दैवीय चिकित्सक का संदेश
Vol 10 अंक 3
मई/जून 2019
‘‘डॉक्टर्स इस बात से सहमत हैं कि बिमारी का स्त्रोत गलत खान-पान की आदतें और फुर्सत के क्षणों में बेवकूफी भरी गति विधियाँ हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वे यह नहीं जानते हैं कि भोजन एक शब्द है जिसका अर्थ है विभिन्न प्रकार के खाद्यय् पदार्थों का ’सेवन’। भोजन से हमारी इन्द्रियाँ जो अनुभव ग्रहण करती हैं उसका हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हम कहते है ‘‘विचारों के लिये भोजन’’, जो कुछ भी देखते हैं, सुनते हैं, स्पर्श करते हैं उन सबका हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है अच्छा या बुरा। कुछ लोग रक्त देखते ही बेहोश हो जाते हैं, या फिर कोई बुरी खबर सुन कर, जो उन्हें आघात पहुँचाती है। ऐलर्जी की उत्पति, अप्रिय गंध या फिर कोई चीज़ जो आन्तरिक रूप से अनिच्छुक जुड़ी हो या चखी हो। स्वस्थ मन से ही स्वस्थ शरीर बनता है, स्वस्थ शरीर से मन भी स्वस्थ रहता है। प्रसन्नता के लिये स्वस्थ होना आवश्यक है। प्रसन्न रहने की क्षमता ही प्रसन्नता है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिये ‘चाहे जो भी हो’ आवश्यक है।’’
... Sathya Sai Baba, “Vehicle care” Divine Discourse, 16 October 1974
http://www.sssbpt.info/ssspeaks/volume12/sss12-48.pdf
‘‘प्रकृति के सभी जीव एक दूसरे की सेवा करके जीवन यापन कर रहें हैं। कोई भी किसी से श्रेष्ठ नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमताओं के अनुसार सेवा और गतिविधियाँ करनी चाहिये। मनुष्य के शरीर में हाथ है लेकिन हाथ वह कार्य नहीं कर सकते जो कार्य पाँव करते हैं, ना हीं आँखें, कानों का कार्य कर सकती हैं। कानों को जो खुशी मिलती है वह आँखों को नहीं। इसी प्रकार मनुष्यों में भी इसी प्रकार का अंतर है। उनकी क्षमताओं और योग्यताओं में भी अन्तर होता है। लेकिन प्रत्येक को अपनी क्षमता अपने उपकरणों और कार्य क्षेत्र के अनुरूप सेवा कार्य आवश्यक करने चाहिये।’’
... Sathya Sai Baba, “Born to Serve” Discourse,19November1987 http://www.sssbpt.info/ssspeaks/volume20/sss20-26.pdf
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