दैवीय चिकित्सक का सन्देश
Vol 9 अंक 3
मई /जून 2018
“सबसे बड़ा रोग (चैन की अनुपस्थिति) शांति की अनुपस्थिति है मन में शांति होती है तो शरीर स्वस्थ्य रहता है। हर मनुष्य अच्छा स्वास्थ्य पाना चाहता है। अतः उसे अपनी भावनाओं पर ध्यान देना चाहिये। अनुभूति और प्रयोजन व्यक्ति को उत्तेजित करते हैं। जिस प्रकार तुम कपड़े को साफ करने के लिये धोते हो, उसी प्रकार तुम्हें अपने मन को भी बार-बार धोना चाहिये जिससे कि उसमें से कुत्सित विचार निष्कासित हो जायें अन्यथा ये विचार मन में एकत्रित होते रहेंगे और फिर वह ’’आदत’’, बन जायेंगे, यह धोबी और कपड़े दोनो के लिये नुकसान दायक होगा। तुम्हारा प्रतिदिन का यह काम होना चाहियें कि तुम्हारे मन पर कुत्सित विचार न जम पायें; अर्थात तुम्हें उन लोगों के संपर्क में रहना चाहियें जहाँ कुत्सित विचार उत्पन्न नही होते हैं। झूठ, अन्याय, अनुशासन हीनता, अत्याचार, घृणा, यह सब गंदगी हैं। सत्य, धर्म, शांति, प्रेम (सदाचरण, शांति, प्रेम) शु़द्ध तत्व हैं। यदि तुम इन शब्दों से युक्त वायु को श्रवसित करते हो तो तुम्हारा मन बुरे कीटाणुओं से सुरक्षित रहेगा और तुम मानसिक रुप से दृढ़ और शारीरिक रुप से बलशाली रहोगे।”
... Sathya Sai Baba, “The Best Tonic” Discourse 21 September 1960 http://www.sssbpt.info/ssspeaks/volume01/sss01-28.pdf
“इस संसार में समकालीन सशरीर अवतार का होना एक आसामान्य घटना है...स्वामी आगे कहते हैं कि अवतार के साथ रहते हुये भी सशरीर अवतार को न पहचानना भी एक दुर्लभ बात है...और इससे भी दुर्लभ यह बात है कि यह अवतार मनुष्य में स्थित ईश्वर से प्रेम करता है। इस संसार में भगवान की सेवा करने का अवसर मिलना सबसे अधिक दुर्लभ है।”
... Sathya Sai Baba, Conversations with Students in Kodaikanal http://www.theprasanthireporter.org/2013/07/follow-his-footprints/