चिकित्सकों का परिचय 02444...India
चिकित्सक 02444…भारत इस चिकित्सक का मूल स्थान अमेरिका है। उसने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से 2 वर्ष का वास्तुशिल्प का अध्ययन किया है लेकिन वह 1971 में मरीन कॉर्प में चले गए। वियतनाम उनका ध्येय था जहां हेलीकॉप्टर पर एयर रेडियो ऑपरेटर का कार्य करते थे लेकिन जल्दी ही वह लिम्फेटिककार्सिनोमा से ग्रसित हो गए और 1973 में उनकी शल्य चिकित्सा होनी थी। इसके पश्चात नेवी हॉस्पिटल में कई चक्रों में उनकी कीमोथेरेपी की गई। वहां से उन्हें छुट्टी दे दी गई और बताया गया कि उनके जीवित रहने की 30℅ उम्मीद हैI उनको 100% अपंगता की पेंशन मिलने लगी। तथा पांच बार विश्व में कहीं भी जाने के लिए निशुल्क यात्रा सुविधा भी दी गई। 1977 में वह नेपाल गए इस उम्मीद से कि वहां कोई उपचार मिल जाए। वहां पर उनका पांव पूर्ण रूप से लकवा ग्रस्त हो गया। काठमांडू में उन्हें पहला चिकित्सक डॉक्टर झा के रूप में मिला। डॉक्टर झा एक वैदिक ब्राह्मण योगी थे। उन्होंने नेपाल के राजघराने के व्यक्तियों का भी उपचार किया था। एक माह में ही उनका पैर सामान्य स्थिति में आ गया था। इससे प्रभावित होकर उसने वहां 5 वर्षों तक निवास किया और इस दौरान इस वैदिक आर्युवैदिक प्राकृतिक उपचार का प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा डॉक्टर के क्लीनिक में मदद भी की। इस विद्या में पारंगत हो जाने और आत्मविश्वास प्राप्त हो जाने के पश्चात रोगियों का निशुल्क उपचार करना शुरू कर दिया। वहां उन्होंने पुस्तक भी लिखी जिसका नाम है, “टेंपरामेंट हीलिंग विद होम्योपैथिक जेमस्टोनस"I इसी समय उनका कार्सिनोमा बिल्कुल ठीक हो गया था।
अगले 20 वर्षों तक उन्होंने उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों और कोलकाता, गोवा और नेपाल की यात्राएं की तथा वहां के लोगों को निशुल्क उपचार दिया। उन्होंने स्वयं बहुत साधारण जीवन यापन किया। यह भी उनकी साधना का एक भाग था। सीधे-साधे जीवन यापन का उनके हृदय पर बहुत प्रभाव पड़ा उन्हें उन क्षणों की याद आती रहती है जिन्हे उन्होंने उन शांत चित्त साधुओं के साथ व्यतीत किया था। आध्यात्मिक अभ्यास में शांति के महत्व को उन्होंने स्वयं महसूस किया था जो कि बहुत आवश्यक है। उनके पास आने वाले रोगियों की संख्या के साथ-साथ उनके ज्ञान में भी वृद्धि होती गई। उनके अनेकों रोगियों ने व्यसन की आदतों जैसे कि सिगरेट पीना, शराब पीना और अत्यधिक भोजन करने की आदतों को छोड़ दिया था। उन्होंने स्वयं भी व्यसन की आदतों को छोड़ दिया, इस बात का अभ्यास जो कुछ भी कहो उस पर स्वयं भी चलोI दूसरों के दुखों को दूर करने से तुम्हारे दुख अपने आप कम हो जाते हैं।.
वर्ष 2001 में वह कुंभ मेले में भाग लेने के लिए वाराणसी गए थे। वहां 60 लाख व्यक्ति आए थे जिनमें लाखों साधु सम्मिलित हुए थे। गंगा नदी के किनारे बैठ कर होम्योपैथिक दवाओं का निशुल्क वितरण किया था। वहीं पर उनकी मुलाकात एक साईं भक्त से हुई जिसने उन्हें डॉ अग्रवाल के बारे में जानकारी दी, जो इसी प्रकार की निशुल्क सेवा प्रदान करते हैं। बाबा के आश्रम में 2003 में वाइब्रो क्लीनिक पर पहुंचे तो वहां उन्होंने वाईब्रिओनिक्स की कक्षाओं में प्रशिक्षण लिया तथा व्यस्त क्लीनिक में सेवा का कार्य भी किया और कई माह तक वहां सेवा करके उन्होंने वाईब्रिओनिक्स का प्रशिक्षण भी पूरा किया। वहां प्राप्त अनुभवों ने उनके लिए कई नए मार्ग खोल दिए। उन्होंने अनुभव किया कि उपचार के यह दो माध्यम टेम्परामेंट चिकित्सा और वाईब्रिओनिक्स चिकित्सा एक दूसरे के संगत है। दोनों ही उपचार कंपनो पर आधारित है जो उन बातों को सिद्ध करता है जो उन्होंने वेदों में पड़ी थी।
एक दिन वह डॉक्टर अग्रवाल के कहने पर साईं बाबा के दर्शन के लिए गए। वहां पर उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि साईं बाबा सूक्ष्म रूप में उनके जीवन में उनके साथ हैं। यह प्रथम दर्शन का उन पर प्रभाव था। उनको याद आया कि वे जब 4 वर्ष की आयु के थे, उनकी मां उन्हें चिड़ियाघर दिखाने के लिए ले गई थी वहां पर उन्होंने साईं बाबा की फोटो को दीवार पर टंगा हुआ देखा था जो कि बहुत आकर्षक थी। उनकी काले रंग की मुखाकृति बहुत ही सुंदर लग रही थी। उनको देखने पर वहां से दृष्टि हटती ही नहीं थी। एकाएक फोटो जीवंत हो उठी और स्वामी ने उनकी ओर देखा। उन्होंने कहा कि स्वामी के पास आना उनके जीवन का एक मोड़ था ऐसी लगता था कि जैसे उनका दूसरा जन्म हुआ है। वह इस बात से सहमत हैं कि यह केवल स्वामी की कृपा और उनका असीम प्रेम है जिसने उन्हें आध्यात्मिक धारणा का अनुवाद करने के लिए प्रेरित किया। उन्हें अनेकों बार ऐसा प्रतीत होता है कि स्वामी उसे बताते हैं कि मैं लगातार तुम्हें देखता रहता हूं और प्रोत्साहित करता रहता हूं कि तुम सेवा के द्वारा स्वयं का और व्यक्तियों का हृदय परिवर्तन करते रहो। वर्ष 2004 में उन्होंने अपनी पहली पुस्तक का संशोधित संस्करण का कार्य पूरा किया लेकिन जब उसे स्वामी को दिया गया तो उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया।
5 वर्षों तक 2006 से 2010 तक वह हर वर्ष हिमालय पर्वत के क्षेत्र मणिकरण जाते थे। गर्मी के मौसम में वह वहां दो-तीन माह तक रहते थेI वहां वह चिकित्सा शिवरों का आयोजन करते थे जिनमें 20-30 रोगियों का प्रतिदिन उपचार करते थे। इस समय का वह अपनी पुस्तक को संशोधित करने के लिए उपयोग करते थे। 13 मार्च 2009 का दिन उनकी जीवन का एक मील का पत्थर है जब स्वामी ने उनकी पुस्तक को आशीर्वाद दिया था। वह यह अनुभव करते हैं कि स्वामी हमारे जीवन में अपने विविध स्वरूपों में मौजूद रहते हैं और इस उपचार को वह बहुत प्रभावशाली मानते हैं तथा आने वाले समय में यह वाईब्रिओनिक्स उपचार अत्यंत प्रभावशाली रहने वाला है क्योंकि स्वामी के मार्गदर्शन में कुछ भी गलत नहीं हो सकता है। वह बहुत प्रसन्न है कि उन्हें लोगों की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ है विशेषकर साईं भक्तों का। वह हमेशा अपने आप को प्रेरित महसूस करते हैं, जब रोगी आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो जाता है यह जानते हुए भी कि स्वामी ही उसका उपचार कर रहे हैं मुझे तो केवल एक उपकरण बनाया हुआ है। यह बात उसे यह आश्वासन देती है कि स्वामी उससे प्रसन्न है।
इसके आलावा, एक समय उनके घर में बाबा के चित्र से अनवरत विभूति आ रही थी। जो रोगी उपचार के लिए औषधि लेने आए थे वह सभी विभूति को भी अपने साथ ले जा रहे थे यह सोच कर कि इससे उनकी पीड़ा जल्दी ठीक हो जाएगी। ब्रॉडकास्टिंग के भी आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होते हैं। मैं शुरू करने से पहले स्वामी से पूछता हूं कि कौन सा कॉन्बो देना है तो जैसे ही मैं बॉक्स का ढक्कन ऊपर की ओर खोलता हूं तो वह शीशी अपने आप ही ढक्कन के सहारे से ऊपर उठ जाती है।
स्वभाव उपचार के अपने ज्ञान का उपयोग करते हुए, वह रत्नों (SR226 से SR234) और धातुओं (SR273, SR359, SR383, आदि) का उपयोग करके चक्रों को संतुलित करके उपचार शुरू करते हैं। उन्होंने यह अनुभव किया कि रत्न रूबी आंखों की समस्याओं के लिए बहुत प्रभावशाली हैI यह निम्न रक्तचाप और पाचन संबंधी विकारों में भी बहुत उपयोगी है। उनका कहना है कि कुछ भी असंभव नहीं है। तथ्य यह है कि एक रोगी जो उनके पास आये उसके लिए पर्याप्त कारण है कि वह ध्यान से सुनें और एक पूर्ण इलाज की सुविधा के लिए उचित उपचार प्रदान करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करें। उदाहरण के लिए एक 45 वर्षीय व्यक्ति जो आंतों के कैंसर से ग्रसित था वर्ष 2008 में टर्मिनल के रूप में निदान किया गया था जब डॉक्टरों ने उनकी शल्य क्रिया की लेकिन उसे तुरंत ही बंद कर दिया यह कहते हुए की वह 6 सप्ताह से अधिक नहीं जी सकता है। उसके परिवार के किसी सदस्य ने तो उसके मकान को उसकी पत्नी के नाम पर करवाने के लिए कह दिया और उसे लाल चिमटे से भी जला दिया। चिकित्सक व उसकी पत्नी जो कि काफी अनुभवी थे SVP01228 (वॉल्यूम 7 अंक 1 में दिया जा चुका है) ने उनके कैंसर का उपचार किया तथा साथ ही जली हुई त्वचा का भी उपचार किया। वह व्यक्ति 12 वर्ष बाद भी अभी जीवित है और प्रसन्न और स्वस्थ है!
पिछले 17 वर्षों के दौरान, पुट्टपर्थी के आवास में उनको बहुत से भक्तों का उपचार करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है जो विदेशों से यहां स्वामी के दर्शन के लिए आते हैं। हाल ही में एक डॉक्टर सामान्य हॉस्पिटल से नियमित रूप से उनके पास कुछ रोगियों को उपचार हेतु लाते थे जिन्हें एलोपैथिक उपचार से कोई लाभ नहीं होता था और वे रोगी उपचार की अन्य प्राणलियों से हताश हो गए थे। उन रोगियों को इस वाईब्रिओनिक्स उपचार से ठीक होते हुए देखकर उन्हें अत्यंत प्रसन्नता होती थी। वह अपनी पत्नी के साथ चिकित्सा शिवरों का भी आयोजन करते हैं। यह शिविर स्थानीय स्कूलों में (देखें चित्र) वृद्ध व्यक्तियों के घर पर और रेलवे स्टेशन पर स्वामी के जन्मदिन पर वार्षिक कैंप आयोजित करते हैं। यह क्रम 10 वर्षों से चल रहा है।(चित्र देखें) उन्होंने कई स्कूली बच्चों का बड़े कृमि संक्रमण का इलाज किया है। साथ में उन्होंने 30,000 से अधिक रोगियों का इलाज किया है - एक जबरदस्त सेवा! समय के साथ उन्होंने पाया कि दुनिया में हर किसी को चिकित्सा की आवश्यकता है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक।
दोनों पति-पत्नी ने यह सूचना दी है कि सभी रोगी लाभ प्राप्त कर रहे हैं। कोरोना-19 वायरस अब पुट्टपर्थी में भी पहुंच गया है। अधिक से अधिक व्यक्ति इम्यूनिटी बूस्टर औषधि का उपयोग कर रहे हैं जिसके कारण हमारे चिकित्सक अत्यधिक व्यस्त हो गए हैं। चिकित्सक यह महसूस करते हैं कि साईं वाइब्रिओनिक एक सबसे सुन्दर सेवा है जो व्यक्ति को आत्मज्ञान का बोध कराती है। अपने संदेश को स्वामी के इन शब्दों के साथ समाप्त करते हैं, “लव ऑल सर्व ऑल”
अनुकरणीय उपचार