेवन करने के लिए सुरक्षित माना जाता है। अत्यधिक खाने से समस्याएं जैसे कि सीने में जलन, भोजन का ऊपर चढ़ना। शल्यक्रिया करवानी हो तो 2 सप्ताह पूर्व इसका उपयोग बंद कर देना चाहिए। रक्त स्त्राव अनियमितता में यह थक्का बनने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है और रक्त में शर्करा की मात्रा को कम कर देता है।8-10

3. हींग (हींग)

एक कठोर रेजिन गोंद, एक तीव्र गंध वाला पदार्थ। यह एक सुखा हुआ रस है जो बारहमासी सौंफ पौधे की जड़ से प्राप्त किया जाता है। यह रूप से डेलों, छोटे टुकड़ों या पाउडर के रूप में बाजार में उपलब्ध रहता है। यह बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में उपयोग किया जाता है। केवल एक या दो चुटकी ही पर्याप्त होती है। पकने के बाद भोजन में यह विशेष गंध पैदा कर देता है तथा भोजन को सुपाच्य बना देता है।   

यह रोमन साम्राज्य के समय से ही आ रहा है और ऐंठन तथा पेट की समस्याओं को दूर करने के काम में आता है। यह आंतो के रोग के इलाज में मदद करता है, खांसी के कारण श्वास लेने में कठिनाई की समस्याओं में उपयोग लाभप्रद होता है। इसका उपयोग ब्रोंकाइटिस, स्वाइन फ्लू, अस्थमा, मासिक धर्म की अनियमितता, ब्लड शुगर, रक्तचाप, और हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखता है। कुछ पारंपरिक प्रणालियों में, आक्षेप और मानसिक विकारों के इलाज के लिए गुड़ के साथ प्रयोग किया जाता है, और कटिस्नायुशूल के लिए घी के साथ।

चेतावनी: पारंपरिक खुराक लाभप्रद होती हैं (0.2 से 0.5 g)I गर्भवती स्त्रियों को उपयोग में नहीं लेना चाहिए, बच्चे जिन्हें अल्सर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, ब्लीडिंग डिसऑर्डर, मिर्गी या रक्तचाप की समस्या हो उन्हें उपयोग में नहीं लेना चाहिए। शल्यक्रिया के 2 सप्ताह पूर्व ही ली जानी चाहियेI12-14

4. गर्म मिर्चे (गर्म मिर्च)/पैपरिका/कायेन पेप्पर

गर्म मिर्चे/ मिर्च पेप्पर भारतवर्ष में लाल मिर्च विभिन्न प्रकार की पाई जाती हैI यह साबुत   या पाउडर रूप में उपलब्ध रहती है। जिसका उपयोग चावल, सब्जियों, आचार, चटनी( सब्जी, हर्बस, लेंटिल्स का पेस्ट) आदि में किया जाता है। यह एक अच्छा पाचक है I इसमें विटामिन A, C  व E भरपूर मात्रा में होते हैं। यह इम्यूनिटी को बढ़ाती है, आंखों को स्वस्थ बनाती है, माइग्रेन में लाभकारी है, इसके अतिरिक्त यह साइनोसाइटिस, सर्दी  व फ्लू में भी लाभकारी है। इसमें उपस्थित रसायन कैप्सेसिन( मिर्ची में गर्मी का स्त्रोत) चिल्ली पैपर जीवन रक्षक दवाई के रूप में काम में ली जा सकती है, इसको मल्हम में दर्द, मोच व सुन्नपन निवारक के रूप में काम में लिया जाता है।

पपरिका: इसका स्वाद मीठे से उग्र तक हो सकता है। यह एक ऐसा अनोखा मसाला है जो कई प्रकार की मिर्चों के मेल से बनाया जा सकता है; मीठे पेपरिका को मुख्य रूप से ग्राउंड रेड बेल पेपर्स से बनाया जाता है, जिसमें कैपसैसिन रासायनिक यौगिकों की कमी होती है, लेकिन उसमें  विटामिन A प्रचुर  मात्रा में होता हैI ऑटोइम्यून सिंड्रोम व गैस्ट्रिक कैंसर की रोगों में भी लाभप्रद होती है ।

कायेन पेप्पर: भोजन के किसी भी प्रारूप में इसको थोड़ी सी मात्रा में मिला देने से भोजन में अत्यधिक तीखापन आ जाता है। यह सुखी या पिसी रूप में मिलती हैI यह साधारण लाल मिर्च या शिमला मिर्च की अपेक्षा अधिक तीखी  होती है, पाचक के रूप में, दांत दर्द में, समुद्री यात्रा, अल्कोहल की अधिकता, मलेरिया और ज्वर जैसे रोगों में शरीर के चयापचय क्रिया में मदद करने वाली तथा निगलने में कठिनाई से मुक्ति दिलाने वाली है। ऐसा भी देखा गया है कि जिन मलहमों में इसको मिलाया जाता है वो मल्हम सोरायसिस रोग में उपयोग में लाए जाते हैं।

चेतावनी: 1-2 बूंद किसी भी तेल को हथेली या उंगलियों पर लगाएं इस मिर्ची को लेने से पूर्व। बाद में कुछ मात्रा में नींबू लगाएं तथा हाथ को अच्छी तरह से धोएं । इसके बाद ही हाथ को आंखों या चेहरे पर लगाएं। इसकी खुराक की मात्रा व्यक्तिगत सहनशक्ति पर निर्भर करती है। जिन लोगों को अल्सर या अम्लता की बीमारी है उन्हें इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।15-18

5. काली मिर्च/काली मिर्च के दाने(काली मिर्च)

मिर्च के पौधे पर जब यह अधपकी अवस्था में होती है तभी इसको तोड़़ लिया जाता है और फिर उसको खाया जाता है। सुखाने से यह सिकुड़ जाती है और काली पड़ जाती है तथा इसको काली मिर्च के नाम से जाना जाता है। इसको पीसा जाता है तो इसे मसालों का राजा कहा जाता है। इसकी बस एक चुटकी ही किसी भी भोजन को स्वादिष्ट बना देती हैI कफ- कोल्ड टॉनिक का यह एक आवश्यक घटक हैI पेट के अल्सर को ठीक करने, सफेद दाग और ट्यूमर को बढ़ने से रोकने में मदद करती है। . इसका मुख्य घटक पिपरीन दिमाग की क्षमताओं को बढ़ाता है, अवसाद को दूर करता है और भोजन के पाचन क्रिया में काली मिर्च सहायता करती है। गैस की समस्या को दूर करती है। जब इसका फल पूरी तरह से पक जाता है और इसका बाहरी खोल गिर जाता है तो इसे सफेद मिर्च के नाम से जाना जाता है। सफेद मिर्च का स्वाद प्राकृतिक व जटिल होता है।
चेतावनी: इसके अधिक सेवन से पेट में व गले में जलन पैदा होती है। 19-22

 

 

 

 

6. धनिया/सिलान्त्रो के बीज(धनिया) 

ये गर्म, मीठे और मेवों के सामान बीज होते हैं, इनकी विशेष प्रकार की खुशबू होती है। डेढ़ चम्मच इन बीजों को 2 कप गर्म पानी में रात भर भिगोकर रखें तथा सुबह उस पानी को चाय के समान पीले।अध्ययनों से पता चला है कि यह रक्तचाप को और रक्त शर्करा को कम करता है, पाचन तंत्र को और IBS की समस्या का समाधान करता है, मुंह के अल्सर को ठीक करता है तथा UTI समेत संक्रमण से बचाव करता है।
इसमे प्राकृतिक यौगिक, डोडेकैनाल, होता है जो कि एन्टी-बायोटिक से भी अधिक शक्तिशाली होता है और भोजन विष से रक्षा करता है। ये बीज मासिक धर्म संबंधी परेशानियों से मुक्त करने की शक्ति रखता है और स्नायु सम्बन्धी समस्याओं की भी रोकथाम करता है।23,24
 


7. मेथी के बीज (मेथी)

इसका उपयोग सब्जियों में किया जाता है, इसकी गंध तीखी होती है और स्वाद कड़वा होता है जो पक जाने पर स्वादिष्ट हो जाता है । इसको भूनकर, पीसकर कॉफी भी बनाई जा सकती है। इसमें पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं, सूजन को कम करती है।( इसको पुल्टिस के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं) मुंह के अल्सर ठीक होते हैं, फोड़े, खांसी तथा जीर्ण कफ को ठीक करती है। पाचन क्रिया को मजबूत करती है तथा कब्ज को दूर करती है। परंपरा के तौर पर बच्चे को जन्म कराने में उपयोगी है, दूध पिलाने वाली माताओं में दुग्ध उत्पादन अधिक होने लगता है और मासिक धर्म बंद होने के समय भी लाभप्रद है। पुरुषों में प्रजनन शक्ति को बढ़ाने वाली होती है। खिलाड़ियों में शक्तिवर्धक के रूप में कार्य करती है तथा चोट लग जाने पर उसे ठीक करने में अत्यंत लाभकारी है ।
सावधानियां: गर्भवती महिलाएं व रक्त संबंधी विकार वाली महिलाएं जो औषधियां ले रही हो उन्हें बिना डॉक्टर की अनुमति के सेवन नहीं करना चाहिए। 25-27

8.अज्वैन/कैरावे के बीज(अज्वैन)

ये तीखी गंध और कड़वे स्वाद वाले बीज होते हैं । इसको दालों को पकाते समय मिलाया जाता है। कुछ फलियों और जड़ में पैदा होने वाली सब्जियों में इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि अरबी और आलू के कारण होने वाली उदर वायु को कम करने के लिए, सब्जियों, आचार और भारतीय ब्रेड। ऐसे ही भुनी हुई अथवा घी में भुनी हुई बड़ी स्वादिष्ट और सुगंध युक्त हो जाती है ।
भूख बढ़ाने के लिए जानी-मानी औषधि है और उदर के फूलने पर इससे उपचार किया जाता है। भोजन उपरांत इसके कुछ पत्तों को चबाकर खाने से पाचन में लाभ मिलता है। भुने हुए बीजों से चाय बना कर उसमें थोड़ा सा शहद यदि आवश्यकता हो तो मिलाकर पीने से शरीर की चयापचय क्रिया अच्छी हो जाती है, चर्बी को कम करती है, खांसी से आराम मिलता है, श्वसन क्रिया को बढ़ाने वाली है, सूजन को कम करती है।
चेतावनी: गर्भवती महिलाओं के लिए वर्जित।

 

9. निगेल्ला/कला जीरा (कलोंजी)

 यह काले बीज सूखे या भुने हुए रूप में अपनी सुगंध और स्वाद के लिए सब्जियों, शोरबे में और लेन्टिस में मिलाए जाते हैं। कुछ अचारों में भी मिलाए जाते हैं। शोधों के अनुसार इसकी आश्चर्यजनक और औषधीय प्रकृति की जानकारी प्राप्त हुई है। अतः इसका पारंपरिक और वर्तमान समय में इसका उपयोग उच्च रक्तचाप रोधी, दस्त रोधी, लिवर टॉनिक, भूख बढ़ाने वाला, दर्द निवारक, जीवाणु रोधी, डाईयूरेटिक, त्वचा विकार जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए किया जाता है। मुट्ठी भर बीजों को सरसों के तेल में गर्म करके सूजे हुए जोड़ों पर लगाने से बहुत आराम मिलता है।
चेतावनी: 1 ग्राम( आधा चम्मच) बीज पर्याप्त होते हैं भोजन पकाने में। 0.3 से 0.5 ग्राम का औषधि के रूप में प्रयोग पर्याप्त होता है।30,31,32

 

10. हल्दी 

 यह पीला मसाला ताजा या सूखा भी उपलब्ध रहता है, साबुत या पाउडर के रूप में। इसमें एक विशिष्ट गंध होती है। थोड़ी सी मिर्ची और खट्टी गंध और अदरक जैसा स्वाद अन्य मसालों के साथ भली-भांति मिल जाता है। यह एक उपहार में मिला मसाला है क्योंकि इसका एक महत्वपूर्ण घटक है करक्यूमिन । यह एक प्राकृतिक पीले रंग का फिनॉल होता है । करक्यूमिन फैट मे घुलनशील होता है। इसलिए हल्दी का उपयोग अच्छे किस्म के तेल के साथ करना चाहिए जैसे कि नारियल तेल, ऑलिव ऑयल या घी और काली मिर्च जो इसकी कार्य शक्ति को 20 गुना तक बढ़ा देती है, शरीर के द्वारा इसके अवशोषण को। अलग से हल्दी का उपयोग करने पर करक्यूमिन का अवशोषण होने के पूर्व ही चयापचय हो जाता है।

इसकी प्रबल एंटी-ऑक्सीडेंट क्षमता के कारण यह मधुमेह से मुकाबला कर सकती है, कैंसर को नष्ट कर सकती है, उसकी बढ़ोतरी को रोक सकती है विशेषकर स्तनो में, पेट में, आंतों में, पेनक्रियाज में और त्वचा में। इसके अलावा यह हृदय के रोगों में भी लाभकारी है। यह पाचन क्रिया को ठीक करती है, अवसाद को कम करती है, खून का थक्का बनने से रोकती है। सूजन को कम करती है तथा गठिया के दर्द को कम करती है। अल्जाइमर रोगों में मदद करती है, घावों को जल्दी भर देती है और दाद के रोग में भी लाभप्रद होती है। सोरायसिस और एक्ने में भी लाभ पहुंचाने वाली है। एक अध्ययन में पाया गया कि दवा-प्रतिरोधी ट्यूमर सिकुड़ने पर एक कीमोथेरेपी दवा अधिक प्रभावी थी, जब कर्क्यूमिन के साथ संयोजन में उपयोग किया जाता था।

चेतावनी: अधिक मात्रा के सेवन से दस्त और जी मिचलाने की समस्या हो जाती है ।33-38

11. अदरक

 इसका स्वाद थोड़ा चटपटा और मीठा होता है। तीखी गंध और मसालेदार महक होती है। यह बहुत सी सब्जियों, सलाद, सूप और सॉस के साथ मिलाया जाता है। इसके अधिकतर पोषक तत्वों को प्राप्त करने के लिए डिश बनाते समय पहले और बाद में दोनों वक्त इसको मिलाना चाहिए। अदरक की चाय, मिठाईयां बहुत से लोगों की पहली पसंद है। यह सूजन नाशक मसालों में से एक हैI यह पेट को दुरुस्त करती है और जी मिचलाने पर ठीक करती है, गर्भवती महिला की उल्टी और सुबह के वक्त की बीमारी को ठीक करती है, मोशन सिकनेस में लाभदायक है और विशेषकर संधिवात गठिया के दर्द में लाभ पहुंचाती हैI गर्म अदरक का पानी एक बेहतरीन औषधि है, जब हम इसका नियमित सेवन करते हैं तो हम सर्दी, फ्लू, या खांसी से  अपना बचाव कर सकते हैं। शोध से पता चला है कि कच्ची या पक्की अदरक व्यायाम के फलस्वरुप हुई चोट को ठीक करती है। यह आंतों के कैंसर में भी लाभप्रद है।

औषधीय अदरक की चाय: 2-इंच लंबे अदरक के टुकड़े को घिसे (बिना छीले) उसमें 2 कप पानी डालकर 10-20 मिनट तक उबालें। छाने और उसमें एक चुटकी दूसरा मसाला  जैसे कि हल्दी, काली मिर्च, दालचीनी मिलाएं तदुपरांत एक चम्मच कच्चा शहद और आधा नींबू का रस मिलाएं। स्वादिष्ट अदरक की चाय तैयार हैI

चेतावनी: एक-दो चम्मच  घिसा  हुआ अदरक पर्याप्त और सुरक्षित होता है। यदि सीने में जलन हो या दस्त हो जाए या पेट में दर्द हो जाए तो मात्रा में कमी कर दें।39-41

12. लहसुन

यह एक बल्ब के सामान सब्जी है। इसे मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें गंधक और पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं, इसकी गंध भी बहुत तेज होती है। कच्चा खाने पर जलन पैदा कर देता है, यह किसी भी प्रकार से तैयार की गई डिश में मिल जाता है, कच्चा, भुना हुआ, बेक किया हुआ या पकाया हुआ।।
 ताजा लहसुन में अमीनो अम्ल एलीन उपस्थित होता है। जब लहसुन की एक कली को काटा जाता है तो एक एंजाइम एलीनेज़  निकलता है ।एलीन और एलीनेज़ आपस में क्रिया करके एलोसिन नामक यौगिक बनाते हैं। यही लहसुन जैविक रूप से मुख्य पदार्थ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि लहसुन को काटकर 10 मिनट के लिए छोड़ देने से यह अपना कार्य शुरू कर देता है, क्योंकि एलिसिन को सक्रिय होने के लिए कुछ मिनटों की आवश्यकता होती है। कच्चा लहसुन सबसे अधिक प्रभावशाली होता है। इसको 140 डिग्री फॉरेनहाइट से नीचे पकाना चाहिए। इससे ऊंचे ताप पर एलोसिन नष्ट हो जाता है। सबसे अच्छा तरीका है कि जब सब्जी लगभग तैयार हो जाए तब इसको मिलाओ।

पुराने और मध्यकालीन युगों में अपनी औषधीय गुणों के कारण मशहूर हुआ था। कब्र खोदने वाले कुचले हुए लहसुन को प्लेग से बचाने के लिए इस्तेमाल करते थे। दो विश्व युद्धों के दौरान इसको एंटीसेप्टिक के रूप में लिया जाता था। सिपाहियों में गैंग्रीन को रोकने के लिए भी इसका उपयोग होता था। हल्दी के बाद इसे ही सबसे अच्छा मसाला माना गया है। काफी खोजबीन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि इस के उपयोग से रोगों जैसे कि हृदय रोग, हृदयाघात, कैंसर, मधुमेह, संक्रमण, रक्तचाप, जुकाम, बालों का गिरना, अल्जाइमर डिजीज़, फंगस और एथलीट फुट में लाभ मिलता है। नोट: लहसुन के सप्लीमेंट से कोई लाभ नहीं होता है।

चेतावनी: इसका उपयोग  कम मात्रा में ही करना चाहिए। जिन व्यक्तियों को जुकाम जल्दी हो जाता है या जीर्ण प्रकार का संक्रमण हो जाता है, उनके लिए एक कली प्रतिदिन के हिसाब से काफी होती है। जिनको निम्न रक्तचाप, अल्सर तथा आंतरिक समस्याएं या ब्लड थिन्नर से पीड़ित हो तो डॉक्टर की सलाह से ही इसका उपयोग करें। आत्मिक दृष्टिकोण से नकारात्मक भोज्य पदार्थ के रूप में जाना जाता है। औषधीय दृष्टि से यह एक दवा के रूप में कार्य करता है। यह नर्वस सिस्टम को तेज करता है, अतः आध्यात्मिक विचार वाले पुरुष सेवन नहीं करते हैं।42-46

प्याज भी लहसुन के सामान उसी परिवार की सदस्य हैं यह भी मसालों के रूप में उपयोग में ली जाती है( इसका विस्तृत विवरण दो भागों में वॉल्यूम 5#1&2 में दिया गया है)।

13. सौंफ/सौंफ के बीज

 सौंफ और सौंफ के बीज यह बीज़ एक ही परिवार के दो विभिन्न पौधों से प्राप्त होते हैं। इनकी गंध और स्वाद समान होते हैं। यह एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जा सकते हैं। लेकिन मोटी सौंफ का उपयोग कम मात्रा में किया जाता है। बीज़ साबुत या पाउडर के रूप में सलाद, पास्ता, सब्जियां तथा कुकीज़ के आटे में उपयोग किए जाते हैं। इनसे गरम चॉकलेट या कॉफी या चाय भी बनाई जाती है।

भोजन के पश्चात इसको चबाया जाता है। इससे मुख शुद्धि भी होती है और पाचन क्रिया भी सुचारु हो जाती है। यह जीवाणु और फंगल संक्रमण के विरुद्ध कार्य करती है। पेट के अल्सर, रजोनिवृत्ति की क्रियाओं में सहयोग करती है, अवसाद में भी लाभप्रद है। अध्धयन के अनुसार, 5 ग्राम प्रतिदिन खाने से औषधि के रूप में कार्य करती है, जो पोस्टमेनोपॉज़ल लक्षणों में सुधार करती है। मसाले के रूप में आधा से एक चम्मच काफी होती है। इसका एक अन्य रूप भी है जिसे स्टार एनीज़ का नाम दिया गया है। यह एक अन्य परिवार की है,परन्तु इससे भिन्न है और इसकी गंध और स्वाद सामान ही होते हैं। लेकिन दोनों में समान स्वास्थ्य लाभ के साथ शराब जैसा स्वाद हैI47,48

14. इलाइची-हरी (इलाइची), काली (बड़ी इलाइची)

हरी इलायची : एक विशिष्ट गंध होती है। जिसमें नींबू और पुदीना की खुशबू का अहसास होता है। अखरोट के समान गंध और खट्टा, मीठा और चटपटा स्वाद होता है। इसकी खेती मनुष्यों की मेहनत से ही होती है अतः मजदूरी का खर्चा बहुत अधिक होता है। अच्छे परिणाम के लिए जिस समय आवश्यकता हो इसका छिलका हटाकर दोनों को पीसकर उपयोग में लिया जाना चाहिए। भारत में इसका उपयोग चाय में होता है। इसके अलावा इसका उपयोग मीठे पकवानों में, केक पैनकेक, कुकीज और पिज्जा में किया जाता है। यह एक प्राकृतिक ताजगी प्रदान करने वाला होता है। चिंगम का यह एक आवश्यक घटक है। भोजन करने के बाद इसको खाया जाता है, इससे मुख की शुद्धि होती है, भोजन का पाचन अच्छी तरह से होता है, मुंह की दुर्गंध को दूर करता है। अस्थमा, खांसी और रक्तचाप में लाभप्रद होता है।  

काली इलायची: इसकी विशेष गंध होती है, धुयें के समान गंध और स्वाद वाली होती है। मिठाइयों में इसका बहुत कम उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग राजमा, काबुली चना, सब्जियों, स्पेशल चावल की रेसिपी को बनाने में किया जाता है।

यह पेट की बहुत सी समस्याओं से निजात दिलाने वाली है । सामान्य संक्रमण तथा दंत रोग में लाभकारी है। मुंह से दुर्गंध को दूर करती है। चीन में यह मलेरिया की औषधि थी।

चेतावनी: एक या दो से अधिक हरी इलायची का ताज़ा स्वांस और पाचन के लिये प्रतिदिन सेवन तो ठीक रहता है, खाना पकाने में एक काली इलायची का सेवन करना चाहिए। अगर पित्ताशय की पथरी है तो इसका उपयोग करने से बचें क्योंकि इससे पेट दर्द हो सकता हैI49-51

15. लौंग

यह एक सूखी हुई फूल की कली है, अत्यधिक खुशबू वाली और तीखे स्वाद की होती है। इसका उपयोग बहुत सी मिठाइयों के स्वाद को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है। यह एक शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट और बहुत ही जीवन रोधी बीमारियों से बचाव करने में सक्षम है। वे रोग हैं, कैंसर। यूजिनॉल का यह प्राकृतिक स्रोत है, यह एक फेनोलिक अम्ल है, सूजन रोधी है, रोगाणु रोधी है, उत्परिवर्ती है, इसके साथ ही यह सड़न रोकने वाली औषधि, दर्द निवारक औषधि के रूप में भी कार्य करती है। मुंह की तकलीफों के लिए यह प्रभावी औषधि है। दंत चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता है तथा सिर दर्द को भी ठीक करती है। छोटे-मोटे कट में इसका चूर्ण काम आता है। गरम पेयों में खासी के लिए लाभकारी होती है।
चेतावनी: 1 दिन में 15 लॉन्ग सुरक्षित रूप से ली जा सकती हैं। यदि त्वचा में कोई शिकायत उभरती हो या ब्लीडिंग डिसऑर्डर हो तो इसका उपयोग करने से बचें।52-55

16. दालचीनी

यह वृक्ष की भूरी छाल से प्राप्त होती है। इसमें मीठी लकड़ी जैसी गंध होती है जो अत्यंत सुखदायक होती है। शोधों के अनुसार इसे मसालों में नंबर 1 मसाला माना गया है। यह शरीर के अन्य मसालों के अवशोषण में मदद करता है। यह मिठाइयों में, पेय पदार्थों में, और फलों में मिश्रित किया जाता है। यह एक प्राकृतिक खाद्य परिरक्षक है और कटे हुए फलों और सब्जियों में मिलाने से उनका रंग नहीं बदलता।

यह एक अच्छा एंटी-ऑक्सीडेंट है। इसमें फाइबर और खनिज मैन्गनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है। यह सूजन, संक्रमण विशेषकर वायरस और एलर्जी को दूर करता है। महावारी के दर्द को कम करने वाला, अधिक रक्तस्राव को रोकने और रक्त शर्करा को स्थिरता प्रदान करने वाला, भोजन के उपरांत जलन को रोकने वाला तथा श्वसन तंत्र की नलिका को स्वच्छ करता है, सर्दी के मौसम में अदरक और काली मिर्च के साथ लेने पर राहत प्रदान करने वाला होता है। केवल इसकी लकड़ी को सूंघने मात्र से दिमाग की कार्यशीलता बढ़ जाती है।
चेतावनी: प्रतिदिन 6 ग्राम तक लेना सुरक्षित होता है। इससे अधिक मात्रा में सेवन करने से एलर्जी, मुहं के छाले,लीवर की समस्या, रक्त शर्करा कम होने की समस्या और श्वसन संबंधी समस्याएं सामने आ सकती हैं।56-59

17. केसर

बैंगनी रंग के केसर के फूलों के योनिछग को अलग करके व सुखाकर केसर को प्राप्त किया जाता है। यह आकर्षक सुगंधित मसाला लाल रंग का होता है, इसमें तीखी गंध होती है और स्वाद में थोड़ा कड़वा होता है। इसकी खेती करना एक मुश्किल भरा काम है। इसमें अत्यधिक मजदूरी लगती है। लाख से भी अधिक फूलों से मात्र 1 पौंड केसर की प्राप्ति होती है। इसीलिए मसाला बहुत महंगा है और बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हो पाता है। यह मिठाइयों, पुडिंग में और चावल के व्यंजनों में और सब्जियों में मिलाया जाता है। यह एक बहुत ही आकर्षक खुशबू युक्त रंग करता है। यह पीला-नारंगी प्रदर्शित करता है।
पारंपरिक रूप से इसका उपयोग औषधि के रूप में जठरांत्र और ऊपरी श्वसन तंत्र की समस्या के लिए किया जाता है। घावों को भरने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता रहा है। यह तनाव, अवसाद, हार्मोन असंतुलन, रक्तचाप, मैकुलर डिजनरेशन और हृदय संबंधी रोगों में लाभदायक होता है। यह एलुमिनियम के द्वारा उत्पन्न टाक्सीसिटी को कम कर देता है। इसमें खनिज मैंगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है इसलिए यह हड्डियों व थायराइड में बहुत लाभदायक होता है।

चेतावनी: इसको केवल बहुत अधिक विश्वासपात्र व्यक्ति से ही खरीदना चाहिए। बहुत से शोधो द्वारा मालूम हुआ है कि इसकी 30 मिलीग्राम की मात्रा प्रतिदिन 6 सप्ताह तक लेने से कोई हानि नहीं होती है। अत्यधिक मात्रा टॉक्सिक होती हैI60-62

18. जायफल/गदा (जावित्री/जयफल)

यह दोनों फल एक ही वृक्ष नटमैग से प्राप्त होते हैं लेकिन इन के गुण अलग-अलग होते हैं। नटमैग पत्थर के समान गहरे रंग का होता है जिसके अंदर मेस होता है जो खोल के रूप में पत्थर में होता है, यह लाल रंग का होता है। यह अपने मीठे स्वाद और गर्म तासीर के लिए जाना जाता है। यह भुनी हुई सैवोरीज़ तथा मिठाइयों में मिलाया जाता है। मेस अधिक मीठा कोमल, अधिक स्वादिष्ट और सुगंधयुक्त होता है। दोनों के लाभ समान हैं। 

एक चम्मच शहद और एक चुटकी भर नटमैग/मेस के उपयोग से किडनी स्टोन से मुक्ति मिल जाती है। पानी और अदरक के साथ मिलाकर पीने से यह पेट के सभी समस्याओं से छुटकारा दिला देती है। दस्तों में भी अत्यंत गुणकारी है। पेट के अल्सर, दांतो की समस्याओं, नसों की समस्याओं, अनिद्रा, हृदय, दिमाग और त्वचा रोगों में अत्यंत लाभकारी है।
चेतावनी: इसका उपयोग 1 ग्राम से अधिक नहीं करना चाहिए। 5 ग्राम की मात्रा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर देती है।63-66

19. सारे मसाले

अपने नाम के विपरीत एक प्रकार के सूखे जामुन से प्राप्त किया जाता है। देखने में यह काली मिर्च के समान होता है। लेकिन इसका स्वाद काली मिर्च, लॉन्ग, दालचीनी और जायफल के मिश्रण के जैसा होता है। यह अदरक की ब्रेड में गंध के लिए मिलाया जाता है। इसको मिठाइयों और पेय पदार्थों में भी मिलाया जाता है। इसके मीठे स्वाद के कारण हम चीनी के उपयोग को कम कर सकते हैं। इससे बनाई गई चाय पेट के फूलने की समस्या से छुटकारा दिलाती है। इसके पाउडर से बनाए गए पुल्टिस से शरीर के दर्द को दूर किया जा सकता है।67

 

 

 

 

 

20. लोकप्रिय मसाला मिक्स

भारतीय द्वारा बनाए जाने वाले व्यंजनों का यह एक आवश्यक घटक है। यह निम्न मसालों को मिलाकर बनाया जाता है, जीरा, धनिया, सुखी लाल मिर्च, काली और सफेद मिर्च ,सौंफ,दालचीनी, लॉन्ग, काली और हरी इलायची, जावित्री और जायफल। इनको पीसने से पहले थोड़ा सा भूना जाता है जिससे कि यह सूख जाए और इसकी गंध निकलने लगे। इन सब मसालों को ध्यान पूर्वक मिलाना चाहिए जिससे कि इसका संतुलित प्रभाव हो।68

पंच फोरन 5 साबुत मसालों का मिश्रण है – काली सरसों, मेथी, सौंफ, जीरा और निगैलाI भारत के पूर्वी भाग में इस मिश्रण का आचार बनाने में बहुतायत से उपयोग होता है। सब्जियों को बनाने के पहले इस मिश्रण को पहले तेल या  घी में सेका जाता है।69

निष्कर्ष: इसमे कोई संदेह नहीं है कि यह मसाला हमारे भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए रंग, जीवन और उत्साह प्रदान करेगा, हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करेगा, और अगर समझ और देखभाल के साथ उपयोग किया जाता है तो हमें कई बीमारियों से बचा सकता है। जैसा कि श्री सत्य साईं बाबा ने सलाह दी है "मसाले, मिर्च और नमक की अधिकता से बचें।"70

References and Links:

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  67. Allspice: https://www.thespruceeats.com/what-is-allspice-p2-995556
  68. Garam masala: https://en.wikipedia.org/wiki/Garam_masala
  69. Panch Phoron: https://www.tarladalal.com/glossary-panch-phoron-1027i
  70. Food for a healthy body and mind: Sathya Sai Baba Speaks on Food, September 2014 edition, page 65, sourced from Sathya Sai Newsletter, USA, Vol28-3,(May-June 2004)

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2. AVP कार्यशाला, पुट्टपर्थी, भारत, 23-29 फरवरी 2020

इस कार्यशाला का आयोजन दो वरिष्ठ चिकित्सकों10375 & 11422 ने मिलकर किया। इस कार्यशाला में 11 उत्साही व्यक्तियों ने भाग लिया जिसमें भारत के अलावा विदेशी व्यक्तियों ने भी सहभागिता की थी। दक्षिण अफ्रीका गाबोन और इंडोनेशिया के प्रतिभागियों के अलावा चार विदेशी चिकित्सकों ने फ्रांस, गाबोन, कनाडा और आयरलैंड से आकर इस आयोजन को नई ऊंचाइयां प्रदान की। फ्रांस के  चिकित्सक ने अपने आपको फ्रांसीसी भाषा के अनुवादक के रूप में प्रस्तुत कियाI कार्यशाला को गति प्रदान की गई मौक और लाइव क्लीनिक के द्वारा। रोल प्ले और डेमो का प्रस्तुतीकरण वरिष्ठ चिकित्सकों11578 & 11964 द्वारा किया गया। इनके द्वारा अवधारणा को समझने, समझाने में बहुत सहूलियत हुई। केस हिस्ट्री लिखने के महत्व को हेम अग्रवाल ने बखूबी समझाया व इस बात पर बल दिया कि केस के पक्ष में दिए गए महत्वपूर्ण रिपोर्टों को भी संभाल कर रखे। डॉ जीत अग्रवाल ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि यहां उपस्थित व्यक्तियों को यह सोचना आवश्यक है कि वे यहां क्यों आए हैं। अपने स्वामी के साथ व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर उन्होंने बताया कि निस्वार्थ सेवा क्या होती है और उससे संबंधित घटनाओं को बताया। उन्होंने बताया कि SRHVP मशीन को स्वामी ने किस तरह से कृतार्थ किया और कहा कि वाइब्रॉनिक्स भविष्य की औषधि है, साथ ही यह चेतावनी भी दी कि वाइब्रॉनिक्स के बारे में बड़ी बड़ी उपलब्धियां मत गिनाना जिससे कि रोगी के दिमाग में बड़ी-बड़ी आशाएं जागृत ना हो जाए। उन्होंने कहा कि औषधि को अपने बारे में स्वयं ही जानकारी देने दो, यह तुम्हारे रोगी के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी करेगा। सत्र के अंतिम क्षणों में डॉ अग्रवाल ने कहा कि एक सफल चिकित्सक बनने के लिए तुम्हें प्रोफेशनल दृष्टिकोण अपनाना होगा और इस कार्य को करते समय तुम्हारा ह्रदय पूर्ण रूप से दया और प्रेम से संतृप्त रहना चाहिए।
 

3. कोविड-19 - साईं वाइब्रोनिक्स प्रैक्टिशनर्स की वैश्विक प्रतिक्रिया

कोविड-19 महामारी के फैलने के कारण हमारे समक्ष बहुत सारी चुनौतियों खड़ी हो गई है। फरवरी 2020 में पहली बार चीन के बाहर इस रोग से पहले व्यक्ति की मृत्यु हुई थी तो यूरोप के कुछ चिकित्सकों ने हम से पूछना शुरू कर दिया था और तभी से हमारी अनुसंधान टीम ने  महसूस कर लिया था कि इस वायरस से मुकाबला करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि लोगों की इम्यूनिटी को बढ़ाया जाए। अत: इम्यूनिटी बढ़ाने वाली रेमेडी को तैयार किया गया जो इस बीमारी से बचाव करने में सक्षम रहेगी और 12 फरवरी को उन लोगों के पास भेज दी जिन्होंने इस बारे में जानकारी मांगी थी। 1 मार्च को प्रकाशित हुए समाचार पत्र में इस बारे में पूर्ण जानकारी प्रस्तुत की गई थी। इस महामारी के कारण सारे विश्व में स्थिति बिगड़ती जा रही थी तब 11 मार्च को WHO ने कोविड-19 को महामारी घोषित कर दिया। हमारे अनुसंधान कार्यकर्ताओं ने मार्च से कार्य शुरू कर दिया और बहुत सोच-विचार करके कोविड-19 के उपचार के लिए रेमेडी तैयार की, इसकी जानकारी तुरंत ही सब चिकित्सकों के पास भेज दी गई थी। इस संबंध में जो भी जानकारियां पूरे विश्व से प्राप्त हो रही थी उनको भी सभी चिकित्सकों तक पहुंचाया जा रहा था। हमको भी यह जानकारी मिल रही थी कि यह वायरस शरीर में किस प्रकार से कार्य करता है। अतः इस बार हमारी अनुसंधान टीम ने इस रोग से बचाव और उपचार हेतु उच्च शक्ति की रेमेडी तैयार की तथा सूचना सभी चिकित्सकों के पास 20 मार्च को प्रेषित कर दी गई। अब हमें विश्व के हर कोने से इस बारे में प्रतिक्रिया और सूचना मिल रही थी और हमने 13 अप्रैल को, इसमें एक ओर रेमेडी को मिला कर तैयार किया।

हम यहां केवल कुछ ही रिपोर्टों को प्रस्तुत कर रहे हैं।
भारत: देश में लोकडाउन घोषित होने के पूर्व ही हमारे चिकित्सकों ने अपने रोगियों को और उनके परिवारों को यह दवा वितरित कर दी थी। यह दवा मेडिकल कैंपस में भी वितरित की गई थी। लॉकडाउन के पश्चात, इसका वितरण 13 अप्रैल के तीसरे संस्करण के अनुरूप ही किया गया है। प्रेस में छपने तक समाचार प्राप्त हुआ था कि उनके अनुसार 42,903 व्यक्ति इम्यूनिटी बूस्टर का उपयोग कर रहे हैं। यह संख्या और भी अधिक होगी क्योंकि बहुत से चिकित्सकों की रिपोर्ट अभी तक आ रही है।
विदेश में: भारत से बाहर 80 देशों में चिकित्सक कार्यरत है। वहां से केवल 19 रिपोर्ट, कुछ देशो के थोड़े से चिकत्सकों से ही प्राप्त हुई है। कुल 5,088 बोतल बचाव हेतु बांटी गई थी; यूएसए (1504), यूके (1001), पोलैंड (628), बेनिन (480), फ्रांस (427), स्लोवेनिया (295), क्रोएशिया (175), रूस (124), ग्रीस (102), अर्जेंटीना (78), उरुग्वे (76), गैबॉन (48), रोमानिया (45), दक्षिण अफ्रीका (44), पेरू (29), स्पेन (13), बेल्जियम (10), लक्समबर्ग (6), और मॉरीशस (3)।

131 ऐसे रोगियों का उपचार किया गया जिनको कोविड-पाजिटिव था या कोविड-19 के मजबूत लक्षण थे। कुछ को ब्राडकास्टिंग के माध्यम से भी उपचार किया गया। व्यावहारिक रूप से उनमें से सभी 2 सप्ताह में पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए थे,लेकिन उनमे से बहुत से लोग  एक सप्ताह में ही ठीक गये और कम से कम 26 लोग  2-4 दिनों में ही ठीक हो गयेI एक ऐसा भी रोगी था जो आईसीयू में था और अभी भी आईसीयू में है उसकी स्थिति में सुधार है। सामान्य अनुभव यह रहा है कि रोग शुरू होते ही उपचार शुरू कर देने से बहुत जल्द ठीक हो गए। 3 ऐसे केसेस हैं जिनमें बचाव की दवा लेने के दौरान लक्षण बढ़ गए थे लेकिन जैसे ही खुराक को बढ़ाया गया तो जल्द ही ठीक हो गए।

हमको ऐसे अनेकों पत्र मिले हैं जिनमें प्रेरणादायक किस्से दिए गए हैं कि कैसे बहुत से चिकित्सकों ने कई लोगों के जीवन में खुशी लाने के लिए खुद को आगे रखाI हम इनको आपके साथ बाद में शेयर करेंगे।
समस्त लोका: सुखिनो भवंतु! पूरे विश्व के लोग सुखी व निरोग रहे!

ओम् साईं राम